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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 5
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    एन्द्रो॑ ब॒र्हिः सीद॑तु॒ पिन्व॑ता॒मिळा॒ बृह॒स्पति॒: साम॑भिॠ॒क्वो अ॑र्चतु । सु॒प्र॒के॒तं जी॒वसे॒ मन्म॑ धीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इन्द्रः॑ । ब॒र्हिः । सीद॑तु । पिन्व॑ताम् । इळा॑ । बृह॒स्पतिः॑ । साम॑ऽभिः । ऋ॒क्वः । अ॒र्च॒तु॒ । सु॒ऽप्र॒के॒तम् । जी॒वसे॑ । मन्म॑ । धी॒म॒हि॒ । तत् । दे॒वाना॑म् । अवः॑ । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एन्द्रो बर्हिः सीदतु पिन्वतामिळा बृहस्पति: सामभिॠक्वो अर्चतु । सुप्रकेतं जीवसे मन्म धीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इन्द्रः । बर्हिः । सीदतु । पिन्वताम् । इळा । बृहस्पतिः । सामऽभिः । ऋक्वः । अर्चतु । सुऽप्रकेतम् । जीवसे । मन्म । धीमहि । तत् । देवानाम् । अवः । अद्य । वृणीमहे ॥ १०.३६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (जीवसे) जीवन के लिये (इन्द्रः-बर्हिः-आ सीदतु) ऐश्वर्यवान् परमात्मा हृदयाकाश में विराजमान हो-साक्षात् हो (इळा पिन्वताम्) अन्नरसरूप भोग-सामग्री शरीर को सींचे-परिपुष्ट करे (ऋक्वः-बृहस्पतिः-सामभिः-अर्चतु) स्तुति करनेवाला आत्मा शान्त स्तुतियों से परमात्मा की स्तुति करे (सुप्रकेतं मन्म धीमहि) अच्छे प्रज्ञान उत्तम निर्णय और मनन-विचार को हम धारण करें। (तद्देवा०) आगे पूर्ववत् ॥५॥

    भावार्थ

    जीवनवृद्धि के लिए परमात्मा हृदय में साक्षात् हो। अन्न रसादि सामग्री हमारे शरीर को पुष्ट करे। आत्मा उत्तम स्तुतियों से परमात्मा की अर्चना करे। बुद्धि उत्तम निर्णय और मन अच्छा मनन करे, तो जीवन सफल है ॥५॥

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    विषय

    ज्ञान व भक्ति का समन्वय

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (बर्हिः) = हमारे वासनाशून्य हृदय में (आसीदतु) = आसीन हो । उस हृदयस्थ प्रभु के द्वारा प्रेरित (इडा) = वेदवाणी (पिन्वताम्) = हमें प्रीणित करनेवाली हो । वेदवाणी के ग्रहण से (बृहस्पतिः) = उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त हुआ (ऋक्रः) = स्तुति के मधुर शब्दों का उच्चारण करनेवाला पुरुष (सामभिः) = साम- मन्त्रों से (अर्चतु) = प्रभु की अर्चना करे अथवा (ऋक्व:) = ज्ञान में निपुण यह पुरुष (सामभिः) = उपासनाओं के द्वारा (अर्चतु) = चमक उठे [अर्च् to shine ] । ज्ञान के साथ उपासना का समावेश इसे दीप्त करनेवाला हो। [२] हे प्रभो! आपकी कृपा से हम (सुप्रकेतम्) = उत्तम विज्ञानवाले (मन्म) = मननीय स्तोत्रों का (धीमहि) = धारण करें जिससे (जीवसे) = हम उत्कृष्ट जीवन के लिये हों। 'ज्ञान व स्तवन' का समन्वय ही तो हमें प्रशस्त जीवनवाला बनायेगा । [३] इस प्रकार ज्ञानी स्रोता बनकर हम (देवानां तद् अवः) = देवों के उस रक्षण को (अद्या) = आज (वृणीमहे) = वरते हैं । हम प्रयत्न करते हैं कि अपने अन्दर दिव्यता का रक्षण कर सकें।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम हृदय को वासना शून्य बनाकर प्रभु को उसमें आसीन करें और हृदयस्थ प्रभु से वेदवाणी की प्रेरणा को प्राप्त करनेवाले हों। इस प्रकार हमारे जीवनों में ज्ञान व भक्ति का समन्वय हो पायेगा ।

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    विषय

    राजा की सूर्यवत् स्थिति। पूज्यों की अर्चना, ज्ञान धनादि की वृद्धि।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता राजा, सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष (बर्हिः आसीदतु) आसनवत् प्रजा पर आ विराजे। (इडा) अन्न, भूमि, वाणी, ये (पिन्वताम्) सब को तृप्त, सुखी, करें। (बृहस्पतिः) वेदवाणी का पालक (ऋक्वः) ऋचाओं, अर्चना के साधनों का जानने वाला, (सामभिः) साम गायनों से उद्गाता के समान (अर्चतु) पूज्यों का अर्चना करे और हम (जीवसे) जीवन के लाभ और रक्षा के लिये (मन्म) मनन करने योग्य (सु-प्र-केतम्) उत्तम, श्रेष्ठ ज्ञान और धन, गृह आदि को (धीमहि) धारण करें। (देवानां तत् अवः वृणीमहे) विद्वानों के हम उस परम ज्ञान, रक्षा, स्नेह आदि को नित्य चाहें। इति नवमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (जीवसे) जीवनहेतवे (इन्द्रः-बर्हिः-आसीदतु) ऐश्वर्यवान् परमात्मा हृदयाकाशे समन्तात् सीदति “लडर्थे लोट्’ (इळा पिन्वताम्) अन्नरसात्मिका सामग्री शरीरं सिञ्चतु (ऋक्वः- बृहस्पतिः-सामभिः-अर्चतु) स्तुतिमान् स्तुतिकर्त्ताऽऽत्मा “बृहस्पतिर्म आत्मा नृमणा नाम हृद्यः” [अथर्वः० १६।३।५] शान्तवाग्भिः स्तुतिभिः “यद्ध वै शिवं शान्तं वाचस्तत्साम” [जै० ३।५३] परमात्मानमर्चतु (सुप्रकेतं मन्म धीमहि) शोभनप्रज्ञानं मननं च वयं धारयेम (तद्देवा०) पूर्ववत् ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Indra, omnipotent lord of the universe, enlighten us at heart and bless our yajnic home, may Ila, the earth and the divine voice, raise our health and awareness, may Brhaspati, sagely scholar of the divine Word, adore the spirit with songs of praise, and may we obtain divine wisdom and intelligence and meditate on the light divine. This is the favour and protection of the divinities we pray for today.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवनवृद्धीसाठी परमात्मा हृदयात साक्षात असावा. अन्न रस इत्यादी सामग्रीनी आमच्या शरीराला पुष्ट करावे. आत्म्याने उत्तम स्तुती करून परमेश्वराचे अर्चन करावे. बुद्धीने उत्तम निर्णय व मनाने चांगले मनन केले तर जीवन सफल होते. ॥५॥

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