ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 96/ मन्त्र 6
ऋषिः - बरुः सर्वहरिर्वैन्द्रः
देवता - हरिस्तुतिः
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
ता व॒ज्रिणं॑ म॒न्दिनं॒ स्तोम्यं॒ मद॒ इन्द्रं॒ रथे॑ वहतो हर्य॒ता हरी॑ । पु॒रूण्य॑स्मै॒ सव॑नानि॒ हर्य॑त॒ इन्द्रा॑य॒ सोमा॒ हर॑यो दधन्विरे ॥
स्वर सहित पद पाठता । व॒ज्रिण॑म् । म॒न्दिनम् । स्तोम्य॑म् । मदे॑ । इन्द्र॑म् । रथे॑ । व॒ह॒तः॒ । ह॒र्य॒ता । हरी॒ इति॑ । पु॒रूणि॑ । अ॒स्मै॒ । सव॑नानि । हर्य॑ते । इन्द्रा॑य । सोमाः॑ । हर॑यः । द॒ध॒न्वि॒रे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता वज्रिणं मन्दिनं स्तोम्यं मद इन्द्रं रथे वहतो हर्यता हरी । पुरूण्यस्मै सवनानि हर्यत इन्द्राय सोमा हरयो दधन्विरे ॥
स्वर रहित पद पाठता । वज्रिणम् । मन्दिनम् । स्तोम्यम् । मदे । इन्द्रम् । रथे । वहतः । हर्यता । हरी इति । पुरूणि । अस्मै । सवनानि । हर्यते । इन्द्राय । सोमाः । हरयः । दधन्विरे ॥ १०.९६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 96; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वज्रिणम्) ओजस्वी (मन्दिनम्) आनन्द देनेवाले (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्य (इन्द्रम्) परमात्मा को (ता हर्यता हरी) वे दोनों कामना करनेवाले ज्ञानाहरणशील सुनाने और सुननेवाले (मदे रथे) हर्षस्थान रमणगृह-मन में (वहतः) प्राप्त करते हैं (अस्मै हर्यते) इस कमनीय (इन्द्राय) परमेश्वर के लिये (पुरूणि) बहुत (सवनानि) स्तोतव्य स्थान हैं (सोमाः) सौम्य स्वभाववाले मनुष्य (दधन्विरे) उस परमेश्वर को अपने अन्दर धारण करते हैं-उसका ध्यान करते हैं ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा आनन्द के देनेवाला स्तुति योग्य है, उसका श्रवण करने करानेवाले अपने मन में उसे धारण करते हैं, पुनः मनन करके साक्षात् करते हैं ॥६॥
विषय
यज्ञशीलता व सोमधारण
पदार्थ
[१] (ता) = वे प्रभु से दिये गये (हर्यता) = गतिशील (हरी) = इन्द्रियाश्व (मदे) = आनन्द प्राप्ति के निमित्त (रथे:) = इस शरीर - रथ में (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (वहतः) = धारण कराते हैं, जो (वज्रिणम्) = क्रियाशीलतारूप वज्रवाले हैं (मन्दिने) = आनन्दमय हैं तथा (स्तोभ्यम्) = स्तुति के योग्य हैं। वस्तुत: जब हमारी कर्मेन्द्रियाँ व ज्ञानेन्द्रियाँ हमें प्रभु की ओर ले चलती हैं तो हमारा जीवन क्रियामय बनता है, हमें आनन्द व हर्ष की प्राप्ति होती है और हम स्तुत्व जीवनवाले होते हैं । [२] (अस्मै) = इस (हर्यते) = कान्त व गतिशील (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिए (पुरूणि सवनाति) = पालनात्मक व पूरणात्मक यज्ञ होते हैं । यज्ञों के द्वारा ही प्रभु का उपासन होता है, ये यज्ञ ही हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाले हैं । [३] इस (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिए ही (हरयः) = सब रोगों का हरण करनेवाले (सोमाः) = सोमकण (दधन्विरे) = धारण किये जाते हैं। इन सोमकणों के धारण से ही हमारी ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हमें प्रभु-दर्शन के योग्य बनाती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम यज्ञशील हों और सोमकणों का शरीर में ही रक्षण करें ।
विषय
सर्वस्तुत्य प्रभु।
भावार्थ
(ता) वे अनेक (हर्यता हरी) आगे बढ़ने वाले, भूमि और सूर्यवत् नर नारी (मदे) हर्षजनक (रथे) रमणीय सुख के निमित्त अपने चित्त में (वज्रिणम्) बलशाली, सर्वशक्तिमान्, (मन्दिनं) हर्ष-आनन्दयुक्त, (स्तोम्यं) स्तुत्य (इन्द्रं) परमेश्वर को (वहतः) अपने अन्तःकरण में राजा को रथ में अश्वों के तुल्य धारण करते हैं। (सोमःहरयः) उत्पन्न हुए लोक वा प्राणी, मनुष्य जन (अस्मै हर्यते) इस कामना योग्य (इन्द्राय) सर्वैश्वर्यवान् प्रभु की ही (सवनानि) उपासनाओं, वा ऐश्वर्यों को (दधन्विरे) धारण करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्वरुः सर्वहरिर्वैन्द्रः। देवताः—हरिस्तुतिः॥ छन्द्र:- १, ७, ८, जगती। २–४, ९, १० जगती। ५ आर्ची स्वराड जगती। ६ विराड् जगती। ११ आर्ची भुरिग्जगती। १२, १३ त्रिष्टुप्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वज्रिणं मन्दिनं स्तोम्यम्-इन्द्रम्) ओजस्विनं मन्दयितारमा-नन्दयितारं स्तोतव्यमैश्वर्यवन्तं परमेश्वरं (ता हर्यता हरी मदे रथे वहतः) तौ कामयमानौ हरणशीलौ श्रावयितृश्रोतारौ “हरी हरणशीलावध्यापकाध्येतारौ” [यजु० ३३।७८ दयानन्दः] हर्षसमये रमणगृहे मनसि प्रापयतः (अस्मै हर्यते-इन्द्राय पुरूणि सवनानि) एतस्मै कमनीयाय परमेश्वराय बहूनि स्तोतव्यस्थानानि सन्ति (सोमाः-दधन्विरे) यत्र सोम्यस्वभावा मनुष्यास्तं परमेश्वरं दधति ध्यायन्ति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Those adorable carriers, centrifugal and centripetal forces of divine nature, bear and sustain the power and presence of the thunder armed, joyous, adorable Indra in the divine blissful chariot as the universe of existence. For this Indra, blissful lord, many yajna sessions, soma oblations and beautiful gifts of homage are prepared and offered.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर आनंददाता असून, स्तुती करण्यायोग्य आहे. त्याचे श्रवण करणारे, करविणारे आपल्या मनात त्याला धारण करतात. पुन्हा मनन करून साक्षात करतात. ॥६॥
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