ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 24/ मन्त्र 19
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - आर्चीस्वराडुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
एतो॒ न्विन्द्रं॒ स्तवा॑म॒ सखा॑य॒: स्तोम्यं॒ नर॑म् । कृ॒ष्टीर्यो विश्वा॑ अ॒भ्यस्त्येक॒ इत् ॥
स्वर सहित पद पाठएतो॒ इति॑ । नु । इन्द्र॑म् । स्तवा॑म । सखा॑यः । स्तोम्य॑म् । नर॑म् । कृ॒ष्टीः । यः । विश्वाः॑ । अ॒भि । अस्ति॑ । एकः॑ । इत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतो न्विन्द्रं स्तवाम सखाय: स्तोम्यं नरम् । कृष्टीर्यो विश्वा अभ्यस्त्येक इत् ॥
स्वर रहित पद पाठएतो इति । नु । इन्द्रम् । स्तवाम । सखायः । स्तोम्यम् । नरम् । कृष्टीः । यः । विश्वाः । अभि । अस्ति । एकः । इत् ॥ ८.२४.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 24; मन्त्र » 19
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Come friends all together and let us adore Indra, lord and leader worthy of joint worship and exaltation, who, by himself alone, rules over all peoples of the world.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वरच स्तुती करण्यायोग्य आहे व आमच्या विघ्नांनाही दूर करतो. त्यामुळेच तो स्वीकार्य आहे. ॥१९॥
संस्कृत (1)
विषयः
स एव स्तुत्य इति दर्शयति ।
पदार्थः
हे सखायः ! एतो=आगच्छतैव । नु=ननु । सर्वे मिलित्वा । स्तोम्यम्=स्तोमयोग्यम् । नरम्=जगन्नेतारम् । इन्द्रम् । स्तवाम । यः+एकः+इत्=यः एक एव । विश्वाः=सर्वाः । कृष्टीः=दुष्टाः प्रजाः । अभ्यस्ति=अभिभवति ॥१९ ॥
हिन्दी (3)
विषय
वही स्तुत्य है, यह इससे दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(सखायः) हे मित्रों ! (एतो) आओ (नु+इन्द्रम्+स्तवाम) सब मिलकर उस इन्द्र की स्तुति करें, जो (स्तोम्यम्) स्तुतियोग्य और (नरम्) जगन्नेता है, (यः+एकः+इत्) जो एक ही (विश्वाः+कृष्टीः+अभ्यस्ति) समस्त उपद्रवकारिणी प्रजाओं को दूर कर देता है ॥१९ ॥
भावार्थ
जिस कारण वही स्तुतियोग्य है और हमारे विघ्नों को भी दूर किया करता है, अतः वही सेव्य है ॥१९ ॥
विषय
उसकी नाना प्रकार से उपासनाएं वा भक्तिप्रदर्शन और स्तुति ।
भावार्थ
भा० - हे (सखायः ) मित्रजनो ! ( एत उनु ) आप लोग आओ न भला, ( स्तोम्यं नरं ) स्तुति करने योग्य सर्वप्रणेता पुरुष की (स्तवाम) स्तुति करें, ( यः विश्वाः कृष्टी: ) जो समस्त मनुष्यों के प्रति (एक इत् अभि अस्ति ) एक, अद्वितीय, सबके प्रति समान रूप से उपास्य है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—२७ इन्द्रः। २८—३० वरोः सौषाम्णस्य दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः–१, ६, ११, १३, २०, २३, २४ निचृदुष्णिक्। २—५, ७, ८, १०, १६, २५—२७ उष्णिक्। ९, १२, १८, २२, २८ २९ विराडुष्णिक्। १४, १५, १७, २१ पादनिचृदुष्णिक्। १९ आर्ची स्वराडुष्णिक्। ३० निचुदनुष्टुप्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'स्तोम्य नर' प्रभु का स्तवन
पदार्थ
[१] हे (सखायः) = मित्रो ! (एत उ) = निश्चय से आओ। (नु) = अब उस (स्तोम्यम्) = स्तुति के योग्य (नरम्) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु का (स्तवाम) = स्तवन करें। यह सम्मिलित प्रार्थना हमें प्रभु के अधिक और अधिक समीप लानेवाली हो। [२] हम उस प्रभु का स्तवन करें (यः) = जो (एकः इत्) = अकेले ही (विश्वः कृष्टीः) = सब मनुष्यों को (अभ्यस्ति) = अभिभूत करनेवाले हैं। हमारे सब शत्रुओं का पराजय ये प्रभु ही तो करेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम सब मित्र मिलकर प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारे सब शत्रुओं का अभिभव करके हमें उन्नतिपथ पर ले चलेंगे।
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