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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 9
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    स॒नेम॒ तत्सु॑स॒निता॑ स॒नित्व॑भिर्व॒यं जी॒वा जी॒वपु॑त्रा॒ अना॑गसः । ब्र॒ह्म॒द्विषो॒ विष्व॒गेनो॑ भरेरत॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒नेम॑ । तत् । सु॒ऽस॒निता॑ । स॒नित्व॑ऽभिः । व॒यम् । जी॒वाः । जी॒वऽपु॑त्राः । अना॑गसः । ब्र॒ह्म॒ऽद्विषः॑ । विष्व॑क् । एनः॑ । भ॒रे॒र॒त॒ । तत् । दे॒वाना॑म् । अवः॑ । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सनेम तत्सुसनिता सनित्वभिर्वयं जीवा जीवपुत्रा अनागसः । ब्रह्मद्विषो विष्वगेनो भरेरत तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सनेम । तत् । सुऽसनिता । सनित्वऽभिः । वयम् । जीवाः । जीवऽपुत्राः । अनागसः । ब्रह्मऽद्विषः । विष्वक् । एनः । भरेरत । तत् । देवानाम् । अवः । अद्य । वृणीमहे ॥ १०.३६.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 9
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वयं जीवपुत्राः-जीवाः-अनागसः) हम जीते हुवों के पुत्र स्वयं जीते हुए गृहस्थ लोग पाप से रहित (सनित्वभिः सुसनिता तत् सनेम) परमात्मज्ञान के सेवन करनेवालों के द्वारा दिये हुए सम्यक् सेवन किये हुए परमात्मज्ञान से अपने को संसेवित करनेवाले बनें (ब्रह्मद्विषः-एनः-विष्वक् भरेरत) परमात्मा से द्वेष करनेवाले नास्तिक जन उभरे हुए पाप को फलरूप में अपने अन्दर भरें-भोगें। आगे पूर्ववत् ॥९॥

    भावार्थ

    पापरहित हुए, जीते हुए माता पिताओं के पुत्र जीते रहते हैं। परमात्मज्ञान को प्राप्त हुए विद्वान् द्वारा दिए गये परमात्मज्ञान के भागी होना चाहिये। परमात्मा से द्वेष करनेवाले नास्तिक जन पाप का फल भोगते हैं ॥९॥

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    विषय

    संविभाग द्वारा उपासन

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार सोम का भरण व रक्षण करनेवाले (वयम्) = हम (जीवाः) = उत्तम जीवनवाले (जीवपुत्रा) = दीर्घजीवी सन्तानोंवाले (अनागसः) = निष्पाप होते हुए (सनित्वभिः) = संभजन की वृत्तिवाले पुत्र-पौत्रादिकों के साथ (तत्) = उस दिव्यगुणों के समूह को (सुसनिता) = उत्तम संभजन से सनेम उपासित करें। वस्तुतः संविभागपूर्वक धन का सेवन ही प्रभु का उपासन है, यही दिव्यगुणों की प्राप्ति का मार्ग है। 'हविषाविधेम' हवि के द्वारा, दानपूर्वक अदन के द्वारा हम प्रभु का पूजन करें यह मन्त्र भाग कई बार पढ़ा गया है। 'यज्ञ' की मौलिक भावना भी यही है 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा:'- देव यज्ञ के द्वारा ही उस यज्ञ [ = पूज्य] की उपासना करते हैं । [२] (ब्रह्मद्विषः) = ज्ञान से प्रीति न करनेवाले लोग ही (विश्वग्) = विविध गतियोंवाले (एनः) = इस पाप को (भरेरत) = धारण करें। अज्ञानियों में ही पाप का वास हो। हम तो संविभागपूर्वक यज्ञियवृत्ति से वस्तुओं का उपभोग करते हुए ज्ञानी बनें और पाप को अपने से दूर ही रखें। [३] इस प्रकार (तद्) = उस (देवानां अवः) = देवताओं के रक्षण को (अद्या) = आज (वृणीमहे) = हम वरते हैं। अपने अन्दर दिव्यता को धारण करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम संविभाग की वृत्ति से प्रभु का उपासन करनेवाले बनें, ज्ञानी बनकर निष्पाप जीवनवाले हों।

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    विषय

    उसकी अर्चना, भजन आदि।

    भावार्थ

    (वयम्) हम (अनागसः) पापरहित (जीव-पुत्राः) जीवित पुत्रों से युक्त, (जीवाः) स्वयं जीवित रहते हुए (सनित्वभिः) दानशील पुरुषों सहित, (सुसनिता तत् सनेम) सुखपूर्वक सेवन करने और दान आदि के द्वारा उस प्रभु का भजन, सेवा, आदि करें। और (ब्रह्म-द्विषः) विद्वानों, वेदों और आत्मा, परमात्मा के द्वेषी जन (एनः) पाप आदि अपराध को (विश्वक भरेरत) सब प्रकार से भोगें; वे पाप का दण्ड प्राप्त करें। (देवानां तत् अवः अद्य वृणीमहे) हम विद्वानों और दानशील पुरुषों के उस उत्तम स्नेह को प्राप्त करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वयं जीवपुत्राः-जीवाः-अनागसः) वयं जीवत्पुत्राः स्वयं जीवन्तो गृहस्थाः पापरहिताः सन्तः (सनित्वभिः सुसनिता तत् सनेम) परमात्मज्ञानसम्भाजकैः-दत्तेन सुसम्भक्तेन परमात्मज्ञानेन तत् परमात्मज्ञानं सम्भजेम (ब्रह्मद्विषः-एनः-विष्वक् भरेरत) ब्रह्मणः परमात्मनो द्वेष्टारो नास्तिका जना पापं विकीर्णमपि फलरूपेण तत्फलमिति यावत् स्वात्मनि भरन्तु भुञ्जीरन् अग्रे  पूर्ववत् ॥९॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let us join and live that Soma spirit of life along with all others who live it with passion and enthusiasm. We are all children of life, living and vibrant with our children and grand children, free from sin and crime.$Let others who negate, hate and violate that universal Spirit of love, life and peace bear, for that reason, their negativities and the dispensation thereof. And that favour of the love of Soma and protection against negativities we beg of the divinities this day.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पापरहित अशा माता-पित्याचे पुत्र दीर्घजीवी होतात. परमात्मज्ञान प्राप्त केलेल्या विद्वानाद्वारे दिलेल्या परमात्मज्ञानाचे भागीदार झाले पाहिजे. परमात्म्याचा द्वेष करणारे नास्तिक लोक पापाचे फळ भोगतात. ॥९॥

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