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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 18/ मन्त्र 22
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    ये चि॒द्धि मृ॒त्युब॑न्धव॒ आदि॑त्या॒ मन॑व॒: स्मसि॑ । प्र सू न॒ आयु॑र्जी॒वसे॑ तिरेतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । चि॒त् । हि । मृ॒त्युऽब॑न्धवः । आदि॑त्याः । मन॑वः । स्मसि॑ । प्र । सु । नः॒ । आयुः॑ । जी॒वसे॑ । ति॒रे॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये चिद्धि मृत्युबन्धव आदित्या मनव: स्मसि । प्र सू न आयुर्जीवसे तिरेतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । चित् । हि । मृत्युऽबन्धवः । आदित्याः । मनवः । स्मसि । प्र । सु । नः । आयुः । जीवसे । तिरेतन ॥ ८.१८.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 18; मन्त्र » 22
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (आदित्याः) हे सदाचारारोग्यप्रकारयोः शिक्षका विद्वांसः ! (ये, चित्, नः, हि) येऽस्मासु हि (मृत्युबन्धवः, मनवः) मरणाय सम्भाविताः, मनुष्याः (स्मसि) स्मः तेभ्यः (जीवसे) जीवनाय (स्वायुः) सुखमयमायुः (तिरेतन) प्रयच्छत ॥२२॥ इति अष्टादशं सूक्तमष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    विषयः

    आयुर्वर्धनीय इति दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे आदित्याः=बुद्धिपुत्रा आचार्य्याः ! हि=यस्मात् कारणात् । ये+चित्=ये च वयम् । मनवः=मनुष्याः । स्मसि=स्मः । ते वयम् । मृत्युबन्धवः=मृत्योर्मरणस्य बान्धवाः । मरणधर्माण इत्यर्थः । अतो यूयं नोऽस्माकम् । जीवसे=बहुकालजीवनाय । आयुः । सु=सुष्ठु । प्र+तिरेतन=प्रवर्धयत ॥२२ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (आदित्याः) हे आरोग्य तथा सदाचार के शिक्षक विद्वानो ! (ये, चित्, नः, हि) हम लोगों में जो (मृत्युबन्धवः, मनवः) मृत्यु की सम्भावनावाले मनुष्य (स्मसि) हैं, उसकी (जीवसे) जीवनवृद्धि के लिये (सु, आयुः) सुखमय आयु=जीवनकाल (तिरेतन) प्रदान करें ॥२२॥

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! आप आरोग्य रहने तथा सदाचारी रहने की शिक्षा देनेवाले हैं, आपके उपदेश पर अनुष्ठान करनेवाला पवित्र होता है। हे हमारे रक्षक विद्वज्जन ! हमारे पिता परपिता आदि वृद्ध पुरुष तथा परिवार में रोगार्त्त पुरुष, जो निकट मृत्युवाले हैं, उनके जीवन की वृद्धि अर्थ सुखमय जीवनकाल प्रदान करें, जिससे ये प्रयाणकाल में सद्गति को प्राप्त हों ॥२२॥ यह अठारहवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    आयु बढ़ानी चाहिये, ऐसा दिखाते हैं ।

    पदार्थ

    (आदित्याः) हे बुद्धिपुत्र आचार्य्यो ! (हि) जिस कारण (ये+चित्) जो हम (मनवः) मनुष्य (स्मसि) विद्यमान हैं, वे हम सब (मृत्युबन्धवः) मृत्यु के बन्धु हैं अर्थात् हम सब अवश्य मरनेवाले हैं । इस कारण (नः) हम लोगों के (जीवसे) जीवन के लिये (आयुः) आयु को (सु) अच्छे प्रकार (प्र+तिरेतन) बढ़ा देवें ॥२२ ॥

    भावार्थ

    विद्वानों के सङ्ग से आयु की वृद्धि होती है ॥२२ ॥

    टिप्पणी

    यह अष्टम मण्डल का अठारहवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    विद्वानों से नाना कल्याण-प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    हे ( आदित्याः ) अदिति, परमेश्वर के उपासको ! सूर्य की किरणों के तुल्य ज्ञान के प्रकाशक एवं शोकादि को अन्धकारवत् दूर करने हारे तपस्वी जनो ! ( ये चित् हि ) जो हम ( मृत्यु-बन्धवः ) मौत के बन्धु होकर ( मनवः स्मसि ) मननशील मनुष्य हैं। अतः तू ( नः आयु: ) हमारी आयु को ( जीवसे प्र तिरेतन ) दीर्घ जीवन के लिये बढ़ा। इत्यष्टाविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—७, १०—२२ आदित्यः। ८ अश्विनौ। ९ आग्निसूर्यांनिलाः॥ छन्दः—१, १३, १५, १६ पादनिचृदुष्णिक्॥ २ आर्ची स्वराडुष्णिक् । ३, ८, १०, ११, १७, १८, २२ उष्णिक्। ४, ९, २१ विराडुष्णिक्। ५-७, १२, १४, १९, २० निचृदुष्णिक्॥ द्वात्रिंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    मृत्युबन्धवः मनवः

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्याः) = सूर्य के समान ज्ञानरश्मियों को फैलानेवाले विद्वानो ! (ये चित् हि) = जो निश्चय से हम (मनवः स्मसि) = विचारशील बनते हैं और (मृत्युबन्धवः) = मृत्यु के बन्धु होते हैं, अर्थात् मृत्यु को कभी भूलते नहीं हैं। तो आप (नः) = हमारे जीवसे उत्तम जीवन के लिये (आयुः) = आयुष्य को (प्र सु तिरेतन) = खूब बढ़ाइये। [२] दीर्घजीवन का मार्ग यही है कि हम सदा सब कार्यों को विचारपूर्वक करें तथा मृत्यु को कभी भूलें नहीं। यह भी आवश्यक है कि मृत्यु की चिन्ता ही न करते रहें, मृत्यु को अपना बन्धु ही समझें । = हम

    भावार्थ

    भावार्थ- मृत्यु के अविस्मरण से सदा सुपथ पर चलते हुए, विचारशील बनकर दीर्घजीवी बनें। है। यह मृत्यु को न भूलनेवाला व्यक्ति अपने में अच्छाइयों का भरण करता हुआ 'सोभरि' बनता । यह मेधावी तो है ही 'काण्व'। यह 'अग्नि' नाम से प्रभु का स्तवन करता है-

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Adityas, powers of light and life, givers of enlightenment, human as we are, all kindred of the fact of death, pray give us the longest span of life for the joy of living and then help us cross over to the life beyond death.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानांच्या संगतीने आयूची वृद्धी होते. ॥२२॥

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