Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 18 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 4
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    दे॒वेभि॑र्देव्यदि॒तेऽरि॑ष्टभर्म॒न्ना ग॑हि । स्मत्सू॒रिभि॑: पुरुप्रिये सु॒शर्म॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वेभिः॑ । दे॒वि॒ । अ॒दि॒ते॒ । अरि॑ष्टऽभर्मन् । आ । ग॒हि॒ । स्मत् । सू॒रिऽभिः॑ । पु॒रु॒ऽप्रि॒ये॒ । सु॒शर्म॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवेभिर्देव्यदितेऽरिष्टभर्मन्ना गहि । स्मत्सूरिभि: पुरुप्रिये सुशर्मभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवेभिः । देवि । अदिते । अरिष्टऽभर्मन् । आ । गहि । स्मत् । सूरिऽभिः । पुरुऽप्रिये । सुशर्मऽभिः ॥ ८.१८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (देवि) हे द्योतमाने (अरिष्टभर्मन्) अविनाशिपालने (पुरुप्रिये) बहूनां प्रिये (अदिते) दैन्यरहितविद्ये ! (देवेभिः) दिव्यशक्तिभिः (सुशर्मभिः, सूरिभिः) सुसुखप्रदैर्विद्वद्भिः (स्मत्) शोभनरीत्या (आगहि) आयाहि नः ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषयः

    बुद्धिं सम्बोध्योपदिशति ।

    पदार्थः

    हे देवि=दिव्यगुणभूषिते, हे अरिष्टभर्मन्=अरिष्टानामदुष्टानां भर्मन्=पोषिके, हे पुरुप्रिये=बहुप्रिये सर्वप्रिये, अदिते=अखण्डनीये बुद्धे ! सूरिभिः=विद्वद्भिराविष्कारकर्तृभिः । सुशर्मभिः=शोभनकल्याणैः । देवेभिः=दिव्यगुणयुक्तैः सह । स्मदिति शोभायाम् । शोभनं यथा भवति तथा । आगहि=आगच्छ ॥४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (देवि) हे द्योतमान (अरिष्टभर्मन्) अविनाशी पालन करनेवाली (पुरुप्रिये) अनेकों की प्रिया (अदिते) दीनतारहित विद्ये ! (देवेभिः) दिव्यशक्तिवाले (सुशर्मभिः) सुन्दर कल्याणवाले (सूरिभिः) विद्वानों द्वारा (स्मत्) शोभन रीति से (आगहि) आप हमारे पास आवें ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि पुरुष को प्रकाशित करनेवाली, सब पदार्थों की द्योतक, पुरुष को ऐश्वर्य्य में परिणत करनेवाली और दीनतारहित भावों को मनुष्य में प्रवेश करानेवाली विद्या उक्त विद्वानों को संगति द्वारा ही प्राप्त हो सकती है, इसलिये प्रजाजनों को उचित है कि विद्याप्राप्ति के लिये विद्वानों का सङ्ग करे ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बुद्धि को सम्बोधित कर उपदेश देते हैं ।

    पदार्थ

    (देवि) हे दिव्यगुणयुक्ते (अरिष्टभर्मन्) अदुष्टपोषिके (पुरुप्रिये) बहुप्रिये (अदिते) बुद्धे ! आप (सूरिभिः) नवीन-२ आविष्कारकारी विद्वानों (सुशर्मभिः) और मङ्गलमय (देवेभिः) दिव्यगुणसमन्वित पुरुषों के साथ (स्मत्) जगत् की शोभा के लिये (आगहि) आइये ॥४ ॥

    भावार्थ

    ऐसे-२ प्रकरण में अदिति नाम सुबुद्धि का है । विद्वानों और मङ्गलकारी मनुष्यों की यदि सुबुद्धि हो, तो संसार का बहुत उपकार हो सकता है, क्योंकि वे तत्त्ववित् पुरुष हैं । अतः बुद्धि के लिये प्रार्थना है ॥४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विदुषी माता के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( अदिते ) अखण्ड चरित्रवाली ! भूमिवत् वा मातावत् पालन करने वाली ! हे ( पुरुप्रिये ) बहुतों को प्रिय लगने हारी, सबको प्रसन्न करने हारी ( देवि ) विदुषि ! हे ( अरिष्टभर्मन् ) सुखों को पूर्ण करने वाली, अहिंसित बालक पुत्रों को पोषण करने वाली वा वाणी ( देवेभिः ) शुभ गुणवान् ( सूरिभिः ) विद्वान् ( सु-शर्मभिः ) उत्तम गृहस्थों सहित ( स्मत् आगहि ) अच्छी प्रकार आदर से प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    देवी अदिति

    पदार्थ

    [१] 'अदिति' स्वास्थ्य की देवता है 'न दितिः यस्याः' [दिति-खण्डन] । यह स्वास्थ्य दिव्य गुणों को जन्म देता है, सो यह अदिति 'देवी' है, यास्क ने इसे 'अदीना देवमाता' कहा है। यह स्वास्थ्य हमें दीनता से ऊपर उठाता है, हमारे अन्दर दिव्य गुणों को जन्म देता है। अहिंसित भरणवाली होने से यह 'अरिष्ट-भर्मा' है। मन्त्र में कहते हैं कि हे (अरिष्टभर्मन्) = अहिंसित भरणवाली, (देवि) = दिव्य गुणों को जन्म देनेवाली (अदिते) = स्वास्थ्य की देवि! तू (देवेभिः) = दिव्यगुणों के साथ (आगहि) = हमें प्राप्त हो। [२] हे (पुरुप्रिये) = खूब ही प्रीणित करनेवाले [सारा आनन्द स्वास्थ्य में ही तो है] अदिते! तू (स्मत्) = प्रशस्त (सूरिभिः) = विद्वानों के साथ (सुशर्मभिः) = उत्तम रक्षण को प्राप्त करानेवाले ज्ञानी पुरुषों के साथ हमें प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम स्वस्थ बनें। यह स्वास्थ्य हमें दिव्य गुणों की ओर प्रेरित करे और हम प्रशस्त ज्ञानियों के सम्पर्क में सुरक्षित जीवनवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Imperishable nature, mother Infinity universally loved and adored, self-refulgent divinity, giver of security in prosperity against adversity, pray come and bring us best of life’s happiness and well being along with brilliant powers of generosity, intelligence and fearless rectitude.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    अशा प्रकरणात अदिती सुबुद्धीचे नाव आहे. विद्वान व मंगल माणसांना जर सुबुद्धी असेल तर जगावर उपकार होऊ शकतो. कारण ते तत्त्व जाणणारे पुरुष असतात. त्यामुळे बुद्धीसाठी प्रार्थना आहे. ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top