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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 17/ मन्त्र 13
    ऋषिः - देवश्रवा यामायनः देवता - आपः सोमो वा छन्दः - ककुम्मतीबृहती स्वरः - मध्यमः

    यस्ते॑ द्र॒प्सः स्क॒न्नो यस्ते॑ अं॒शुर॒वश्च॒ यः प॒रः स्रु॒चा । अ॒यं दे॒वो बृह॒स्पति॒: सं तं सि॑ञ्चतु॒ राध॑से ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ते॒ । द्र॒प्सः । स्क॒न्नः । यः । ते॒ । अं॒शुः । अ॒वः । च॒ । यः । प॒रः । स्रु॒चा । अ॒यम् । दे॒वः । बृह॒स्पतिः॑ । सम् । तम् । सि॒ञ्च॒तु॒ । राध॑से ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते द्रप्सः स्कन्नो यस्ते अंशुरवश्च यः परः स्रुचा । अयं देवो बृहस्पति: सं तं सिञ्चतु राधसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । ते । द्रप्सः । स्कन्नः । यः । ते । अंशुः । अवः । च । यः । परः । स्रुचा । अयम् । देवः । बृहस्पतिः । सम् । तम् । सिञ्चतु । राधसे ॥ १०.१७.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 17; मन्त्र » 13
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते) हे परमात्मन् ! तेरा (यः-द्रप्सः-स्कन्नः) प्राप्त आनन्दप्रद रस (ते) तेरा (यः अंशुः) जो रश्मि ज्योति (स्रुचा) स्तुति वाणी द्वारा (यः-अवः-च परः-च) जो इस लोक में-इस जीवन में और परलोक में-परजीवन में प्राप्त होता है (अयं देवः-बृहस्पतिः) यह दिव्य प्राण (राधसे) सुखसमृद्धि के लिये (तं संसिञ्चतु) उस आनन्दरश्मि और ज्ञानरश्मि को मेरे में सम्यक् प्रवाहित करे ॥१३॥

    भावार्थ

    आध्यात्मिक दृष्टि में परमात्मा का आनन्दरस और ज्ञानज्योति स्तुति करने से इस जीवन में और परजीवन में प्राप्त होते हैं। प्राण उन्हें सुखसमृद्धि के लिए जीवन में प्रवाहित कर देता है ॥१३॥

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    विषय

    अपरा व पराविद्या की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (ते) = तेरा (द्रप्सः) = ज्ञानाग्नि की दीप्ति का साधनभूत सोम (स्कन्नः) = शरीर में ही ऊर्ध्वगतिवाला हुआ है । (यः) = जो सोम (ते) = तेरा (अंशुः) = ज्ञान की किरण के रूप में है । यह सोम (अवः च) = निचले क्षेत्र में, अपराविद्या के क्षेत्र में (परः च) = और परक्षेत्र में अर्थात् पराविद्या के क्षेत्र में (अंशुः) = ज्ञानार्थ किरण बनता है। इस सोम से ही ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और मनुष्य प्रकृतिविद्या व आत्मविद्या को अपना पाता है। अपनाने का प्रकार है- (स्रुचा) = चम्मच के द्वारा। जैसे चम्मच से अग्नि में घृतादि की आहुति दी जाती है, इसी प्रकार आचार्य से वाणी रूप चम्मच के द्वारा [वाग्वै स्रुचः श० ६ । ३ । १ । ८] शिष्य में ज्ञान की आहुति दी जाती है। [२] (अयं देवः बृहस्पतिः) = यह प्रकाश का पुंज - वेदवाणी का पति प्रभु (तम्) = उस सोम को (राधसे) = सब प्रकार की सफलताओं के लिये (सं सिञ्चतु) = तेरे में संसिक्त करे । प्रभु कृपा से हम सोम को शरीर में ही व्याप्त करनेवाले बनें और यह सोम हमें सभी क्षेत्रों में सफलता को प्राप्त करानेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हम प्रकृतिविद्या व आत्मविद्या के क्षेत्र में उन्नति करें। इस सोम के द्वारा हमें सर्वत्र सफलता मिले।

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    विषय

    सर्वोत्पादक तत्त्व द्रप्स सोम।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! (यः ते द्रप्सः) जो तेरा सर्वोत्पादक तत्व रस (स्कन्नः) सर्वत्र प्रवाहित है, (यः ते अंशुः) जो तेरा व्यापक सूक्ष्म अंश (स्त्रुचा) प्राण शक्ति द्वारा (अवः च, परः च) इस लोक में और दूर के लोकों में भी व्याप्त है (तं) उस रस को (अयं देवः बृहस्पतिः) यह सर्व-तेजोदायक, तेजस्वी, सब बड़े लोकों का पालक सूर्य (राधसे) ऐश्वर्य वृद्धि, जगत् के व्यवहार संचालन के लिये (सं सिञ्चतु) उसी जीवन तत्व का अच्छी प्रकार जल और तेज के रूप में सेचन, वर्षण करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    देवश्रवा यामायन ऋषिः। देवताः—१, २ सरण्यूः। ३–६ पूषा। ७–९ सरस्वती। १०, १४ आपः। ११-१३ आपः सोमो वा॥ छन्द:– १, ५, ८ विराट् त्रिष्टुप्। २, ६, १२ त्रिष्टुप्। ३, ४, ७, ९–११ निचृत् त्रिष्टुप्। १३ ककुम्मती बृहती। १७ अनुष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते) हे परमात्मन्  ! तव (यः-द्रप्सः स्कन्नः) आनन्दरसः प्राप्तः (ते) तव (यः-अंशुः) यो रश्मिः-ज्योतिः (स्रुचा) वाचा स्तुत्या “वाग्वै स्रुक्” [श०६।३।१।८] (यः-अवः-च-परः च) अवरेऽस्मिन् लोके जीवने परस्मिन् लोके जीवने वा प्राप्तो भवति (अयं देवः-बृहस्पतिः) एष दिव्यः प्राणः “एष प्राणः उ एव बृहस्पतिः” [श०१४।४।१।२२] (राधसे) सुखसमृद्धये (तं संसिञ्चतु) तमानन्दरसं ज्ञानरश्मिं च मयि सम्यक् प्रवाहयतु ॥१३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of life, giver of light and bliss, your nectar of divinity that vibrates every where, the radiations of light and spiritual awareness expansive here in existence and existent there in absolute time and space, that very nectar of life and light of existence, may Brhaspati, this generous spirit of infinite knowledge and speech, shower upon us by the Word and vibrations of divinity for our fulfilment of life here and hereafter.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आध्यात्मिक दृष्टीने परमात्माचा आनंद रस व ज्ञानज्योती, स्तुती करण्याने, या जीवनात व परजीवनात प्राप्त होतात. प्राण त्यांना सुखसमृद्धीसाठी जीवनात प्रवाहित करतो. ॥१३॥

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