ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
ऋषिः - देवश्रवा यामायनः
देवता - पूषा
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पू॒षेमा आशा॒ अनु॑ वेद॒ सर्वा॒: सो अ॒स्माँ अभ॑यतमेन नेषत् । स्व॒स्ति॒दा आघृ॑णि॒: सर्व॑वी॒रोऽप्र॑युच्छन्पु॒र ए॑तु प्रजा॒नन् ॥
स्वर सहित पद पाठपू॒षा । इ॒माः । आशाः॑ । अनु॑ । वे॒द॒ । सर्वाः॑ । सः । अ॒स्मान् । अभ॑यऽतमेन । ने॒ष॒त् । स्व॒स्ति॒ऽदाः । आघृ॑णिः । सर्व॑ऽवीरः । अप्र॑ऽयुच्छन् । पु॒रः । ए॒तु॒ । प्र॒ऽजा॒नन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पूषेमा आशा अनु वेद सर्वा: सो अस्माँ अभयतमेन नेषत् । स्वस्तिदा आघृणि: सर्ववीरोऽप्रयुच्छन्पुर एतु प्रजानन् ॥
स्वर रहित पद पाठपूषा । इमाः । आशाः । अनु । वेद । सर्वाः । सः । अस्मान् । अभयऽतमेन । नेषत् । स्वस्तिऽदाः । आघृणिः । सर्वऽवीरः । अप्रऽयुच्छन् । पुरः । एतु । प्रऽजानन् ॥ १०.१७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पूषा) पोषण करनेवाला परमात्मा (इमाः सर्वाः-आशाः-अनुवेद) इन सारी दिशाओं को प्राप्त होकर जानता है (सः-अस्मान्-अभयतमेन नेषत्) वह हम उपासकों को अत्यन्त भयरहित मार्ग से ले जाता है (स्वस्तिदाः) वह कल्याणदाता (आघृणिः) समन्तरूप से प्राप्त दीप्तिवाला है (सर्ववीराः) सर्वबलयुक्त (अप्रयुच्छन्) सदा सावधान तथा अनुपेक्षमाण है, वह (प्रजानन्) हमें बोध देता हुआ (पुरः एतु) साक्षात् प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा हमारा पोषण करता है, वह सारी दिशाओं में वर्तमान प्राणी अप्राणी को जानता है। भयरहित मार्ग से उपासकों को जीवन-यात्रा कराता है, प्रसिद्ध ज्योति और समस्त बलों से युक्त हुआ बिना प्रमाद या उपेक्षा के हमें बोध देता है। हमें सबसे पूर्व उसकी उपासना करनी चाहिए ॥५॥
विषय
अभयतम मार्ग
पदार्थ
[१] (पूषा) = पोषण करनेवाले प्रभु (इमाः सर्वाः आशाः) = इन सब दिशाओं को अनुवेद ठीक- ठीक रूप में जानते हैं । प्रभु से कुछ अज्ञात नहीं है । (सः) = वे प्रभु (अस्मान्) = हमें (अभयतमेन) = अत्यन्त निर्भयता के मार्ग से नेषत्-ले चलें । हमारे लिये जो भी मार्ग कल्याणकर है, प्रभु पूर्ण प्रज्ञ होने के नाते, हमें उस मार्ग से ही ले चलें । [२] वे प्रभु (स्वस्तिदा) = कल्याण को देनेवाले हैं । मार्गस्थ को (अवसाद) = कष्ट नहीं प्राप्त होता । प्रभु हमें मार्ग से ले चलेंगे तो हमारा कल्याण तो होगा ही । (आघृणिः) = वे प्रभु (सर्वतः) = ज्ञानरश्मियों से दीप्त हैं, (सर्ववीरः) = सम्पूर्ण शक्तियों वाले हैं। न तो प्रभु के ज्ञान में कमी है, ना ही उनकी शक्ति में । सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् होने के नाते वे प्रभु (अप्रयुच्छन्) = किञ्चिन्मात्र भी प्रमाद न करते हुए (प्रजानन्) = हमारी स्थिति को पूर्ण रूप से समझते हुए (पुरः एतु) = हमारे आगे चलें, अर्थात् हमारे मार्गदर्शक हों। हमें प्रभु कृपा प्राप्त हो, हम प्रभु से उपेक्षित न हों।
भावार्थ
भावार्थ- वे सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् प्रभु सब मार्गों को अच्छी प्रकार जानते हुए अभयतम मार्ग से हमें ले चलें ।
विषय
सर्वपोषक प्रभु रक्षा और सन्मार्ग की याचना।
भावार्थ
(पूषा) सर्वपोषक प्रभु (इमाः सर्वाः आशाः) इन समस्त दिशाओं और हमारी इच्छाओं को (अनु वेद) प्रतिक्षण जानता है। (सः अस्मान्) वह हमें (अभय-तमेन) अत्यन्त भय से रहित मार्ग से (नेषत्) ले चले। (स्वस्ति-दाः) वह समस्त कल्याणों का देने वाला (आ-घृणिः) सर्वत्र सब प्रकार से प्रकाशों से युक्त, सूर्यवत्, (सर्व-वीरः) सब वीरों का स्वामी, सब प्राणों का स्वामी, सब को विविध विद्याओं का उपदेश करने वाला, (प्र-जानन्) सब उत्तम ज्ञान को जानता हुआ, सर्वज्ञ प्रभु (अप्र-युच्छन्) प्रमाद न करता हुआ (नः पुरः एतु) सदा हमारे आगे मार्गदर्शी होकर रहे। इति त्रयोविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
देवश्रवा यामायन ऋषिः। देवताः—१, २ सरण्यूः। ३–६ पूषा। ७–९ सरस्वती। १०, १४ आपः। ११-१३ आपः सोमो वा॥ छन्द:– १, ५, ८ विराट् त्रिष्टुप्। २, ६, १२ त्रिष्टुप्। ३, ४, ७, ९–११ निचृत् त्रिष्टुप्। १३ ककुम्मती बृहती। १७ अनुष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पूषा) पोषयिता परमात्मा (इमाः-आशाः-सर्वाः-अनुवेद) एताः सर्वा खलु दिशोऽनुगत्य जानाति “आशा दिङ्नाम” [निघ०१।६] (सः-अस्मान्-अभयतमेन नेषत्) सोऽस्मान्-उपासकानत्यन्तं भयरहितेन मार्गेण नयेत्-नयति “णीञ् प्रापणे” [भ्वादिः] लेटि सिपि (स्वस्तिदाः) स कल्याणदाता (आघृणिः) आगतघृणिः-समन्तात् प्राप्तज्योतिष्को प्राप्तदीपिको वा (सर्ववीरः) सर्वबलयुक्तः (अप्रयुच्छन्) सावधानोऽनुपेक्षमाणः (प्रजानन्) अस्मान् प्रजानन् प्रबोधयन् सन् (पुरः-एतु) साक्षात् प्राप्तो भवतु ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pusha knows all these paths and directions of life and he fulfils all our hopes and ambitions too. May he lead us on the most fearless path of progress. May he, giver of all round good and well being, refulgent and vigilant, all mighty, all knowing, be our pioneer and path maker without neglect or relent.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आमचे पोषण करतो. तो दशदिशांमध्ये असणाऱ्या जड, चेतन पदार्थांना जाणतो. उपासकांचा मार्ग भयरहित करतो. तो तेजस्वी व सर्वशक्तिमान परमात्मा कुणाचीही उपेक्षा न करता बोध करवितो. आम्ही त्याची उपासना सर्वांत प्रथम केली पाहिजे. ॥५॥
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