ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 11
म॒हद॒द्य म॑ह॒तामा वृ॑णीम॒हेऽवो॑ दे॒वानां॑ बृह॒ताम॑न॒र्वणा॑म् । यथा॒ वसु॑ वी॒रजा॑तं॒ नशा॑महै॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हत् । अ॒द्य । म॒ह॒ताम् । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । अवः॑ । दे॒वाना॑म् । बृ॒ह॒ताम् । अ॒न॒र्वणा॑म् । यथा॑ । वसु॑ । वी॒रऽजा॑तम् । नशा॑महै । तत् । दे॒वाना॑म् । अवः॑ । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महदद्य महतामा वृणीमहेऽवो देवानां बृहतामनर्वणाम् । यथा वसु वीरजातं नशामहै तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठमहत् । अद्य । महताम् । आ । वृणीमहे । अवः । देवानाम् । बृहताम् । अनर्वणाम् । यथा । वसु । वीरऽजातम् । नशामहै । तत् । देवानाम् । अवः । अद्य । वृणीमहे ॥ १०.३६.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अद्य) आज-इस समय (महतां बृहताम्-अनर्वणां देवानाम्) महत्त्ववाले ज्येष्ठ तथा प्रशस्त अपने ज्ञान में दूसरे पर निर्भर न रहनेवाले विज्ञानी महानुभावों के (महत्-अवः-आ वृणीमहे) उत्कृष्ट श्रवणज्ञान को भली-भाँति अपने अन्दर धारण करते हैं, (यथा) जिससे कि (वीरजातं वसु नशामहे) प्राण आदि इन्द्रियों में बसानेवाले बल को प्राप्त करें। (तद्देवा०) आगे पूर्ववत् ॥११॥
भावार्थ
गुणी श्रेष्ठ महाविद्वानों द्वारा ज्ञान का श्रवण कर प्राण आदि के बल को सुसम्पन्न करें ॥११॥
विषय
वीरजात वसु की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (अद्य) = आज (महताम्) = महान्, पूजा के योग्य (बृहताम्) = शरीर, मन व मस्तिष्क के दृष्टिकोण से वृद्धि को प्राप्त (अनर्वणाम्) = हिंसा की वृत्ति से रहित (देवानाम्) = देवों के (महत् अवः) = महनीय रक्षण का (आवृणीमहे) = वरण करते हैं (यथा) = जिससे कि (वीरजातम्) = वीरों के जन्म देनेवाले (वसु) = धन को (नशामहै) = हम प्राप्त करें। [२] देवों के लक्षणों में प्रथम लक्षण है 'महतां', देव महान् होते हैं, विशाल हृदयवाले होते हैं। दूसरा लक्ष्ण 'बृहतां' शब्द से सूचित हुआ है। ये 'बृहि वृद्धौ' शरीर, मन व मस्तिष्क के दृष्टिकोण से उन्नत होते हैं। तीसरा लक्षण 'अनर्वणाम्' शब्द से कहा गया है, ये हिंसा की वृत्ति से दूर होते हैं । [३] इन देवताओं के सम्पर्क में हमारा जीवन भी इसी प्रकार का बनेगा और इस प्रकार हम अपने जीवन में उस (वसु) = धन को प्राप्त करेंगे जो हमें वीर बनानेवाला होगा। [४] इस प्रकार वसु का सम्पादन करते हुए हम (अद्या) = आज (देवानाम्) = देवों (तद् अवः) = उस रक्षण का (वृणीमहे) = वरण करते हैं। हम अपने जीवनों में दिव्यता को सुरक्षित करने के लिये यत्नशील होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - देव 'महान् बृहत् व अनर्वा' हैं। हमें इनका रक्षण प्राप्त हो ।
विषय
वीर पुरुष, वीर भोग्य ऐश्वर्य की कामना।
भावार्थ
(अद्य) आज, हम लोग (महताम्) बड़े (अनर्वणाम्) अहिंसक और अनुपम, (बृहताम्) शक्ति, ज्ञान, आदि में बढ़े हुए (देवानाम्) विद्वानों, विजयार्थियों और दानियों का (अवः आवृणीमहे) शरण, रक्षण, सब ओर से चाहते हैं। (यथा) जिससे (वीर-जातं) हम वीर पुत्र, और (वीर-जातं वसु) वीरों से प्राप्त होने योग्य ऐश्वर्य को (नशामहै) प्राप्त करें। (देवानाम् अद्य तत् अवः वृणीमहे) हम विद्वानों के वही उत्तम बल ज्ञान, रक्षा आदि चाहते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अद्य) अस्मिन्काले (महतां बृहताम्-अनर्वणां देवानाम्) महत्त्ववतां ज्येष्ठानां तथाऽनर्वणां प्रशस्तानामपितु स्वज्ञानेऽन्यस्मिन्ननाश्रितानां महज्ज्ञानिनाम् “अनर्वाऽप्रत्यृतो-ऽन्यस्मिन्” [निरु० ६।२३] विदुषाम् (महत् अवः-आवृणीमहे) उत्कृष्टं श्रवणं ज्ञानं “अव रक्षण…श्रवण……वृद्धिषु” [भ्वादि०] समन्तात् स्वीकुर्मो धारयामः (यथा) यतो हि (वीरजातं वसु नशामहै) वीरेषु प्राणेषु-इन्द्रियेषु जातं वासयितृ बलं प्राप्नुयाम अग्रे पूर्ववत् ॥११॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Today, the grandeur of the great we ask for, of our own choice, and the protection of the grand progressive and irresistible divinities we pray for, so that we may acquire the security and stability created and established by brave generations of humanity: that is the favour and prayer of our choice for protection of the divinities we ask for this day. 11. Today, the grandeur of the great we ask for, of our own choice, and the protection of the grand progressive and irresistible divinities we pray for, so that we may acquire the security and stability created and established by brave generations of humanity: that is the favour and prayer of our choice for protection of the divinities we ask for this day.
मराठी (1)
भावार्थ
गुणी श्रेष्ठ महा विद्वानांद्वारे ज्ञानाचे श्रवण करून प्राण इत्यादी बल वाढवावे. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal