Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 22

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    3

    दे॒वस्य॒ चेत॑तो म॒हीं प्र स॑वि॒तुर्ह॑वामहे। सु॒म॒तिꣳ स॒त्यरा॑धसम्॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वस्य॑। चेत॑तः। म॒हीम्। प्र। स॒वि॒तुः। ह॒वा॒म॒हे॒। सु॒म॒तिमिति॑ सुऽम॒तिम्। स॒त्यरा॑धसमिति॑ स॒त्यऽरा॑धसम् ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्य चेततो महीम्प्र सवितुर्हवामहे । सुमतिँ सत्यराधसम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवस्य। चेततः। महीम्। प्र। सवितुः। हवामहे। सुमतिमिति सुऽमतिम्। सत्यराधसमिति सत्यऽराधसम्॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथा वयं सवितुश्चेततो देवस्येश्वरस्योपासनां कृत्वा महीं सत्यराधसं सुमतिं प्रहवामहे तथैतमुपास्यैतां यूयं प्राप्नुत॥११॥

    पदार्थः

    (देवस्य) स्तोतुमर्हस्य (चेततः) चेतनस्वरूपस्य (महीम्) महतीम् (प्र) (सवितुः) सर्वसंसारोत्पादकस्य (हवामहे) आदद्याम (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (सत्यराधसम्) सत्यं राध्नोति यया ताम्॥११॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! येन चेतनस्वरूपेण जगदीश्वरेणाखिलं जगदुत्पादितं तस्यैवाराधनेन सत्यविद्यायुक्तां प्रज्ञां यूयं प्राप्तुं शक्नुथ, नेतरस्य ज[स्याराधनेन॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे हम लोग (सवितुः) समस्त संसार के उत्पन्न करने हारे (चेततः) चेतनस्वरूप (देवस्य) स्तुति करने योग्य ईश्वर की उपासना कर (महीम्) बड़ी (सत्यराधसम्) जिससे जीव सत्य को सिद्ध करता है, उस (सुमतिम्) सुन्दर बुद्धि को (प्र, हवामहे) ग्रहण करते हैं, वैसे उस परमेश्वर की उपासना कर उस बुद्धि को तुम लोग प्राप्त होओ॥११॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जिस चेतनस्वरूप जगदीश्वर ने समस्त संसार को उत्पन्न किया है, उसकी आराधना, उपासना से सत्यविद्यायुक्त उत्तम बुद्धि को तुम लोग प्राप्त हो सकते हो, किन्तु इतर जड़ पदार्थ की आराधना से कभी नहीं॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    हिरण्यपाणि सविता । आज्ञापक का स्वरूप।

    भावार्थ

    (सवितुः) सबके शासक, (चेततः) सबको चैतन्य अर्थात् सावधान करने वाले ज्ञानी, (देवस्य) दानशील राजा की ( महीम् ) बड़ी भारी (सत्यराधसम् ) सत्य, धर्मानुकूल ऐश्वर्यं देने वाली ( सुमतिम् ) उत्तम मति, शासन शक्ति की (प्र हवामहे) हम स्तुति करते हैं । ईश्वर पक्ष में – चित्स्वरूप, सर्वोत्पादक परमेश्वर देव के सत्य ज्ञान, ऐश्वर्ययुक्त उत्तम ज्ञानमयी वेदवाणी की याचना करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गायत्री । षड्जः ।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मही सुमति

    पदार्थ

    १. (देवस्य) = सब दिव्यगुणों के पुञ्ज, देनेवाले, चमकनेवाले व चमकानेवाले (चेतत:) = सर्वज्ञ (सवितुः) = सकल जगदुत्पादक, सर्वैश्वर्यशाली प्रभु की (महीम्) = महनीय महिमा को प्राप्त करानेवाली (सत्यराधसम्) = सत्य को सिद्ध करनेवाली [सत्यं राधयति] अथवा सत्य, अविनष्ट धनवाली [सत्यं राधो धनं यस्याः ताम्] (सुमतिम्) = शोभनबुद्धि को (प्रहवामहे) = प्रकर्षेण प्रार्थना करते हैं । २. प्रभु की यह कल्याणी मति वेद में प्रकाशित हुई है, उसे प्राप्त करके हम सचमुच अपने जीवनों को महिमावाला व सत्यधनवाला बना पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु देव हैं, चेत्ता हैं। उनकी कल्याणी मति को प्राप्त करके हम महिमाशाली व सत्यरूप धन को प्राप्त करनेवाले बनते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! ज्या चेतनस्वरूप जगदीश्वराने संपूर्ण जग निर्माण केलेले आहे. त्याची आराधना, उपासना करण्याने सत्यविद्यायुक्त उत्तम बुद्धी तुम्ही प्राप्त करू शकता; परंतु इतर जड पदार्थांच्या आराधनेने ती कधीही प्राप्त होऊ शकत नाही.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (ज्येष्ठ उपासक म्हणत आहेत) हे मनुष्यानो, ज्याप्रमाणे आम्ही (ज्येष्ठ उपासक) (सवितुः) सकळ जगदुत्पादक आणि (चेततः) चेतनस्वरूप (देवस्य) स्तुती करण्यास पात्र अशा परमेश्वराची उपासना करून (महीम्‌) महान (सत्यराइसम्‌) ज्या (बुद्धीद्वारे माणूस) सत्याची ओळख वा ज्ञान करून घेतो, त्या (सुमतिम्‌) सन्मतीचे (प्र, हवामहे) ग्रहण करतो, त्याचप्रमाणे तुम्ही (सर्व सामान्य लोक) त्या परमेश्वराची उपासना करून आमच्याप्रमाणे तशी सद्बुद्धी प्राप्त करून घ्यावी ॥11॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्या चेतनस्वरूप जगदीश्वराने समस्त जगाची उत्पत्ती केली आहे, त्याची आराधना, उपासना करून तुम्ही सत्यविद्यायुक्त उत्तम बुद्धी प्राप्त करू शकता. याविरूद्ध इतर जड पदार्थांच्या आराधनाद्वारे तुम्हाला उत्तम सत्य बुद्धी कदापी प्राप्त होऊ शकणार नाही. ॥11॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Having meditated on the Adorable God, the Creator of the universe, the Sentient, we acquire excellent, supreme intellect wherewith we arrive at truth.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    We worship and pray for the great truth-bearing divine wisdom of the brilliant and blazing omniscient Lord Savita, creator and sustainer of the world. We pray, meditate and internalize.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We hereby invoke the immense grace of the awakener and the impeller Lord; the grace, that is the true wealth. (1)

    Notes

    Pra havāmahe, प्रार्थयाम:, pray for. Sumatim, कल्याणीं बुद्धिम्, the wisdom that brings good. Satyarādhasam, सत्यं अनश्वरं राधः धनं यस्याः तां, one that adore. is the true and the eternal wealth.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমরা (সবিতুঃ) সমস্ত সংসারের উৎপাদক (চেততঃ) চেতনস্বরূপ (দেবস্য) স্তুতি করিবার যোগ্য ঈশ্বরের উপাসনা করিয়া (মহীম্) মহতী (সত্যরাধসম্) যদ্দ্বারা জীব সত্যকে সিদ্ধ করে সেই (সুমতিম্) সুন্দর বুদ্ধিকে (প্র, হবামহে) গ্রহণ করি সেইরূপ সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করিয়া সেই বুদ্ধিকে তোমরা প্রাপ্ত হও ॥ ১১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে চেতনস্বরূপ জগদীশ্বর সমস্ত সংসারকে উৎপন্ন করিয়াছেন, তাঁহার আরাধনা উপাসনা দ্বারা সত্যবিদ্যাযুক্ত উত্তম বুদ্ধিকে তোমরা প্রাপ্ত হইতে পার কিন্তু ইতর জড় পদার্থের আরাধনা দ্বারা কখনও নহে ॥ ১১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দে॒বস্য॒ চেত॑তো ম॒হীং প্র স॑বি॒তুর্হ॑বামহে ।
    সু॒ম॒তিꣳ স॒ত্যরা॑ধসম্ ॥ ১১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দেবস্যেত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সবিতা দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top