ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 17/ मन्त्र 4
ऋषिः - देवश्रवा यामायनः
देवता - पूषा
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आयु॑र्वि॒श्वायु॒: परि॑ पासति त्वा पू॒षा त्वा॑ पातु॒ प्रप॑थे पु॒रस्ता॑त् । यत्रास॑ते सु॒कृतो॒ यत्र॒ ते य॒युस्तत्र॑ त्वा दे॒वः स॑वि॒ता द॑धातु ॥
स्वर सहित पद पाठआयुः॑ । वि॒श्वऽआ॑युः । परि॑ । पा॒स॒ति॒ । त्वा॒ । पू॒षा । त्वा॒ । पा॒तु॒ । प्रऽप॑थे । पु॒रस्ता॑त् । यत्र॑ । आस॑ते । सु॒ऽकृतः॑ । यत्र॑ । ते । य॒युः । तत्र॑ । त्वा॒ । दे॒वः । स॒वि॒ता । द॒धा॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुर्विश्वायु: परि पासति त्वा पूषा त्वा पातु प्रपथे पुरस्तात् । यत्रासते सुकृतो यत्र ते ययुस्तत्र त्वा देवः सविता दधातु ॥
स्वर रहित पद पाठआयुः । विश्वऽआयुः । परि । पासति । त्वा । पूषा । त्वा । पातु । प्रऽपथे । पुरस्तात् । यत्र । आसते । सुऽकृतः । यत्र । ते । ययुः । तत्र । त्वा । देवः । सविता । दधातु ॥ १०.१७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 17; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विश्वायुः) सब प्रकार की आयु-सांसारिक और मोक्षपथ की आयु जिसमें प्राप्त हो, वह ऐसा परमात्मा (आयुः) आश्रयरूप है (त्वा) हे पात्र ! शिष्य ! तुझे (पासति) सुरक्षित रखता है (प्रपथे पुरस्तात्) पथाग्र पर पूर्व से ही (पूषा पातु) वह पोषणकर्ता परमात्मा तेरी रक्षा करे (सुकृतः) पुण्यकर्मवाले मुमुक्षुजन-मुमुक्षु आत्माएँ (यत्र-आसते) जहाँ मोक्ष में रहते हैं, (यत्र ते ययुः) जहाँ मोक्ष में वे गये हैं, (तत्र त्वा देवः सविता दधातु) वहाँ तुझे वह उत्पादक परमात्मदेव स्थापित करता है ॥४॥
भावार्थ
सब प्रकार की आयु देनेवाला स्वयं आयुरूप शरण परमात्मा उपासक या सत्पात्र आत्मा की रक्षा करता है। वह जीवनयात्रा के पथाग्र-मार्ग के मुख पर प्रथम ही रक्षण करता है, पुण्य आत्माओं को मोक्ष में पहुँचाता है ॥४॥
विषय
पुण्यात्म पुरुषों का मार्ग
पदार्थ
[१] (आयुः) = [एति] गतिशील, स्वाभाविक क्रिया वाला, (विश्वायुः) = सम्पूर्ण क्रिया वाला वह प्रभु (त्वा) = तेरी (परिपासति) = रक्षा करता है । [२] (पूषा) = यह पोषण करनेवाला परमात्मा (त्वा) = तुझे (प्रपथे) = प्रकृष्ट मार्ग में (पुरस्तात्) = आगे-आगे (पातु) = रक्षित करनेवाला हो । [३] (यत्र) = जहाँ (सुकृतः) = पुण्यशाली लोग (आसते) = विराजते हैं, (यत्र) = जिस मार्ग पर (ते) = वे पुण्यशाली लोग (ययुः) = चलते हैं, (तत्र) = उस मार्ग पर (त्वा) = तुझे (सविता देवः) = सब का प्रेरक दिव्यगुणों का पुंज प्रभु (दधातु) = स्थापित करे । [४] सम्पूर्ण क्रिया के स्रोत वे प्रभु ही हैं। उनकी यह क्रियाशीलता ही जीव का पोषण करती है इसी से ये प्रभु पूषा कहलाते हैं । ये पूषा प्रभु हमारा रक्षण करें, हमें जीवन मार्ग में आगे ले चलें। इस पूषन देव की कृपा से हमारा मार्ग वही हो जो कि पुण्यशील पुरुषों का मार्ग होता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम उसी मार्ग से चलें जिस मार्ग से कि पुण्यात्मा लोग चला करते हैं ।
विषय
पूषा। पशुपालवत् पालक और प्रभु के कर्मों का वर्णन।
भावार्थ
(विश्वायुः) सब को जीवन देने वाला, सर्वत्र व्यापक, (आयुः) वायुवत् सबका प्राणाधार प्रभु (त्वा परि पासति) तेरी सर्वत्र रक्षा करे। (पूषा) सर्वपोषक प्रभु (प्रपथे) उत्तम मार्ग में (पुरस्तात्) आगे से (पातु) रक्षा करे। (यत्र सुकृतः आसते) जिस स्थान पर उत्तम कर्म करने हारे पुण्यात्मा लोग विराजते हैं और (यत्र ते ययुः) जिस उत्तम लोक में वे जाते हैं वा जिस मार्ग पर चलते हैं (तत्र) वहां, उस मार्ग में (देवः सविता) प्रकाशदाता, सर्वोत्पादक प्रभु (त्वा दधातु) तुझे भी स्थापित करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
देवश्रवा यामायन ऋषिः। देवताः—१, २ सरण्यूः। ३–६ पूषा। ७–९ सरस्वती। १०, १४ आपः। ११-१३ आपः सोमो वा॥ छन्द:– १, ५, ८ विराट् त्रिष्टुप्। २, ६, १२ त्रिष्टुप्। ३, ४, ७, ९–११ निचृत् त्रिष्टुप्। १३ ककुम्मती बृहती। १७ अनुष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(विश्वायुः) विश्वं सर्वं प्रकारकमायुः सांसारिकं मोक्षगतं चायुर्यस्मात् प्राप्यते तथाभूतः सः (आयुः) आश्रयः परमात्मा (त्वा) हे पात्र ! शिष्य ! त्वाम् (पासति) रक्षेत् “पाधातोर्लेटि सिपि’ (प्रपथे) पथाग्रे (पुरस्तात्) पूर्वतः (पूषा पातु) पोषयिता परमात्मा रक्षतु (सुकृतः) सुकर्माणो मुमुक्षवः (यत्र-आसते) यत्र मोक्षे तिष्ठन्ति (यत्र ते ययुः) यत्र मोक्षे ते गताः (तत्र त्वा देवः सविता दधातु) तत्र त्वां स उत्पादकः परमात्मदेवः-स्थापयतु-स्थापयति ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pusha, life of the world and giver of life and nourishment, may protect you all round and inspire and promote you on the path forward, and may Savita, self- refulgent lord of light and vision, guide you where men of noble action reach, and stabilise you where they abide.
मराठी (1)
भावार्थ
सर्व प्रकारची आयु देणारा परमात्मा उपासकाचे रक्षण करतो. तो जीवनयात्रेच्या पथावर चालणाऱ्या पुण्यात्म्याचे पूर्वीपासूनच रक्षण करतो व त्यांना मोक्षपद प्राप्त करवितो. ॥४॥
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