ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 12
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - आदित्याः
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
तत्सु न॒: शर्म॑ यच्छ॒तादि॑त्या॒ यन्मुमो॑चति । एन॑स्वन्तं चि॒देन॑सः सुदानवः ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । सु । नः॒ । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ । आदि॑त्याः । यत् । मुमो॑चति । एन॑स्वन्तम् । चि॒त् । एन॑सः । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तत्सु न: शर्म यच्छतादित्या यन्मुमोचति । एनस्वन्तं चिदेनसः सुदानवः ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । सु । नः । शर्म । यच्छत । आदित्याः । यत् । मुमोचति । एनस्वन्तम् । चित् । एनसः । सुऽदानवः ॥ ८.१८.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 12
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(सुदानवः) हे शोभनदानः (आदित्याः) विद्वांसः ! (नः) अस्मभ्यम् (तत्, शर्म, यच्छत) तादृशं सुखं दत्त (यत्) यत्सुखम् (एनस्वन्तम्) पापिनम् (एनसः) पापात् (मुमोचति, चित्) मोचयत्येव ॥१२॥
विषयः
पुनस्तदनुवर्त्तते ।
पदार्थः
हे आदित्याः=आचार्य्याः । नोऽस्मभ्यम् । तत्+शर्म=तज्ज्ञानरूपं कल्याणम् । सु=सुष्ठु यच्छतं दत्त । हे सुदानवः=शोभनदानाः । यत् शर्म । एनस्वन्तं चिद् पापिनमपि पुत्रादिकम् । एनसः=पापात् । मुमोचति=मोचयितुं शक्नोति ॥१२ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(सुदानवः) हे शोभन दानवाले (आदित्याः) विद्वानों ! आप (नः) हमको (तत्, शर्म, यच्छत) उस सुख को दें (यत्) जो (एनस्वन्तम्) पापी को (एनसः) पाप से (मुमोचति, चित्) छुड़ा ही देता है ॥१२॥
भावार्थ
हे श्रेष्ठसम्पत्तिवाले विद्वान् पुरुषो ! आप विद्या के दान द्वारा हमको पवित्र भावों में परिणत करें, जिससे हम सब पापों से निवृत्त होकर सुखी हों ॥१२॥
विषय
पुनः वही विषय कहा जाता है ।
पदार्थ
(सुदानवः) हे सुन्दर दान देनेवाले (आदित्याः) आचार्य्यों (नः) हमको (तत्+शर्म) उस कल्याण को (सु) अच्छे प्रकार (यच्छत) दीजिये (यत्) जो कल्याण (एनस्वन्तम्+चित्) पापयुक्त भी हम लोगों के पुत्रादिक को (एनसः) पाप से (मुमोचति) छुड़ा सके । वह ज्ञानरूप कल्याण है । वही आदमी को पाप से बचा सकता है ॥१२ ॥
भावार्थ
ईश्वर से ज्ञानरूप कल्याण की याचना करनी चाहिये, वही मनुष्य को पाप से बचा सकता है ॥१२ ॥
विषय
विद्वानों से अज्ञान और पापनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे ( आदित्याः ) आदित्य के समान तेजस्वी, एवं अदिति अर्थात् अखण्ड परब्रह्म के उपासक वा वेदवाणी में निष्णात विद्वान् पुरुषो ! हे ( सु-दानवः ) उत्तम दानशील जनो ! ( यत् ) जो ( एनस्वन्तं चित् ) पापी को ( एनसः सुमोचति ) पाप से मुक्त कर देता है, आप ( तत् शर्म ) वह शान्ति सुखदायक, शरण वा दण्डव्यवस्था ( नः यच्छत ) हमें प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
सुदानव
पदार्थ
हे (आदित्याः) = विद्वानो ! (सुदानवः) = दानवीरो ! (यत) = जो (एनस्वन्तम् चित्) = पापी को पाप से (मुमोचति) = छुड़ाता है, (तत्) = उस (शर्म) = सुख को (नः) = हमें (यच्छत) = दीजिए।
भावार्थ
भावार्थ- हम पाप कर्म छोड़कर सुखी होवें ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Adityas, children of the light of life eternal, holy givers of the best of life, thought and action, bring us that peace and joy which gives us freedom, that freedom which saves and liberates even the worst of sinners from sin and evil.
मराठी (1)
भावार्थ
ईश्वराकडून ज्ञानरूप कल्याणाची याचना केली पाहिजे. तोच माणसाला पापांपासून वाचवू शकतो ॥१२॥
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