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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 10
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    ये स्था मनो॑र्य॒ज्ञिया॒स्ते शृ॑णोतन॒ यद्वो॑ देवा॒ ईम॑हे॒ तद्द॑दातन । जैत्रं॒ क्रतुं॑ रयि॒मद्वी॒रव॒द्यश॒स्तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । स्थाः । मनोः॑ । य॒ज्ञियाः॑ । ते । शृ॒णो॒त॒न॒ । यत् । वः॒ । दे॒वाः॒ । ईम॑हे । तत् । द॒दा॒त॒न॒ । जैत्र॑म् । क्रतु॑म् । र॒यि॒मत् । वी॒रऽव॑त् । यशः॑ । तत् । दे॒वाना॑म् । अवः॑ । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये स्था मनोर्यज्ञियास्ते शृणोतन यद्वो देवा ईमहे तद्ददातन । जैत्रं क्रतुं रयिमद्वीरवद्यशस्तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । स्थाः । मनोः । यज्ञियाः । ते । शृणोतन । यत् । वः । देवाः । ईमहे । तत् । ददातन । जैत्रम् । क्रतुम् । रयिमत् । वीरऽवत् । यशः । तत् । देवानाम् । अवः । अद्य । वृणीमहे ॥ १०.३६.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ये देवाः-मनोः-यज्ञियाः स्थ) जो मुमुक्षु या जीवन्मुक्त आयु के यजनशील तुम हो (ते शृणोतन) वे तुम सुनो (वः-यत् तत्-ददातन) वह जो तुम्हारा आयुसम्बन्धी ज्ञान है, उसे हमारे लिये दो (जैत्रं क्रतुं रयिवत्-वीरवत्-यशः) जय करानेवाला प्रज्ञान पुष्टिवाला प्राणवाला यश भी देओ। (तद्देवा०) पूर्ववत् ॥१०॥

    भावार्थ

    मुमुक्षु या जीवन्मुक्त विद्वान् अपने आयु के ज्ञान को अन्य जनों के लिये प्रदान करें तथा पाप अज्ञान पर विजय पानेवाले पुष्टिप्रद, प्राणप्रद और यशोवर्द्धक ऊँचे ज्ञान का भी उपदेश दें ॥१०॥

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    विषय

    जैत्र क्रतु

    पदार्थ

    [१] (ये) = जो आप (मनोः) = ज्ञान के (यज्ञियाः) = संगतिकरण में उत्तम (स्था:) = हो (ते) = वे आप (शृणोतन) = हमारी बात को सुनिये और (देवा:) = हे विद्वानो ! (यद्) = जो (वः) = आपसे (ईमहे) = हम याचना करते हैं (तद् ददातन) = हमें दीजिये । वस्तुतः वे विद्वान् जो अपने साथ ज्ञान को निरन्तर संगत करने में लगे हैं, वे ही हमारे संगतिकरण योग्य होते हैं। हमें उनके सम्पर्क में आकर यह कामना करनी कि- [२] वे देव हमें (जैत्रम्) = विजयशील क्रतुम् ज्ञान को प्राप्त कराएँ । उस ज्ञान को वे हमें देनेवाले हों जो ज्ञान हमें काम-क्रोधादि शत्रुओं पर विजय करनेवाला बनाये। [३] इसके साथ ही वह ज्ञान हमें (रयिमत्) = उत्तम धन से युक्त (वीरवत्) = वीरतावाले (यशः) = यशस्वी जीवन को देनेवाला हो। देवों के सम्पर्क में आकर हमारा जीवन विजयशील ज्ञानवाला तथा धन व वीरता से युक्त यशवाला हो। [४] इस प्रकार हम (देवानाम्) = देवों के (तद् अवः) = उस रक्षण को (अद्या) = आज (वृणीमहे) = वरण करते हैं, अर्थात् ज्ञान व यश का सम्पादन करते हुए हम अपने में दिव्यता का अवतरण करने के लिये यत्नशील होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - देव हमें विजयी ज्ञान तथा धन व शक्ति से युक्त यश को प्राप्त करानेवाले हों ।

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    विषय

    आत्मज्ञान के श्रवण का उपदेश। विजयप्रद ज्ञान, कर्म, बल आदि की याचना।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (ये) जो (मनोः) मननशील ज्ञानमय आत्मा के (यज्ञियाः) पूजा करने में तत्पर, यज्ञ में रत (स्थ) हो, (ते) वे आप (शृणोतन) श्रवण करो, उस आत्मा का श्रवण करो। और हे (देवाः) दानशील, तेजस्वी पुरुषो ! हम (वः यत् ईमहे) आप लोगों से जो ज्ञान आदि की याचना करते हैं तत् (दधातन) उसको धारण कराओ, उसका हमें दान करो। हमें (जैत्रं क्रतुम्) सब संकटों पर विजय प्राप्त कराने वाले ज्ञान और कर्म बल, और (रयिमत् वीरवत् यशः) धनों और पुत्रों, प्राणों से युक्त यश, अन्न, बल आदि प्रदान करो। (अद्य देवानाम् अवः वृणीमहे) हम ज्ञानी, दानशील विद्वानों का वह ज्ञान, बल, रक्षण प्राप्त करें। इति दशमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ये देवाः-मनोः-यज्ञियाः स्थ) ये यूयं विद्वांसो मुमुक्षवो जीवन्मुक्ता वा, आयुषः “आयुर्वै मनुः” [कौ० २६।१७] यज्ञकर्त्तारो यज्ञकुशलाः स्थ (ते शृणोतन) ते यूयं शृणुत (वः-यत् तत्-ददातन) तद्यद्युष्माकमायुष्यं ज्ञानं तदस्मभ्यं दत्त (जैत्रं क्रतुं रयिमत्-वीरवत्-यशः) जयकारिणं प्रज्ञानं पुष्टिमत् प्राणवत् “प्राणा वै दश वीराः” [श० ९।४।२।१०] यशश्च दत्त (तद्देवाना०) अग्रे पूर्ववत् ॥१०॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And listen all, those who are dedicated to yajna at heart in communion with divine Soma, be steadfast and, O divine souls, bear and bring us that we pray for from you : Bring us the spirit of success and victory, holy yajnic action, wealth, honour and fame with progeny worthy of the brave. That is the favour and prayer of our choice we ask of you this day.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मुमुक्षू किंवा जीवन्मुक्त विद्वानांनी आपल्या आयुष्याचे ज्ञान इतरांना द्यावे. पाप व अज्ञानावर विजय प्राप्त करणारा पुष्टिप्रद, प्राणप्रद व यशोवर्धक उच्च ज्ञानाचाही उपदेश करावा. ॥१०॥

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