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यजुर्वेद अध्याय - 22

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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विकृतिः स्वरः - मध्यमः
    3

    वि॒भूर्मा॒त्रा प्र॒भूः पि॒त्राश्वो॑ऽसि॒ हयो॒ऽस्यत्यो॑ऽसि॒ मयो॒ऽस्यर्वा॑सि॒ सप्ति॑रसि वा॒ज्यसि॒ वृषा॑सि नृ॒मणा॑ऽअसि। ययु॒र्नामा॑ऽसि॒ शिशु॒र्नामा॑स्यादि॒त्यानां॒ पत्वान्वि॑हि॒ देवा॑ऽआशापालाऽए॒तं दे॒वेभ्योऽश्वं॒ मेधा॑य॒ प्रोक्षि॑तꣳ रक्षते॒ह रन्ति॑रि॒ह र॑मतामि॒ह धृति॑रि॒ह स्वधृ॑तिः॒ स्वाहा॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒भूरिति॑ वि॒ऽभूः। मा॒त्रा। प्र॒भूरिति॑ प्र॒ऽभूः। पि॒त्रा। अश्वः॑। अ॒सि॒। हयः॑। अ॒सि॒। अत्यः॑। अ॒सि॒। मयः॑। अ॒सि॒। अर्वा॑। अ॒सि॒। सप्तिः॒। अ॒सि॒। वा॒जी। अ॒सि॒। वृषा॑। अ॒सि॒। नृ॒मणाः॑। नृ॒मना॒ इति॑ नृ॒ऽमनाः॑। अ॒सि॒। ययुः॑। नाम॑। अ॒सि॒। शिशुः॑। नाम॑। अ॒सि॒। आ॒दि॒त्याना॑म्। पत्वा॑। अनु॑। इ॒हि॒। देवाः॑। आ॒शा॒पा॒ला॒ इत्या॑शाऽपालाः। ए॒तम्। दे॒वेभ्यः॑। अश्व॑म्। मेधा॑य। प्रोक्षि॑त॒मिति॑ प्रऽउ॑क्षितम्। र॒क्ष॒त॒। इ॒ह। रन्तिः॑। इ॒ह। र॒म॒ता॒म्। इ॒ह। धृतिः॑। इ॒ह। स्वधृ॑ति॒रिति॒ स्वःऽधृ॑तिः। स्वाहा॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभूर्मात्रा प्रभूः पित्राश्वोसि हयोस्यत्यो सि मयोस्यर्वासि सप्तिरसि वाज्यसि वृषासि नृमणाऽअसि । ययुर्नामासि शिशुर्नामास्यादित्यानाम्पत्वान्विहि देवाऽआशापालाऽएतन्देवेभ्योश्वम्मेधाय प्रोक्षितँ रक्षतेह रन्तिरिह रमतामिहधृतिरिह स्वधृतिः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विभूरिति विऽभूः। मात्रा। प्रभूरिति प्रऽभूः। पित्रा। अश्वः। असि। हयः। असि। अत्यः। असि। मयः। असि। अर्वा। असि। सप्तिः। असि। वाजी। असि। वृषा। असि। नृमणाः। नृमना इति नृऽमनाः। असि। ययुः। नाम। असि। शिशुः। नाम। असि। आदित्यानाम्। पत्वा। अनु। इहि। देवाः। आशापाला इत्याशाऽपालाः। एतम्। देवेभ्यः। अश्वम्। मेधाय। प्रोक्षितमिति प्रऽउक्षितम्। रक्षत। इह। रन्तिः। इह। रमताम्। इह। धृतिः। इह। स्वधृतिरिति स्वःऽधृतिः। स्वाहा॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे आशापाला देवाः! युयं यो मात्रा विभूः पित्रा प्रभूरश्वोऽसि हयोऽस्यत्योऽसि मयोऽस्यर्वाऽसि सप्तिरसि वाज्यसि वृषाऽसि नृमणा असि ययुर्नामाऽसि शिशुर्नामस्यादित्यानां पत्वाऽन्विहि एतमश्वं स्वाहा देवेभ्यो मेधाय प्रोक्षितं रक्षत येनेह रन्तिरिह रमतामिह धृतिरिह स्वधृतिः स्यात्॥१९॥।

    पदार्थः

    (विभूः) व्यापकः (मात्रा) जननीवद् वर्त्तमानया पृथिव्या (प्रभूः) समर्थः (पित्रा) वायुना (अश्वः) योऽश्नुते व्याप्नोति मार्गान् सः (असि) अस्ति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः (हयः) हय इव शीघ्रगामी (असि) (अत्यः) योऽतति सततं गच्छति सः (असि) (मयः) सुखकारी (असि) (अर्वा) यः सर्वानृच्छति सः (असि) (सप्तिः) मूर्त्तद्रव्यसम्बन्धी (असि) (वाजी) वेगवान् (असि) (वृषा) वृष्टिकर्त्ता (असि) (नृमणाः) यो नृषु नेतृषु पदार्थेषु मन इव सद्योगामी (असि) (ययुः) यो याति सः (नाम) अभ्यसनीयः (असि) (शिशुः) यः श्यति तनूकरोति सः (नाम) वाग्। नामेति वाड्नामसु पठितम्॥ (निघं॰१।११) (असि) (आदित्यानाम्) मासानाम् (पत्वा) योऽधः पतति सः (अनु) (इहि) एति (देवाः) विद्वांसः (आशापालाः) य आशा दिशः पालयन्ति (एतम्) वह्निम् (देवेभ्यः) दिव्यभोगेभ्यः (अश्वम्) व्याप्तिशीलम् (मेधाय) संगमाय बुद्धिप्रापणाय दुष्टहिंसनाय वा (प्रोक्षितम्) जलेन सिक्तम् (रक्षत) (इह) (रन्तिः) रमणम् (इह) (रमताम्) क्रीडतु (इह) (धृतिः) धैर्य्यम् (इह) (स्वधृतिः) स्वेषां धारणम् (स्वाहा) सत्यया क्रियया॥१९॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः पृथिव्यादिषु व्यापकं सर्वेभ्यो वेगवद्भ्योऽतिशयेन वेगवन्तं वह्निं गुणकर्मस्वभावतो विजानन्ति, ते सुखेनेह क्रीडन्ति॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (आशापालाः) दिशाओं के पालने वाले (देवाः) विद्वानो! तुम जो लोग (मात्रा) माता के समान पृथिवी से (विभूः) व्यापक (पित्रा) पिता रूप पवन से (प्रभूः) समर्थ और (अश्वः) मार्गों को व्याप्त होने वाला (असि) है, (हयः) घोड़े के समान शीघ्र चलने वाला (असि) है, (अत्यः) जो निरन्तर जाने वाला (असि) है, (मयः) सुख का करने वाला (असि) है, (अर्वा) जो सब को प्राप्त होने हारा (असि) है, (सप्तिः) मूर्तिमान् पदार्थों का सम्बन्ध करने वाला (असि) है, (वाजी) वेगवान् (असि) है, (वृषा) वर्षा का करने वाला (असि) है, (नृमणाः) सब प्रकार के व्यवहारों को प्राप्त कराने हारे पदार्थों में मन के समान शीघ्र जाने वाला (असि) है, (ययुः) जो प्राप्ति कराता वा जाता ऐसे (नाम) नाम वाला (असि) है, जो (शिशुः) व्यवहार के योग्य विषयों को सूक्ष्म करती, ऐसी (नाम) उत्तम वाणी (असि) है, जो (आदित्यानाम्) महीनों के (पत्वा) नीचे गिरता (अन्विहि) अन्वित अर्थात् मिलता है, (एतम्) इस (अश्वम्) व्याप्त होने वाले अग्नि को (स्वाहा) सत्यक्रिया से (देवेभ्यः) दिव्य भोगों के लिये तथा (मेधाय) अच्छे गुणों के मिलाने, बुद्धि की प्राप्ति करने वा दुष्टों को मारने के लिये (प्रोक्षितम्) जल से सींचा हुआ (रक्षत) रक्खो, जिससे (इह) इस संसार में (रन्तिः) रमण अर्थात् उत्तम सुख में रमना हो (इह) यहां (रमताम्) क्रीड़ा करें तथा (इह) यहां (धृतिः) सामान्य धारण और (इह) यहां (स्वधृतिः) अपने पदार्थों की धारणा हो॥१९॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पृथिवी आदि लोकों में व्याप्त और समस्त वेग वाले पदार्थों में अतीव वेगवान् अग्नि को गुण, कर्म और स्वभाव से जानते हैं, वे इस संसार में सुख से रमते हैं॥१९॥

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    विषय

    अश्व के दृष्टान्त से नायक भोक्ता आत्मा और परमेश्वर के १३ नाम, उनसे सूचित गुण, कर्तव्य और उन गुणों के कारण उसका अभिषेक ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! तू (मात्रा विभूः) माता के प्रभाव से विविध गुणों से युक्त है । और (पित्रा प्रभूः ) पिता के द्वारा प्रभु शक्ति, ऐश्वर्य से युक्त है अर्थात् तू मातृमान् और पितृमान् भी है। तू (अश्वः असि) राष्ट्र का भोक्ता है । तू (हय: असि) वेगवान्, पराक्रमी है । तू ( अत्य: असि) निरन्तर गतिशील, आगे बढ़ने वाला, सबको अतिक्रमण करता है । तू (मय: असि) प्रजा का सुखकारी, नियन्ता है । तू (अर्वा असि ) ऐश्वर्यौं को प्राप्त करने हारा, विद्याओं का ज्ञाता है । तू (सप्तिः असि) शत्रु का पीछा करने हारा, राष्ट्र के सातों अंगों का स्वामी, राष्ट्र में समवाय बनाकर रहता है | तू (वाजी असि ) ऐश्वर्यवान्, ज्ञानवान् और बलवान्, आक्रमण में वेगवान् है | तू (नृमणा: असि ) मनुष्यों के मान और आदर योग्य, तू ( ययुः नाम असि) शत्रुओं पर प्रयाण करने से 'ययु' है । तू (शिशुः नाम असि) क्षत्रियों को कृश, या नाश करने, स्वयं राष्ट्र में व्यापक रहने से या पृथ्वी का पुत्र, या शासक होने से 'शिशु' है । ( आदित्यानाम् ) सूर्य जैसे द्वादश राशियों में गमन करता है उसी प्रकार तू आदित्य के समान तेजस्वी होकर द्वादश राज-मण्डल के बीच में (पत्वा) राजमार्ग से ( अनु इहि ) गमन कर । अथवा – ( आदित्यानाम् ) आदित्यों के समान विद्वान् पुरुषों के (पत्वा) गमनयोग्य मार्ग का ( अनु इहि) अनुसरण कर । हे (देव) विजय की कामना करने वाले ! (आशापालाः) दिशाओं में प्रजा पालक राजगण ! आप लोग (देवेभ्यः) विद्वान् पुरुषों, विजयी और दानशील पुरुषों की उन्नति और (मेधाय) राष्ट्र की बलवृद्धि या शत्रुओं के नाश के लिये ( एतम् ) इस ( प्रोक्षितम् ) अभिषिक्त हुए राजा की ( रक्षत) रक्षा करो। (इह) इस राष्ट्र में (रन्ति:) चित्त की प्रसन्नता हो । ( इह रमताम् ) यहां रमण करें। (इह धृतिः) इस राष्ट्र में धारण करने की सामर्थ्य है (इह) इसमें ही (स्वधृतिः) अपनी पूर्ण धृति अर्थात् धारण शक्ति हो । (स्वाहा ) इससे तेरा उत्तम यश और आदर हो । यही विशेषण अश्व, विद्वान्, परमेश्वर और आत्मा पक्ष में भी लगते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता । भुरिग् विकृतिः । मध्यमः ॥

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    विषय

    विभूः-प्रभूः

    पदार्थ

    १. (मात्रा) = तू माता से (विभूः) = व्यापक वृत्तिवाला - उदारवृत्तिवाला बना है। माता से तूने व्यापक हृदयता के संस्कार प्राप्त किये हैं । २. (पित्रा प्रभूः) = पिता से तूने शक्ति [प्रभाव] को प्राप्त किया है। ३. इस प्रकार माता-पिता से विशाल हृदय व शक्ति को प्राप्त करके (अश्वः असि) = तू कर्मों में व्याप्त होनेवाला है, अर्थात् तू सदा कर्मशील जीवन बिताता है। (हयः असि) = [हय गतौ] तू गतिशील है। गतिशील ही क्या, (अत्यः असि) = [अत सातत्यगमने ] तू निरन्तर गतिशील है। गति तो तेरा स्वभाव ही बन गया है। ४. इस गतिशीलता के कारण (मयः) = तू सुखरूप है। गतिशीलता के कारण तेरा जीवन सुखी है। ५ (अर्वा असि) = [अर्वति हिनस्ति च] सब बुराइयों का तू संहार करनेवाला है और बुराइयों के संहार के द्वारा ही (सप्तिः असि) = [सप सम्बन्धे] प्रभु से अपना सम्बन्ध जोड़नेवाला है। प्रभु के साथ सम्बद्ध होकर (वाजी असि) = तू शक्तिशाली बनता है। प्रभु की शक्ति का तुझमें प्रवाह होता है । ६. शक्तिसम्पन्न बनकर वृषा असि तू लोगों पर सुखों की वर्षा करनेवाला बनता है। (नृमणा असि) = [नृषु मनो यस्य] तेरा मन सदा लोगों में रहता है, अर्थात् तू सदा उनकी उन्नति व सुख के वर्धन का विचार करता है। ७. इसके लिए तू (ययुः नाम असि) = खूब ही गतिशील बना है। लोगों की उन्नति व सुख के लिए अतिशयित प्रयत्नवाला होता है। (शिशुः नाम असि) = [श्यति कृशं करोति] अपने प्रयत्नों से तू लोगों के कष्टों को अत्यन्त क्षीण करनेवाला बनता है। अथवा [ श्यति तनूकरोति] तू अपनी बुद्धि को भी अत्यन्त सूक्ष्म बनाता है, जिससे ठीक विचार से तू ठीक कार्य कर सके। ८. प्रभु कहते हैं कि तू (आदित्यानां पत्वा अन्विहि) = आदित्यों के मार्ग से चलनेवाला बन। आदित्यों का मार्ग यह है कि ये सर्वत्र विचरते हुए अच्छाई को ग्रहण करते हैं और बुराई को वहीं रहने देते हैं, बुराई का ध्यान नहीं करते। इस मार्ग पर चलने से प्रजा में कल्याण-ही-कल्याण होगा, सब लड़ाई-झगड़े समाप्त हो जाएँगे । ९. हे (आशापाला:) = इस ('अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूः') = की सब दिशाओं से रक्षा करनेवाले [ आशा-दिशा] (देवा:) = देवो ! (एतम्) = इस (अश्वम्) = शक्तिशाली तथा कर्मों में व्याप्त होनेवाले (प्रोक्षितम्) = जिसके शरीर में वीर्य का सिञ्चन हुआ है, वस्तुतः शरीर में वीर्य का सिञ्चन करके ही यह शक्तिशाली बना है, (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए तथा (मेधाय) = यज्ञरूप उत्तम कर्म के लिए (रक्षत) = सुरक्षित करो। 'मुख, पायु, उपस्थ व ब्रह्मरन्ध्र' ये चार मुख्य द्वार हैं। इनके अधिष्ठातृदेव ही आशापाल देव हैं। इनके कार्य के ठीक होने पर मनुष्य का जीवन सुरक्षित रहता है, वह बीमारियों से पीड़ित नहीं होता। वह वीर्य को शरीर में ही सुरक्षित करके कर्मों में प्रवृत्त होता है। १०. (इह) = इस उल्लिखित जीवन में (रन्तिः) आनन्द है । (इह रमताम्) = मनुष्य को चाहिए कि वह इसमें ही रमण करे, आनन्द का अनुभव ले। (इह) = इस जीवन में (धृतिः) = दृढ़ता व कष्टों से न घबराना होता है । (इह स्वधृतिः) = इस जीवन में हम आत्मतत्त्व का धारण-दर्शन करते हैं। (स्वाहा) = अतः इस जीवन के लिए हम प्रशंसा के शब्द कहते हैं। इसी जीवन को प्राप्त करने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं। इसके लिए अपने को दे डालते हैं। यही हमारा ध्येय हो जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम उदार हृदय व शक्तिशाली बनकर सदा क्रियाशील बनें। अपने को पवित्र कर प्रभु से अपना सम्बन्ध स्थापित करें। इस सम्बन्ध से शक्तिशाली बनकर लोकसेवा के कार्य में लग जाएँ। सर्वत्र अच्छाई को ग्रहण करके आगे बढ़ते चलें। इसी जीवन में आनन्द प्राप्ति, कष्ट सहनशक्ति व आत्मधारण है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे पृथ्वीमध्ये व्याप्त व संपूर्ण गतिमान पदार्थांमध्ये अधिक गतिमान अशा अग्नीचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात ती या जगात सुखाने राहतात.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (आशापालाः) दिशांचे पालन करणारे (मात्रा) आईप्रमाणे असलेल्या पृथ्वीसारखा असून (विभूः) व्यापक आहे, (पित्रा) पिताप्रमाणे असलेल्या पवनासारखा जो (प्रभू) समर्थ वा शक्तिमान असून जो (अश्वः) मार्गांवर धावणारा (असि) आहे (अशा तो अग्नी धारणीय आहे, त्याचा उपयोग घेतला पाहिजे) तो अग्नी (हयः) घोड्याप्रमाणे शीघ्रगामी (असि) आहे. तो (अत्यः) निरंतर इकडून तिकडे जाणारा (असि) आहे. (अर्वा) तो सर्वांना प्राप्त होणारा (वा सहजपणे उपलब्ध असणारा) (असि) आहे. तो (सप्तीः) मूर्तिमान, आकारधारी पदार्थांशी संबंध ठेवणारा (त्या पदार्थात व्याप्त असलेला (असि) आहे (वाजी) वेगवान (असि) आहे. (वृषा) वृष्टी करणारा (असि) आहे. (नृमणाः) सर्व प्रकारच्या दैनंदिन व्यवहारांमधे वा पदार्थामधे मनाचा गतीप्रमाणे त्वरित संचारणारा (असि) आहे. तो (ययुः) जो प्राण्यांना पदार्थ प्राप्त करवितो वा त्याकडे जातो असे (नाम) असलेला (सर्वप्रापक वा सर्वगामी) (असि) आहे. जो (शिशूः) व्यवहारासाठी आवश्यक विषयांचे सूक्ष्म ज्ञान करविते, तशा (नाम) वाणीप्रमाणे (असि) आहे. जो (आदित्यानाम्‌) बारह महिन्यांच्या (पत्वा) खाली (एक ते बारह-म्हणजे वर्षभर) (अन्विहि) मिळतो, सर्वांना उपलब्ध आहे, (एतम्‌) अशा त्या (अश्वम्‌) व्यापक अग्नीला (तुम्ही विद्वज्जन, वैज्ञानिक व शोधकर्तागण) (स्वाहा) सत्य आणि उत्तम क्रियांद्वारे धारण करा. (देवेभ्यः) (या अग्नीपासून) दिव्य भोग, उपभोग प्राप्त करण्याकरिता तसेच (मेधाय) सद्गुणप्राप्ती, बुद्धिप्राप्तीसाठी अथवा दुष्ट संहारासाठी (प्रेक्षितम्‌) जलाद्वारे (रक्षत) सुरक्षित ठेवा (अग्नीच्या नियंत्रणासाठी पाणी जवळ ठेवा) ज्यांना (इह) या संसारात (रन्तिः) रमण करावयाचे असेल वा उत्तम सुख प्राप्त करायचे असेल, त्यांनी (इह) या इहलोकामधे (रमताम्‌) क्रीडा करावी तसेच (इह) इथे (धृतिः) सामान्य धारणा आणि (इह) (स्वधृतिः) आपल्या पदार्थांची ची धारणा केली पाहिजे (अग्नीशी संबंध ठेवून त्यापासून हवे तेवढे लाभ घ्यावेत) ॥19॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक पृथ्वी आदी लोकांमधे व्याप्त असलेल्या अति वेगवान समस्त पदार्थामधे देखील अतीव वेगवान आहे, अशा अग्नीचे गुण, कर्म आणि स्वभाव जाणतात, ते या जगात सुखाने रमण करू शकतात. ॥19॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned persons, the fulfillers of our desires, ye are mighty like the mother Earth, eminent like the father air, ye are the accomplishers of journey, fast movers like the horse, constant travellers, acquirers of happiness, friendly towards all, utilisers of material objects, speedy in action, bringers of rain, sharp realisers of all things with an intelligent mind, marchers on the foes for victory, possessors of speech that simplifies subtle subjects, follow the path of the wise. Protect nicely this pervading fire, moistened with water, for the enjoyment of pleasures, for developing intellect and chastising the wicked, Here is delight. Here enjoy pleasure. Here is contentment. Here is self-satisfaction.

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    Meaning

    Agni, universal energy of life and the world, you are immense and abundant as mother like the earth, pre¬ eminent and super-guardian as father like the sky. You attain to everything; self-impelled you impel everything; you are constant ever, and ever on the move; you are ever at peace and ever fresh; you reach everywhere; you are the way to love and honour; you are fast and impetuous; you are generous like a shower; kind, reaching everyone’s heart. Surely, you are the way to final beatitude and worthy of meditation. Ever new as reborn, you make the time fly with the motion of the stars. Come and be with us here. Guardians of the earth in all directions, serve and save this consecrated power for the noble people and the environment in the interest of national growth. Here is peace and pleasure, let it stay while you enjoy. Here is stability and constancy. Here is self-dependence and self- realisation.

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    Translation

    О horse, majestic through mother and mighty through father, you are a swift runner (asvah); You are a courser (hayah); you are ever-moving (atyah); you are а pleasure (mayah); you are a racer (аrva); you are a draft horse (saptih); you are a strong horse (vaji); you are a stallion (vrsa); you are kind to man (nrmanas); you are yayu (fond of running) by name; you are sisu (baby) by name. May you follow the path of the suns. (1) O bounties of Nature, warders of quarters, may you protect this horse, besprinkled for sacrifice. (2) Here is pleasure. (3) May you delight here. (4) May here be satisfaction for you. (5) May here be satisfaction for oneself. Svaha. (6)

    Notes

    According to the ritualists, the Adhvaryu and the sacrificer whisper this mantra in the right ear of the horse. There after the horse (who must not be less than 24 years or more than a hundred years old) is loosed towards the north-east to wander free for a year (or for half a year, or still shorter time) as a sign that his master's paramount sovereignty is acknowledged by all neighbouring princes. The wandering horse is attended by. a hun dred young warriors, sons of princes or of high court officials, well-armed and ready to protect him from any harm whatsoever. During the absence of the horse an uniterrupted series of pre scribed ceremonies is performed at the sacrificer's house. Aśvaḥ, hayaḥ etc. are the synonyms of aśvaḥ, only differ ing in the sense. Most of them have been derived from verb roots meaning motion or speed. Mayaḥ, pleasant to ride upon. Nrmaṇaḥ, pleasing to men's hearts. Vṛṣā, virile; stallion. Yayuḥ, motive force; fond of run ning. Śiśuḥ, analyzer; young. Also, a colt. Ādityānām patvã, flight of the suns; or the path of the suns. Āśāpālāḥ, fulfillers of hopes. Also, guarding deities of the regions. Dhṛtiḥ, संतोष:, contentment; patience.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (আশাপালাঃ) দিক পালক (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ ! তোমরা (মাত্রা) মাতার সমান বর্ত্তমান পৃথিবী অপেক্ষা (বিভুঃ) ব্যাপক (পিত্রা) পিতারূপ পবন অপেক্ষা (প্রভূঃ) সমর্থ এবং (অশ্বঃ) মার্গগুলি ব্যাপিয়া (অসি) আছো, (হয়ঃ) অশ্ব সমান শীঘ্র গতিসম্পন্ন (অসি) আছো, (অত্যঃ) নিরন্তর জ্ঞাতা (অসি) আছো, (ময়ঃ) সুখকারক (অসি) আছো, (অর্বা) সকলের প্রাপক (অসি) আছো, (সপ্তিঃ) মূর্ত্তিমান্ পদার্থ সমূহের সম্পর্ককারী (অসি) আছো (বাজী) বেগবান্ (অসি) আছো, (বৃষা) বরিষণকারী (অসি) আছো, (নৃমণাঃ) সর্বপ্রকার ব্যবহারকে প্রাপ্ত করাইবার পদার্থগুলিতে মনের সমান শীঘ্রগতিসম্পন্ন (অসি) আছো, (য়য়ুঃ) যে প্রাপ্তি করায় বা যায় এমন (নাম) নামযুক্ত (অসি) আছো, যে (শিশুঃ) ব্যবহার যোগ্য বিষয়গুলিকে সূক্ষ্ম করে এমন (নাম) উত্তমবাণী (অসি) আছো, যে (আদিত্যানাম্) মাসগুলির (পত্বা) নিম্নে অবতরণ করে (অন্বিহি) অন্বিত অর্থাৎ প্রাপ্ত হয় (এতম্) এই (অশ্বম্) ব্যাপ্ত হওয়ার অগ্নিকে (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা (দেবেভ্যঃ) দিব্য ভোগ হেতু তথা (মেধায়) উত্তম গুণ মিশ্রণ করিবার, বুদ্ধি প্রাপ্ত করিবার অথবা দুষ্টদিগকে মারিবার জন্য (প্রোক্ষিতম্) জল দ্বারা সিঞ্চিত (রক্ষত) রাখ যদ্দ্বারা (ইহ) এই সংসারে (রন্তিঃ) উত্তম সুখে উপভোগ করা হউক (ইহ) এখানে (রমতাম্) ক্রীড়া করুক তথা (ইহ) এখানে (ধৃতিঃ) সামান্য ধারণ এবং (ইহ) এখানে (স্বধৃতিঃ) স্বীয় পদার্থের ধারণা হউক ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য পৃথিবী আদি লোক-লোকান্তরে ব্যাপ্ত এবং সমস্ত বেগযুক্ত পদার্থে অতীব বেগবান অগ্নিকে গুণ-কর্মও স্বভাব দ্বারা জানে, তাহারাই এই সংসারে সুখে রমণ করে ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বি॒ভূর্মা॒ত্রা প্র॒ভূঃ পি॒ত্রাশ্বো॑ऽসি॒ হয়ো॒ऽস্যত্যো॑ऽসি॒ ময়ো॒ऽস্যর্বা॑সি॒ সপ্তি॑রসি বা॒জ্যসি॒ বৃষা॑সি নৃ॒মণা॑ऽঅসি । য়য়ু॒র্নামা॑ऽসি॒ শিশু॒র্নামা॑স্যাদি॒ত্যানাং॒ পত্বান্বি॑হি॒ দেবা॑ऽআশাপালাऽএ॒তং দে॒বেভ্যোऽশ্বং॒ মেধা॑য়॒ প্রোক্ষি॑তꣳ রক্ষতে॒হ রন্তি॑রি॒হ র॑মতামি॒হ ধৃতি॑রি॒হ স্বধৃ॑তিঃ॒ স্বাহা॑ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিভূরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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