ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 13
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - आदित्याः
छन्दः - पादनिचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
यो न॒: कश्चि॒द्रिरि॑क्षति रक्ष॒स्त्वेन॒ मर्त्य॑: । स्वैः ष एवै॑ रिरिषीष्ट॒ युर्जन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयः । नः॒ । कः । चि॒त् । रिरि॑क्षति । र॒क्षः॒ऽत्वेन॑ । मर्त्यः॑ । स्वैः । सः । एवैः॑ । रि॒रि॒षी॒ष्ट॒ । युः । जनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो न: कश्चिद्रिरिक्षति रक्षस्त्वेन मर्त्य: । स्वैः ष एवै रिरिषीष्ट युर्जन: ॥
स्वर रहित पद पाठयः । नः । कः । चित् । रिरिक्षति । रक्षःऽत्वेन । मर्त्यः । स्वैः । सः । एवैः । रिरिषीष्ट । युः । जनः ॥ ८.१८.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(यः, कश्चित्, मर्त्यः) यः कश्चिन्मनुष्यः (नः) अस्मान् (रक्षस्त्वेन, रिरिक्षति) रक्षोभावेन हिंसितुमिच्छति (सः, युः, जनः) स दुराचारी जनः (स्वैः, एवैः, रिरिषीष्ट) स्वैराचरणैरेव हिंसिषीष्ट ॥१३॥
विषयः
पुनस्तमर्थमाह ।
पदार्थः
यः कश्चिन् मर्त्यः=मनुष्यः । रक्षस्त्वेन=राक्षसभावेन=राक्षसीं वृत्तिमाश्रित्य । नोऽस्मान् । रिरिक्षति=जिघांसति । रिष हिंसायाम् । स जनः । स्वै=स्वकीयैः । एवैः=कर्मभिः । युः=दुखं गच्छन् सन् । रिरिषीष्ट=हिंसितो भूयात् ॥१३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(यः, कश्चित्, मर्त्यः) जो कोई मनुष्य (नः) हमको (रक्षस्त्वेन, रिरिक्षति) राक्षसभाव से हिंसित करना चाहता है (सः, युः, जनः) वह दुराचारी जन (स्वैः, एवैः) अपने आचरणों से (रिरिषीष्ट) हिंसित हो ॥१३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में ईर्षा-द्वेष का निषेध करके पुरुष को शक्त्तिसम्पन्न होने का उपदेश किया गया है अर्थात् जो पुरुष किसी को हिंसकभाव से दुःख पहुँचाता है, वह अपने पापरूप आचरणों से स्वयं नाश को प्राप्त हो जाता है, इसलिये पुरुष को सदा अहिंसकभावोंवाला होना चाहिये, हिंसक स्वभाववाला नहीं ॥१३॥
विषय
पुनः वही विषय कहा जाता है ।
पदार्थ
(यः) जो (कः+चित्) कोई (मर्त्यः) मनुष्य (रक्षस्त्वेन) राक्षसी वृत्ति धारण कर (नः) हमारी (रिरिक्षति) हिंसा करना चाहता है । (सः+जनः) वह आदमी (स्वैः+एवैः) निज कर्मों से ही (युः) दुःख पाता हुआ रिरिषीष्ट विनष्ट होजाय ॥१३ ॥
भावार्थ
अपने अपराधी से बदला लेने की न चेष्टा करे, ईश्वर की इच्छा पर उसे छोड़ देवे । वह शत्रु अवश्य अपने कर्मों से सन्तप्त होता रहेगा या दुष्टता से निवृत्त होगा ॥१३ ॥
विषय
विद्वानों से अज्ञान और पापनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
( यः ) जो ( कश्चित् ) कोई ( मर्त्यः ) हिंसक मनुष्य ( रक्षस्त्वेन ) अपने हिंसक स्वभाव से ( नः ) हमें ( रिरिक्षति ) मारना या पीड़ित करना चाहता है ( सः ) वह ( युः ) दुःखदायी ( जनः ) मनुष्य ( स्वैः एवैः ) अपने ही आचरणों से ( रिरिषीष्ट ) पीड़ित होता है।
टिप्पणी
हिंस्रः स्वपापेन विहिंसितः खलः॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
रिरिषीष्ट
पदार्थ
[१] (यः कश्चित् मर्त्यः) = जो कोई मनुष्य (रक्षस्त्वेन) = अपनी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण (नः) = हमें (रिरिक्षति) = [जिहिंसिषति] मारना चाहता है। (सः) = वह (जनः) = मनुष्य (स्वैः एवैः) = अपनी ही इन गतियों से (युः) = दुःख को प्राप्त होता हुआ (रिरिषीष्ट) = हिंसित हो जाये। [२] पापी का पापकर्म उसी को हानि करनेवाला हो। हम उन कर्मों से व्यर्थ में परेशान न हों।
भावार्थ
भावार्थ- पापी का पापकर्म उसी के पतन का कारण बने। हम उसके दुष्कर्म का शिकार न हों। सामान्यतः समझदारी से चलते हुए हम इन राक्षसी भावों को सफल न होने दें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Let the mortal who of his own evil nature seeks to injure us by his evil design perish in consequence of his own evil actions. Let such a man be off from us.
मराठी (1)
भावार्थ
आपला अपराधी असलेल्याचा सूड घेण्याचा प्रयत्न न करता ईश्वराच्या इच्छेवर सोडून द्यावे. शत्रू अवश्य आपल्या कर्माने दु:खी होईल किंवा दुष्टता सोडून देईल. ॥१३॥
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