ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 96/ मन्त्र 5
ऋषिः - बरुः सर्वहरिर्वैन्द्रः
देवता - हरिस्तुतिः
छन्दः - स्वराडार्चीजगती
स्वरः - निषादः
त्वंत्व॑महर्यथा॒ उप॑स्तुत॒: पूर्वे॑भिरिन्द्र हरिकेश॒ यज्व॑भिः । त्वं ह॑र्यसि॒ तव॒ विश्व॑मु॒क्थ्य१॒॑मसा॑मि॒ राधो॑ हरिजात हर्य॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम्ऽत्व॑म् । अ॒ह॒र्य॒थाः॒ । उप॑ऽस्तुतः । पूर्वे॑भिः । इ॒न्द्र॒ । ह॒रि॒ऽके॒श॒ । यज्व॑ऽभिः । त्वम् । ह॒र्य॒सि॒ । तव॑ । विश्व॑म् । उ॒क्थ्य॑म् । असा॑मि । राधः॑ । ह॒रि॒ऽजा॒त॒ । ह॒र्य॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वंत्वमहर्यथा उपस्तुत: पूर्वेभिरिन्द्र हरिकेश यज्वभिः । त्वं हर्यसि तव विश्वमुक्थ्य१मसामि राधो हरिजात हर्यतम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्ऽत्वम् । अहर्यथाः । उपऽस्तुतः । पूर्वेभिः । इन्द्र । हरिऽकेश । यज्वऽभिः । त्वम् । हर्यसि । तव । विश्वम् । उक्थ्यम् । असामि । राधः । हरिऽजात । हर्यतम् ॥ १०.९६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 96; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (हरिकेश) अज्ञानहरणशील ज्ञानप्रकाश वेदवाले (त्वं त्वम्) तू ही केवल (पूर्वेभिः) पुरातन (यज्वभिः) अध्यात्मयाजी अग्न्यादि परम ऋषियों द्वारा तथा नवीन ऋषियों द्वारा (उपस्तुतः) उपासना करने योग्य है (अहर्यथाः) तू ही स्तुतिकर्त्ता उपासकों को चाहता है (तव) तेरा रचित (विश्वम्) जगत् (असामि) पूर्ण (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय है (हरिजात) मनुष्यों में प्रसिद्ध साक्षाद्भूत परमात्मन् ! (त्वम्) तू (हर्यतम्) कामनायोग्य (राधः) आराधना को-स्तुति भजन को (हर्यसि) चाहता है, अतः तेरा आराधन करना चाहिये ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा के रचे वेद अज्ञान का नाश करनेवाले हैं तथा यह पुरातन अग्नि आदि परम ऋषियों के द्वारा तथा नवीन ऋषियों द्वारा भी उपासना करने योग्य है, वह उपासना को चाहता है, उपासना से मनुष्यों के अन्दर साक्षात् होता है, इसलिये उसकी उपासना करनी चाहिये ॥५॥
विषय
अनन्त ऐश्वर्यवाले प्रभु
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् ! (हरिकेशः) = दुःखहरण की साधनभूत प्रकाशमय किरणोंवाले प्रभो ! (पूर्वेभिः) = अपना पूरण करनेवाले, मानस न्यूनताओं को दूर करनेवाले (यज्वभिः) = यज्ञशील पुरुषों से (उपस्तुतः) = स्तुति किये जाने पर (त्वं त्वम्) = आप और आप ही (अहर्यथाः) = उन उपासकों को प्राप्त होते हो । (त्वं हर्यसि) = आप ही उनके हित की कामना करते हो। [२] हे (हरिजात) = प्रकाश की किरणों से प्रादुर्भूत होनेवाले प्रभो ! (तव) = आपका ही यह (विश्वम्) = सम्पूर्ण (उक्थ्यम्) = प्रशंसनीय (हर्यतम्) = कमनीय (असामि) = पूर्ण [न अधूरा ] राधः = ऐश्वर्य है। आपके ऐश्वर्य से ही ऐश्वर्य- सम्पन्न होकर हम अपने कार्यों को सिद्ध कर पाते हैं [ राध संसिद्धौ ] ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु यज्ञशील व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं। प्रभु का ऐश्वर्य पूर्ण है ।
विषय
हरिकेश प्रभु का कमनीय रूप।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे (हरि-केश) तेजोमय किरणों वाले, तू (पूर्वेभिः यज्वभिः) पूर्व के देव उपासना करने वाले यज्ञशील जनों से (उप-स्तुतः) स्तुति करने योग्य (त्वम्-त्वम्) तू ही एकमात्र (अहर्यथाः) सब दुःखों को दूर करता है। (त्वम् हर्यसि) तू ही सबको चाहता है, (तव विश्वम् उक्थ्यम्) तेरी ही समस्त प्रशंसा है, और हे (हरि-जात) समस्त लोकों और किरणों के उत्पादक ! सूर्यवत् प्रभो ! (तव) तेरा ही (विश्वं) समस्त (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (असामि) असाधारण, पूर्ण, (हर्यतम् राधः) कान्तियुक्त मनोहर धन और आराधना करने योग्य रूप है। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्वरुः सर्वहरिर्वैन्द्रः। देवताः—हरिस्तुतिः॥ छन्द्र:- १, ७, ८, जगती। २–४, ९, १० जगती। ५ आर्ची स्वराड जगती। ६ विराड् जगती। ११ आर्ची भुरिग्जगती। १२, १३ त्रिष्टुप्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (हरिकेश) अज्ञानहरणशीलाः केशा ज्ञानप्रकाशा वेदा यस्य तथाभूतपरमेश्वर “हरिकेशः-हरणशीलाः केशाः प्रकाशा यस्य सः” [यजु० १५।१५ दयानन्दः] (त्वं त्वम्) त्वं हि केवलं (पूर्वेभिः-यज्वभिः-उपस्तुतः) पुरातनैवाध्यात्मयाजिभिः परमर्षिभिरग्न्यादिभिस्त्वं हि नूतनैरप्यध्यात्मयाजिभिरुपस्तोतव्य उपासितव्यः, (अहर्यथाः) त्वं हि स्तोतॄनुपासकान् कामयसे (तव विश्वम्-असामि-उक्थ्यम्) तव रचितं जगत् सकलं प्रशंसनीयमस्ति (हरिजात) हरिषु मनुष्येषु जातः प्रसिद्धः साक्षाद्भूत परमात्मन् ! (त्वं हर्यतं राधः-हर्यसि) कमनीयं राधनमाराधनं कामयसे तवाराधनं कार्यम् ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of light and knowledge, self- manifested universal spirit of light, love and beauty, loved and adored by the earliest celebrant sages, you alone received, acknowledged and blest the adorations of the past, and you alone are the sole, unique, beloved, universally adorable giver of success and fulfilment who love, receive, acknowledge and bless the gifts of adoration and yajna offered to you.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने निर्माण केलेले वेद अज्ञानाचा नाश करणारे आहेत. ते प्राचीन अग्नी इत्यादी श्रेष्ठ ऋषिद्वारे व नवीन ऋषिद्वारेही उपासना करण्यायोग्य आहेत. उपासक परमेश्वराला आवडतात. उपासनेद्वारे माणसांमध्ये साक्षात्कार होतो. त्यासाठी त्याची उपासना केली पाहिजे. ॥५॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal