यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 24
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - दिशो देवताः
छन्दः - निचृदतिधृतिः
स्वरः - षड्जः
3
प्राच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ दक्षि॑णायै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑ प्र॒तीच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहोदी॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहो॒र्ध्वायै॑ दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहाऽवा॑च्यै दि॒शे स्वाहा॒ऽर्वाच्यै॑ दि॒शे स्वाहा॑॥२४॥
स्वर सहित पद पाठप्राच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। दक्षि॑णायै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। प्र॒तीच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। उदी॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। ऊ॒र्ध्वायै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑। अवा॑च्यै। दि॒शे। स्वाहा॑। अ॒र्वाच्यै॑। दि॒शे। स्वाहा॑ ॥२४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहावाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्राच्यै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा। दक्षिणायै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा। प्रतीच्यै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा। उदीच्यै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा। ऊर्ध्वायै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा। अवाच्यै। दिशे। स्वाहा। अर्वाच्यै। दिशे। स्वाहा॥२४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः किमर्थो होमः कर्त्तव्य इत्याह॥
अन्वयः
यैर्विद्वद्भिः प्राच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहाऽवाच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा च विधीयते ते सर्वतः कुशलिनो भवन्ति॥२४॥
पदार्थः
(प्राच्यै) या प्राञ्चति प्रथमादित्यसंयोगात् तस्यै (दिशे) (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्ता वाक् (अर्वाच्यै) यार्वागधोञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (दक्षिणायै) या पूर्वमुखस्य पुरुषस्य दक्षिणबाहुसन्निधौ वर्त्तते तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) अधस्ताद्वर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (प्रतीच्यै) या प्रत्यक् अञ्चति पूर्वमुखस्थितपुरुषस्य पृष्ठभागा तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (उदीच्यै) योदक् पूर्वाभिमुखस्य जनस्य वामभागमञ्चति तस्यै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (ऊर्ध्वायै) ऊर्ध्ववर्त्तमानायै (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) या अवविरुद्धमञ्चति तस्यै उपदिशे (दिशे) (स्वाहा) (अवाच्यै) (दिशे) (स्वाहा) (अर्वाच्यै) (दिशे) (स्वाहा)॥२४॥
भावार्थः
हे मनुष्याश्चतस्रो मुख्या दिशः सन्ति तथा चतस्र उपदिशोऽपि वर्त्तन्त एवमूर्ध्वाऽर्वाची च दिशौ वर्त्तेते ता मिलित्वा दश जायन्त इति वेद्यम्। अनवस्थिता इमा विभ्व्यश्च सन्ति, यत्र स्वयं स्थितो भवेत् तद्देशमारभ्य सर्वासां कल्पना भवतीति विजानीत॥२४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर किसलिये होम करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जिन विद्वानों ने (प्राच्यै) जो प्रथम प्राप्त होती है अर्थात् प्रथम सूर्य मण्डल का संयोग करती उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्त वाणी (अर्वाच्यै) जो नीचे से सूर्यमण्डल को प्राप्त अर्थात् जब विषुमती रेखा से उत्तर का सूर्य नीचे-नीचे गिरता है, उस नीचे की (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (दक्षिणायै) जो पूर्वमुख वाले पुरुष के दाहिनी बांह के निकट है, उस दक्षिण (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) उक्त वाणी (अर्वाच्यै) निम्न है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) उक्त वाणी (प्रतीच्यै) जो सूर्यमण्डल के प्रतिमुख अर्थात् लौटने के समय में प्राप्त और पूर्वमुख वाले पुरुष के पीठ पीछे होती उस पश्चिम (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) पश्चिम के नीचे जो (दिशे) दिशा है, उस के लिये (स्वाहा) ज्योतिः शास्त्रयुक्त वाणी (उदीच्यै) जो पूर्वाभिमुख पुरुष के वामभाग को प्राप्त होती, उस उत्तम (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) पृथिवी गोल में जो उत्तर दिशा के तले दिशा है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (ऊर्ध्वायै) जो ऊपर को वर्त्तमान है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी (अर्वाच्यै) जो विरुद्ध प्राप्त होती ऊपर वाली दिशा के नीचे अर्थात् कभी पूर्व गिनी जाती, कभी उत्तर, कभी दक्षिण, कभी पश्चिम मानी जाती है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी और (अवाच्यै) जो सबसे नीचे वर्त्तमान उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविचारयुक्त वाणी तथा (अर्वाच्यै) पृथिवी गोल में जो उक्त प्रत्येक कोण दिशाओं के तले की दिशा है, उस (दिशे) दिशा के लिये (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रविद्यायुक्त वाणी विधान की, वे सब ओर कुशली अर्थात् आनन्दी होते हैं॥२४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! चार मुख्य दिशा और चार उपदिशा अर्थात् कोण दिशा भी वर्त्तमान हैं। ऐसे ऊपर और नीचे की दिशा भी वर्त्तमान हैं। वे मिल कर सब दश होती हैं, यह जानना चाहिये और एक क्रम से निश्चय नहीं की हुई तथा अपनी-अपनी कल्पना में समर्थ भी है, उनको उन-उनके अर्थ में समर्थन करने की यह रीति है कि जहां मनुष्य आप स्थित हो, उस देश को लेके सब की कल्पना होती है, इसको जानो॥२४॥
विषय
प्राची आदि ६ दिशाओं और १२ उपदिशाओं से राष्ट्र की रक्षा ।
भावार्थ
(प्राच्यै दिशे) सूर्य प्रातः जिस दिशा को प्रथम स्पर्श करता वह सूर्योदय की दिशा 'प्राची' है । (अर्वाच्यै दिशे) उसके समीप की कोण दिशा 'अर्वाची' है । (दक्षिणायै दिशे) पूर्वाभिमुख के दाहिने हाथ की दिशा 'दक्षिणा', उसके समीप की (अर्वाच्यै दिशे) एक कोण दिशा 'अर्वाची' (प्रतीच्यै दिशे) पूर्वाभिमुख खड़े पुरुष की पीठ पीछे की दिशा 'प्रतीची' या पश्चिम दिशा उसके पास की दिशा (अर्वाच्यै दिशे) 'अर्वाची" है । (उदीच्यै दिशे) पूर्वाभिमुख पुरुष के बायें हाथ की दिशा 'उदीची', उसके समीप की दिशा (अर्वाच्यै दिशे) 'अर्वाची' है । इसी प्रकार (ऊर्ध्वायै दिशे, अर्वाच्ये दिशे) शिर के ऊपर की दिशा ऊर्ध्वा उसके पास की कोण-दिशा 'अर्वाची', उसकी कोण दिशा 'अर्वाची' है । इस प्रकार ६ दिशा १२ उपदिशाओं का उत्तम रीति से ज्ञान और उपयोग करो । इसी प्रकार राष्ट्र की सभी दिशाओं की उत्तम रीति से रक्षा और विजय करनी चाहिये। इसी प्रकार विजिगीषु और प्रजापति की भी दिशाएं हैं देखो व्रात्य सूक्त, अथर्ववेद।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दिशो देवताः । निचृदतिधृतिः । षड्जः ॥
विषय
विश्व का सौन्दर्य
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र की भावना को ही विस्तार से इस अध्याय की समाप्ति तक कहेंगे। जब मनुष्य की वृत्ति यज्ञिय व स्वार्थ से ऊपर उठी हुई होती है तब उसके लिए सारा संसार सुन्दर हो जाता है। अपनी वृत्ति खराब होने पर संसार भी उसके लिए खराब हो जाता है, अतः कहते हैं कि (प्राच्यै दिशे स्वाहा) = पूर्व दिशा के लिए यज्ञशील बन। 'यह दिशा तेरे लिए सुन्दर हो' इसके लिए तू स्वार्थ से ऊपर उठ । (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = पूर्व दिशा की उपदिशा के लिए भी तू यज्ञशील बन । २. इसी प्रकार (दक्षिणायै दिशे स्वाहा) = दक्षिण दिशा के सौन्दर्य के लिए तू यज्ञ करनेवाला बन। (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = इस दक्षिण की उपदिशा के लिए भी यज्ञशील बन। ३. (प्रतीच्यै दिशे स्वाहा) = पश्चिम दिशा के लिए तू यज्ञिय हो और (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = पश्चिम की उपदिशा के लिए यज्ञ करनेवाला बन। ४. (उदीच्यै दिशे स्वाहा) = उत्तर दिशा के सौन्दर्य के लिए तू यज्ञशील हो और (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = उत्तर की उपदिशा के लिए यज्ञ करनेवाला बन। ५. (ऊर्ध्वायै दिशे स्वाहा) = ऊर्ध्व दिशा के लिए तू यज्ञशील हो और (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = ऊर्ध्व की उपदिशा के लिए यज्ञ करनेवाला बन। ६. (दिशे स्वाहा) = नीचे की दिशा के लिए तू यज्ञशील हो और (अर्वाच्यै दिशे स्वाहा) = नीचे की उपदिशा के लिए तू यज्ञशील हो ।
भावार्थ
भावार्थ - यज्ञिय व निःस्वार्थ वृत्ति के द्वारा हमारा यह संसार आगे-पीछे, दायें-बायें व ऊपर-नीचे सब ओर से सुन्दर - ही सुन्दर हो जाता है। आसुरवृत्ति ने ही संसार को मलिन किया हुआ है।
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! चार मुख्य दिशा, चार उपदिशा उर्ध्व (वर) अधर (खाली) अशा सर्व मिळून दहा दिशा आहेत, हे जाणले पाहिजे. त्या एकाच क्रमाने निश्चित करता येत नाहीत. त्यांना आपल्याला कल्पनेने जाणावे. त्यांना समजण्याची हीच पद्धत आहे. जेथे मनुष्य स्थित असेल त्या स्थानापासूनचा सर्व दिशांची कल्पना करता येते.
विषय
होम का करावा, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - ज्या विद्वानांनी (प्राच्यै) जी सूर्याला प्रथम प्राप्त करते वा ज्या दिशेचा सूर्यमंडळाशी सर्वप्रथम संयोग होतो, त्या (दिशे) पूर्व दिशेसाठी (स्वाहा) ज्योतिषशास्त्रयुक्त वाणीचा उपयोग केला (त्या दिशेतील भौतिक लाभ व गणितीय शास्त्राप्रमाणे अभ्यास केला) तसेच (अर्वाच्यै) ती दिशा की जी खालच्या दिशेने सूर्यमंडळास प्राप्त करते म्हणजे जेव्हा उत्तरेतील सूर्य विषुमती रेषेपासून खाली खाली जातो, त्या (दिशे) दिशेचा) ज्यानी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रा प्रमाणे अभ्यास केला (ते विद्वान सकुशल व आनंदी असतात) (दक्षिणायै) ती दिशा की जी पूर्वाभिमुख माणसाच्या उजव्या हाताकडे असते, त्या दक्षिण दिशेचा ज्यांनी (स्वाहा) अभ्यास केला तसेच (अर्वाच्यै) निम्न (दिशे) दिशेचा (स्वाहा) पूर्वोक्तप्रमाणे अभ्यास केला, (प्रतीच्यै) जी सूर्यमंडळाला प्रतिमुख म्हणजे उलट असून अस्ताकडे जातांना प्राप्त होता म्हणजेच जी दिशा पूर्वाभिमूख माणसाच्या पाठीमागे असते त्या पश्चिम (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्यांनी आपल्या ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणीचा उपयोग केला. तसेच (अर्वाच्यै) पश्चिमेच्या खाली (दिशे) जी दिशा आहे, त्यासाठी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणीचा उपयोग केला. तसेच ज्यांनी (अर्वाच्यै) ती दिशा की जी पूर्वाभिमुख माणसाच्या वाम भागाकडे असते, त्या उत्तम (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणीचा उपयोग केला. (वाणीचा उपयोग म्हणजे ज्ञान, वाणीद्वारे त्या दिशेचा अभ्यास केला) (ते विद्वान सकुशल व आनंदी होतात) (अर्वाच्यै) पृथ्वीच्या गोलामधे जी उत्तर दिशेच्या खाली दिशा आहे, त्या (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी, तसेच (ऊध्वायै) जी वर विद्यमान आहे, त्या (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्यांची ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी असते (ते सकुशल आनंदी असतात (अर्वाच्यै) वरच्या दिशेच्या विरूद्ध व तिच्या खाली जी दिशा आहे, अर्थात जी कधी पूर्व मानली जाते, कधी उत्तर, कधी दक्षिण तर कधी पश्चिम मानली जाते, त्या (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्रयुक्त वाणी आणि (अर्वाच्यै) सर्वाहून खाली विद्यमान (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) ज्योतिःशास्त्र तसेच त्यानुसार केलेल्या विचार-निर्णयादी विषयी कार्य करतात, (ते आनंदी असतात) (अर्वाच्यै) पृथ्वीच्या गोलात भूगोलात प्रत्येक दिशेंच्या खालच्या कोणातील जी दिशा आहे, त्या (दिशे) दिशेसाठी (स्वाहा) जे लोक ज्योतिःशास्त्रयुक्त (गणितीय ज्योतिषाची वाणी निश्चित करतात वा ज्यांनी केली आहे, ते सक्षेम सानंद अवश्य राहतील, यात किंचितही संदेह नाही ॥24॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यानो, चार मुख्य दिशा आणि चार उपदिशा अर्थात ईशान्यादी कोण दिशा आहेत. त्याचप्रमाणे वर आणि खाली देखील दिशा आहेत, त्या सर्व मिळून दहा दिशा होतात, हे जाणून घ्या. या शिवाय क्रमाने निश्चय न केल्या जाणाऱ्या अशा दिशादेखील आहेत. आणि त्या व्यक्तीच्या आपापल्या कल्पनेद्वारे मानल्या जाऊ शकतात. त्यांच्या सिद्धतेचा आधार असा मानावा की माणूस जिथे स्वतः उभा आहे, त्या त्या स्थिती व प्रदेशापासून त्याची कल्पना करतो (माणूस जर ईशान्य वायव्यादी कोणात उभा असेल, तर त्या त्याच्यासाठी सर्व दिशा, उपदिशा बदलतात, सूर्याच्या स्थितीप्रमाणे नव्हे, हा आशय आहे) ॥24॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Have scientific knowledge and make use of the Eastern Region, and its hither ward Region ; the Southern Region, and its hitherward Region ; the Western Region and its hitherward Region ; the Northern Region and its hitherward Region ; the Upward Region and its hitherward Region ; the Downward Region and its hitherward Region.
Meaning
Pursue the science of Astronomy and the literature on the subject in right earnest for the knowledge of: the eastern direction from the horizon to the near-most point; the south-eastern direction from the farthest to the nearest point; the south direction from the farthest to the nearest point; the south-western direction from the farthest to the nearest point; the western direction from the farthest to the nearest point; the north western direction from the farthest to the nearest point; the north direction from the farthest to the nearest point; the north eastern direction from the farthest to the nearest point; the direction above from the highest to the lowest point; and the direction below from the farthest to the nearest point (where you are).
Translation
Svaha to the eastward region. (1) Svaha to the proximate region. (2) Svaha to the southward region. (3) Svaha to the proximate region. (4) Svaha to the westward region. (5) Svaha to the proximite region. (6) Svaha to the northward region. (7) Svaha to the proximate region. (8) Svaha to the upward region. (9) Svaha to the proximate region. (10) Svaha to the downward region. (11) Svaha to the proximate region. (12)
Notes
Arvācyai, downwards; hither; near; to the region near to the aforesaid region, i. e. the region between the east and the south and so on. Ürdhvāyai, to the upward region. Of the last three arvacyai, first means the middle of this and the upward region; second means the downward region; and the third means 'the middle of this and the downward region".
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ কিমর্থো হোমঃ কর্ত্তব্য ইত্যাহ ॥
পুনঃ কীজন্য হোম করা উচিত, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যে সব বিদ্বান্গণ (প্রাচ্যৈ) যাহা প্রথম প্রাপ্ত হয় অর্থাৎ সূর্য্য মন্ডলের সংযোগ করিয়া সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্র বিদ্যাযুক্ত বাণী (অর্বাচ্যৈ) যাহা নিম্ন হইতে সূর্য্যমন্ডলকে প্রাপ্ত অর্থাৎ যখন বিষুমতী রেখা হইতে উত্তরের সূর্য্য নিম্নে পতিত হয় সেই নিম্নের (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃ শাস্ত্রযুক্ত বাণী (দক্ষিণায়ৈ) যাহা পূর্বমুখযুক্ত পুরুষের দক্ষিণ বাহুর নিকট, সেই দক্ষিণ (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) উক্ত বাণী যাহা (অবাচ্যৈ) নিম্ন আছে সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) উক্ত বাণী (প্রতীচ্যৈ) যাহা সূর্য্যমন্ডলের প্রতিমুখ অর্থাৎ ফিরিবার সময়ে প্রাপ্ত এবং পূর্বমুখ সম্পন্ন পুরুষের পিঠ পিছনে সেই পশ্চিম (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃ শাস্ত্রযুক্ত বাণী (অর্বাচ্যৈ) পশ্চিমের নিম্নে যে (দিশে) দিক তাহার জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃ শাস্ত্রযুক্ত বাণী (উদীচ্যৈ) যাহা পূর্বাভিমুখ পুরুষের বামভাগকে প্রাপ্ত হয়, সেই উত্তম (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃ শাস্ত্রযুক্ত বাণী (অবাচ্যৈ) পৃথিবী গোল মধ্যে যাহা উত্তর দিকের তলার দিক সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্রযুক্ত বাণী (ঊর্ধ্বায়ৈ) যাহা উপরে বর্ত্তমান, সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্রযুক্ত বাণী (অর্বাচ্যৈ) যাহা বিরুদ্ধ প্রাপ্ত হয় উপরের দিকের নিম্নে অর্থাৎ কখনও পূর্ব গণ্য করা হয়, কখনও উত্তর, কখনও, দক্ষিণ, কখনও পশ্চিম স্বীকার করা হয়, সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্রযুক্ত বাণী এবং (অর্বাচ্যৈ) যাহা সকলের নিম্নে বর্ত্তমান সেই দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্র বিচারযুক্ত বাণী তথা (অর্বাচ্যৈ) পৃথিবী গোল মধ্যে যাহা উক্ত প্রত্যেক কোণ দিক্গুলির তলের দিক সেই (দিশে) দিকের জন্য (স্বাহা) জ্যোতিঃশাস্ত্র বিদ্যাযুক্ত বাণী বিধানের সে সমস্ত সব দিকে কুশলী অর্থাৎ আনন্দযুক্ত হয় ॥ ২৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! চারিটি মুখ্য দিশা এবং চারিটি উপদিশা অর্থাৎ কোণ দিশা ও বর্ত্তমান । এইরূপ উপর ও নিম্নের দিশাও বর্ত্তমান । সেগুলি মিলিয়া সব দশ হয় ইহা জানা উচিত এবং এক ক্রমপূর্বক নিশ্চয় করা নহে তথা নিজের নিজের কল্পনায়ও সক্ষমও, তাহাদেরকে সেই সেই অর্থে সমর্থন করিবার, এই রীতি যে, যেখানে মনুষ্য স্বয়ং স্থিত সেই দেশ লইয়া সকলের কল্পনা হয়, ইহাকে জান ॥ ২৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্রাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহা॒ দক্ষি॑ণায়ৈ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহা॑ প্র॒তীচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহোদী॑চ্যৈ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহো॒র্ধ্বায়ৈ॑ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহাऽবা॑চ্যৈ দি॒শে স্বাহা॒ऽর্বাচ্যৈ॑ দি॒শে স্বাহা॑ ॥ ২৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রাচ্যৈ দিশ ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । দিশো দেবতাঃ । নিচৃদতিধৃতিশ্ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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