ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 9
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - अग्निसूर्यानिलाः
छन्दः - विराडुष्निक्
स्वरः - ऋषभः
शम॒ग्निर॒ग्निभि॑: कर॒च्छं न॑स्तपतु॒ सूर्य॑: । शं वातो॑ वात्वर॒पा अप॒ स्रिध॑: ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । अ॒ग्निः । अ॒ग्निऽभिः॑ । क॒र॒त् । शम् । नः॒ । त॒प॒तु॒ । सूर्यः॑ । शम् । वातः । वा॒तु॒ । अ॒र॒पाः । अप॑ । स्रिधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शमग्निरग्निभि: करच्छं नस्तपतु सूर्य: । शं वातो वात्वरपा अप स्रिध: ॥
स्वर रहित पद पाठशम् । अग्निः । अग्निऽभिः । करत् । शम् । नः । तपतु । सूर्यः । शम् । वातः । वातु । अरपाः । अप । स्रिधः ॥ ८.१८.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ सुखप्राप्त्यर्थं परमात्मा प्रार्थ्यते।
पदार्थः
(अग्निः) अग्रणीः परमात्मा (अग्निभिः) गार्हपत्यादिभिर्भौतिकैः (शम्, करत्) सुखं करोतु (सूर्यः) तत्प्रभावात्सूर्योऽपि (नः, शम्, तपतु) अस्मभ्यं सुखं यथा तथा तपतु (वातः) वायुरपि (अरपाः) निष्पापः (शम्, वातु) सुखम् वातु (स्रिधः) विघ्नानि (अप) अपनीयन्ताम् ॥९॥
विषयः
आशिषं याचते ।
पदार्थः
अग्निः । अग्निभिः=अग्निहोत्रादिभिर्विद्युदादिभिर्वा । नोऽस्माकम् । शम्=रोगाणां शमनम् । करत्=करोतु । सूर्यश्चापि । शम्=रोगशमनं यथा भवति तथा । तपतु=दीप्यताम् । वातः=वायुरपि । अरपः=पापरहितः । वातु=वहतु । तथा । स्रिधः=बाधका रोगादयः । अप=अपगच्छन्तु ॥९ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब सुख की प्राप्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना की जाती है।
पदार्थ
(अग्निः) अग्रणी परमात्मा (अग्निभिः) गार्हपत्यादि भौतिकाग्निहारी (शम्, करत्) शान्ति करे (सूर्यः) और उसकी महिमा से सूर्य भी (नः, शम्, तपतु) हमारे लिये सुखकर तपे (वातः) वायु भी (अरपाः) पापरहित शुद्ध होकर (शम्, वातु) सुखकर बहे (स्रिधाः) सम्पूर्ण विघ्न (अप) दूर हों ॥९॥
भावार्थ
हे सर्वोपरि पूज्य परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि यह भौतिकाग्नि, यह सूर्य्य तथा वायु आदि भौतिक पदार्थ हमारे लिये सुखकर हों और आपकी कृपा से सब विघ्न हमसे दूर रहें, ताकि हम विद्याप्राप्ति द्वारा शारीरिक तथा आत्मिक दोनों प्रकार की उन्नति करें ॥९॥
विषय
इससे आशीर्वाद माँगते हैं ।
पदार्थ
(अग्निः) यह भौतिक अग्नि (अग्निभिः) अग्निहोत्रादि कर्मों से या विद्युदादिकों की सहायता से (शम्) हमारे रोगों का शमन करे या हमको सुख करे (सूर्य्यः) तथा सूर्य्य भी (शम्) कल्याण या रोगशमन जैसे हो, वैसी (तपतु) गरमी देवे । तथा (वातः) वायु भी (अरपाः) पापरहित अर्थात् शीतल मन्द सुगन्धि (वातु) बहे । और (स्रिधः) बाधक रोगादिक विघ्न और शत्रु (अप) विनष्ट होवें ॥९ ॥
भावार्थ
यह स्वाभाविक प्रार्थना है । राजा और अमात्यादिक नाना उपायों से प्रजासम्बन्धी विघ्नों को दूर किया करें ॥९ ॥
विषय
रोगनाशक पदार्थ अग्नि वायु और सूर्य।
भावार्थ
( अग्निः ) अग्नि तत्व ( अनिभिः ) अपने व्यापन और दाह आदि गुणों से युक्त पदार्थों से ( नः शम् करत् ) हमें शान्ति प्रदान करे । ( सूर्यः ) सूर्य ( नः ) हमें शान्ति सुखदायक और रोगशमन करने वाला होकर ( तपतु ) तपे । ( वातः ) वायु ( अरपाः ) रोग रहित होकर ( नः शं वातु ) हमें शान्तिदायक होकर बहे । ( स्त्रिधः अप ) रोगादि दुःखजनक पीड़ाएं दूर हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
शान्ति
पदार्थ
(अग्निः) = अग्नि (अग्निभिः) = आग्नेय पदार्थों से न हमें (शं करत्) = शान्ति प्रदान करे। (सूर्य) = सूर्य (नः) = हमारे लिये (तपतु) = शान्ति से तपे । (वात:) = वायु (अरपा:) = नीरोग (वातु) = बहे। (स्त्रिधः अप) = रोग दूर हों।
भावार्थ
भावार्थ- अग्नि, सूर्य, वायु हमें शान्तिदायक हों।
इंग्लिश (1)
Meaning
May Agni, divine fire of life, with its radiations of heat and light, do us good. May the sun shine warm for the good of all in peace. May the wind blow fragrant and free and bring us the breath of life for all in peace, and may all the divinities of Mother Nature drive away and keep off all negativity and adversities from humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
ही स्वाभाविक प्रार्थना आहे. राजा व अमात्य इत्यादींनी नाना प्रकारचे उपाय योजून प्रजेची विघ्ने दूर करावीत ॥९॥
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