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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 13
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ये स॑वि॒तुः स॒त्यस॑वस्य॒ विश्वे॑ मि॒त्रस्य॑ व्र॒ते वरु॑णस्य दे॒वाः । ते सौभ॑गं वी॒रव॒द्गोम॒दप्नो॒ दधा॑तन॒ द्रवि॑णं चि॒त्रम॒स्मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । स॒वि॒तुः । स॒त्यऽस॑वस्य । विश्वे॑ । मि॒त्रस्य॑ । व्र॒ते । वरु॑णस्य । दे॒वाः । ते । सौभ॑गम् । वी॒रऽवत् । गोऽम॑त् । अप्नः॑ । दधा॑तन । द्रवि॑णम् । चि॒त्रम् । अ॒स्मे इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये सवितुः सत्यसवस्य विश्वे मित्रस्य व्रते वरुणस्य देवाः । ते सौभगं वीरवद्गोमदप्नो दधातन द्रविणं चित्रमस्मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । सवितुः । सत्यऽसवस्य । विश्वे । मित्रस्य । व्रते । वरुणस्य । देवाः । ते । सौभगम् । वीरऽवत् । गोऽमत् । अप्नः । दधातन । द्रविणम् । चित्रम् । अस्मे इति ॥ १०.३६.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 13
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ये विश्वे देवाः) जो सारे विषयों में प्रवेश पानेवाले विद्वान् हैं, (सवितुः सत्यसवस्य मित्रस्य वरुणस्य व्रते) उत्पादक, यथावत् शासक प्रेरक, वरनेवाले परमात्मा के नियम सदाचरण में वर्तते हैं-रहते हैं (ते-अस्मे) वे तुम हमारे लिये (वीरवत्-गोमत् सौभगम्) प्राणयुक्त प्रशस्त इन्द्रियसहित सौभाग्य को, (चित्रं द्रविणम्-अप्नः-दधातन) अद्भुत दर्शनीय ज्ञानधन कर्तव्यबल को धारण कराओ ॥१३॥

    भावार्थ

    उत्पन्नकर्ता, सच्चे शासक, प्रेरक और वरनेवाले परमात्मा के नियम में रहनेवाले सर्व विषयों में प्रवेश किये हुए विद्वान् जन जीवनबल, संयमशक्ति तथा सौभाग्य, ज्ञानबल और कर्तव्यबल मनुष्यों के अन्दर धारण करावें ॥१३॥

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    विषय

    स्नेह व निर्द्वेषता

    पदार्थ

    [१] (ये) = जो (विश्वेदेवाः) = सब देव (सत्यसवस्य) = सत्य प्रेरणा देनेवाले (सवितुः) = प्रेरक के (मित्रस्य) = मित्र के तथा (वरुणस्य) = वरुण के (व्रते) = व्रत में स्थित हैं (ते) = वे (अस्मे =) हमारे लिये (सौभगम्) = सौभाग्य को और (वीरवत्) = वीरता से युक्त तथा (गोमत्) = उत्तम इन्द्रियों से युक्त (अप्नः) = कर्म को तथा (चित्रं द्रविणम्) = ज्ञान से युक्त अद्भुत धन को (दधातन) = धारण करें। [२] वस्तुतः देव वे ही हैं जो उस महान् देव के व्रतों में चलते हैं । वे महान् देव हृदयस्थरूपेण सदा सत्य प्रेरणा प्राप्त कराते हैं। उस प्रेरणा के अनुसार जिनका जीवन चलता है वे देव बन जाते हैं। इस सविता देव की प्रेरणा में मुख्य बातें ये दो ही हैं कि 'सब के साथ स्नेह से चलो [मित्रस्य] और किसी से द्वेष न करो [वरुणस्य ] ' । देवताओं के ये ही मुख्य व्रत बनते हैं, वे सब के प्रति स्नेहवाले होते हैं और किसी के प्रति द्वेष नहीं करते। [३] इन देवताओं के सम्पर्क में चलने पर हमारा जीवन भी प्रशस्त बनता है, वह सौभाग्यवाला होता है, वीरता से युक्त होता है, प्रशस्त इन्द्रियोंवाला तथा क्रियामय होता है। इसके साथ हम उस अद्भुत धन को प्राप्त करनेवाले बनते हैं जो ज्ञान से युक्त होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की प्रेरणा से मित्रता व निर्देषता के व्रत को ग्रहण करनेवाले देव कहलाते हैं इनके सम्पर्क में आकर हम भी अपने जीवन को 'सौभाग्य, वीरता, प्रशस्तेन्द्रियता व ज्ञानयुक्त धन' से अलंकृत करें।

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    विषय

    प्रभु के व्रत में लगे श्रेष्ठ पुरुषों से ऐश्वर्य-वृद्धि की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (ये) जो (देवाः) विद्वान् जन (सत्य-सवस्य मित्रस्य) सत्य ऐश्वर्य के स्वामी, सर्वस्नेही, मृत्यु से बचाने वाले (वरुणस्य) सब दुःखों के वारणकर्त्ता, सर्वश्रेष्ठ प्रभु के (व्रते) व्रत में तत्पर हैं, (ते विश्वे) वे सब (वीरवत्) वीरों से युक्त (गोमत्) वाणियों, भूमियों और पशुओं से समृद्ध, (सौभगं) उत्तम ऐश्वर्य, और (अप्नः) उत्तम ज्ञान, कर्म और (चित्रं) संग्रह करने योग्य नाना, अद्भुत (द्रविणं) धन (अस्मे) हमें (दधातन) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ये विश्वे देवाः) ये सर्वविषयेषु प्रविष्टा विद्वांसः (सवितुः सत्यसवस्य मित्रस्य वरुणस्य व्रते) उत्पादकस्य यथावच्छासकस्य प्रेरकस्य वरयितुः परमात्मनो नियमे सदाचरणे वर्त्तन्ते (ते-अस्मे) ते यूयमस्मभ्यम् (वीरवत्-गोमत् सौभगम्) प्राणयुक्तं प्रशस्तेन्द्रिययुक्तं सौभाग्यम् तथा (चित्रं द्रविणम्-अप्नः-दधातन) अद्भुतं चायनीयं ज्ञानधनं कर्म-कर्त्तव्यबलं च धारयत ॥१३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All those generous, brilliant and illuminative divinities of the world, both in nature and in humanity, which observe and work under the laws and discipline of Savita, creator of the world of truth and reality, Mitra, lord of light and love, and Varuna, lord of judgement and boundless abundance, may they all bear and bring for us all holy good fortune, power of choice and action, and wondrous variety of wealth blest with brave progeny, lands, cows and culture of enlightenment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उत्पन्नकर्ता, खरा शासक, प्रेरक व वरण करणाऱ्या परमात्म्याच्या नियमात राहणाऱ्या सर्व विषयांत प्रवेश असणाऱ्या विद्वान लोकांनी जीवन बल, संयम शक्ती व सौभाग्य, ज्ञानबल व कर्तव्यबल माणसांच्या अंत:करणात धारण करावे. ॥१३॥

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