ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 67/ मन्त्र 11
स॒त्यामा॒शिषं॑ कृणुता वयो॒धै की॒रिं चि॒द्ध्यव॑थ॒ स्वेभि॒रेवै॑: । प॒श्चा मृधो॒ अप॑ भवन्तु॒ विश्वा॒स्तद्रो॑दसी शृणुतं विश्वमि॒न्वे ॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्याम् । आ॒ऽशिष॑म् । कृ॒णु॒त॒ । व॒यः॒ऽधै । की॒रिम् । चि॒त् । हि । अव॑थ । स्वेभिः॑ । एवैः॑ । प॒श्चा । मृधः॑ । अप॑ । भ॒व॒न्तु॒ । विश्वाः॑ । तत् । रो॒द॒सी॒ इति॑ । शृ॒णु॒त॒म् । वि॒श्व॒मि॒न्वे इति॑ वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वे ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्यामाशिषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्ध्यवथ स्वेभिरेवै: । पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे ॥
स्वर रहित पद पाठसत्याम् । आऽशिषम् । कृणुत । वयःऽधै । कीरिम् । चित् । हि । अवथ । स्वेभिः । एवैः । पश्चा । मृधः । अप । भवन्तु । विश्वाः । तत् । रोदसी इति । शृणुतम् । विश्वमिन्वे इति विश्वम्ऽइन्वे ॥ १०.६७.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 67; मन्त्र » 11
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सत्याम्-आशिषं कृणुत) हे राज्याधिकारियों ! तुम प्रजा की प्रार्थना को, कामना को सफल करो (कीरिं चित्-हि वयोधै स्वेभिः-एवैः-अवथ) स्तुति करनेवाले प्रशंसक, युक्तोपदेष्टा को भी अवश्य अन्नविधानार्थ अपने रक्षणप्रकारों से रक्षित करो (विश्वाः-मृधः पश्चा अप भवन्तु) सब हिंसक आपत्तियाँ पीछे ही अर्थात् पृथक् ही रह जावें (विश्वमिन्वे रोदसी शृणुतम्) सब प्रणिमात्र को तृप्त करनेवाली राजसभा और सेना प्रजाजन के वचन को स्वीकार करो ॥११॥
भावार्थ
राजपुरुषों को चाहिए कि प्रजा की प्रार्थना पर ध्यान दें और सच्चे उपदेष्टा की रक्षा करें। समस्त आपदाओं को राष्ट्र से दूर भगाएँ, प्राणियों की हितसाधिका राजसभा और सेना प्रजा के दुःख दर्द को सुनें ॥११॥
विषय
विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (वयोधै) दीर्घ जीवन, ज्ञान और बल को धारण करने के लिये (सत्याम् आशिषं) सत्य २ आशीष् आशीर्वाद और सत्य आशा को सफल करो। और (स्वेभिः एवैः) अपने २ ज्ञानों और उद्योगों से (कीरिम् चित्) उपदेष्टा, ज्ञानप्रद वा प्रार्थी पुरुष की (अवथ) रक्षा करो, उससे स्नेह करो। और (मृधः) हिंसक, दुःखदायी सब आपत्तियें (पश्चा) पीछे रह जावें और (विश्वाः) समस्त (अप भवन्तु) हम से दूर, पृथक हों। हे (विश्वमिन्वे) सबको प्रसन्न एवं पुष्ट करने वाले स्त्री पुरुषो वा राजा प्रजा वर्गो ! हे (रोदसी) रुद्र दुष्टों के रुलाने वाले वा रोग दूर करने वाले वा उपदेष्टा, सेनापति, वैद्य, गुरु आदि उसकी आज्ञा की पालक सेना, विद्या वा शक्ति के तुल्य जनो ! आप (शृणुतम्) सुनो और तदनुसार कर्त्तव्य पालन करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अयास्य आंगिरस ऋषिः॥ बृहस्पतिर्देवता॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप्। २–७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ८–१०,१२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्।
विषय
विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य
पदार्थ
हे विद्वान् पुरुषो! आप लोग (वयोधैः) = दीर्घ जीवन धारण करने के लिये (सत्याम् आशिषं) = सत्य-सत्य आशीर्वाद और सत्य आशा को सफल करो और (स्वेभिः एवैः) = अपने-अपने ज्ञानों और उद्योगों से (कीरिम् चित्) = उपदेष्टा, ज्ञानप्रद वा प्रार्थी पुरुष की (अवथ) = रक्षा करो। (मृधः) = हिंसक दुःखदायी सब आपत्तियें (पश्चा) = पीछे रह जावें, (अप भवन्तु) = और हमसे पृथक् हो जावें । हे (विश्वमिन्वे) = सबको प्रसन्न एवं पुष्ट करनेवाले स्त्री-पुरुषो! हे (रोदसी) = दुष्टों के रुलानेवाले वा दूर करनेवाले सेनापति तथा वैद्य लोगो ! आप (शृणुतम्) = सुनो और तदनुसार कर्त्तव्य पालन रोग करो ।
भावार्थ
भावार्थ-विज्ञजनों के आशीर्वाद से हम दुःखों से तर कर आनन्द को प्राप्त करें ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सत्याम्-आशिषं कृणुत) हे राज्याधिकारिणो ! यूयं प्रार्थनां कामनां सफलां कुरुत (किरिं चित्-हि वयोधै स्वेभिः-एवैः-अवथ) स्तोतारं प्रशंसकं युक्तोपदेष्टारमप्यवश्यमन्नविधानैः स्वै रक्षणैः-रक्षथ (विश्वाः-मृधः-पश्चा-अप भवन्तु) सर्वाः खलु हिंसिका आपदः पश्चादेव पृथग् भवन्तु (विश्वमिन्वे रोदसी शृणुतम्) सर्वप्राणिमात्रं प्रीणयित्र्यौ द्यावापृथिव्याविव राजसभासेने प्रजाजनस्य मम वचनं स्वीकुरुत ॥११॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Brhaspati, O leading lights of humanity, for food and energy, good health and age, fulfil the hopes and ambitions of the people and justify your words of purpose to the point of truth without compromise. Protect the cooperator and celebrant with your own power and security. Then let all violence, enmity and sabotage be overcome and cast off totally far away. And may the heaven and earth, givers of universal fulfilment listen to our prayer and adoration.
मराठी (1)
भावार्थ
राजपुरुषांनी प्रजेच्या प्रार्थनेकडे लक्ष द्यावे. खऱ्या उपदेशकाचे रक्षण करावे. संपूर्ण संकटांना राष्ट्रापासून दूर ठेवावे. प्राण्यांचे हित करून राजसभा व सेनेने प्रजेचे दु:ख दूर करावे. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal