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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - जगती, स्वरः - निषादः
    3

    वाज॑स्ये॒मां प्र॑स॒वः शि॑श्रिये॒ दिव॑मि॒मा च॒ विश्वा॒ भुव॑नानि स॒म्राट्। अदि॑त्सन्तं दापयति प्रजा॒नन्त्स नो॑ र॒यिꣳ सर्व॑वीरं॒ निय॑च्छतु॒ स्वाहा॑॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाज॑स्य। इ॒माम्। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वः। शि॒श्रि॒ये॒। दिव॑म्। इ॒मा। च॒। विश्वा॑। भुव॑नानि। स॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। अदि॑त्सन्तम्। दा॒प॒य॒ति॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन्। सः। नः॒। र॒यिम्। सर्ववीर॒मिति॒ सर्व॑ऽवीर॒म्। नि। य॒च्छ॒तु॒। स्वाहा॑ ॥२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजस्येमां प्रसवः शिश्रिये दिवमिमा च विश्वा भुवनानि सम्राट् । अदित्सन्तन्दापयति प्रजानन्स नो रयिँ सर्ववीरन्नि यच्छतु स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वाजस्य। इमाम्। प्रसव इति प्रऽसवः। शिश्रिये। दिवम्। इमा। च। विश्वा। भुवनानि। सम्राडिति सम्ऽराट्। अदित्सन्तम्। दापयति। प्रजानन्निति प्रऽजानन्। सः। नः। रयिम्। सर्ववीरमिति सर्वऽवीरम्। नि। यच्छतु। स्वाहा॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 24
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजा किमाश्रित्य केन किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथा वाजस्य मध्ये प्रसवः सम्राडहमिमां दिवमिमा विश्वा भुवनानि च शिश्रिये, तथा यूयमप्येनमेतानि चाश्रयत। यः स्वाहा प्रजानन्नदित्सन्तं दापयति, स नः सर्ववीरं रयिं नियच्छतु॥२४॥

    पदार्थः

    (वाजस्य) राज्यस्य (इमाम्) भूमिम् (प्रसवः) प्रसूताः (शिश्रिये) समाश्रये (दिवम्) देदीप्यमानां राजनीतिम् (इमा) इमानि (च) (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) गृहाणि (सम्राट्) यो राजधर्मे सम्यग्राजते सः (अदित्सन्तम्) राजकरं दातुमनिच्छन्तम् (दापयति) (प्रजानन्) प्रज्ञावान् सन् (सः) (नः) अस्माकं प्रजास्थानाम् (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात्तत् (नि) नितराम् (यच्छतु) गृह्णातु (स्वाहा) धर्म्यया वाचा। अयं मन्त्रः (शत॰ (५। २। २। ६) व्याख्यातः॥२४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! यो मूलस्य राज्यस्य मध्ये सनातनीं राजनीतिं विदित्वा राज्यं संरक्षितुं शक्नुयात्, तमेव चक्रवर्तिनं राजानं कुरुत। यः करस्यादातुः करं दापयेत्, सोऽमात्यो भवितुमर्हेत। यः शत्रून् निग्रहीतुं शक्नुयात्, तं सेनापतिं कुरुत। यो विद्वान् धार्मिको भवेत् तं न्यायाधीशं कोशाध्यक्षं वा कुरुत॥२४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा किसका आश्रय लेकर किसके साथ क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! जैसे (वाजस्य) राज्य के मध्य में (प्रसवः) उत्पन्न हुए (सम्राट्) अच्छे प्रकार राजधर्म में प्रवर्त्तमान मैं (इमाम्) इस भूमि को (दिवम्) प्रकाशित और (इमा) इन (विश्वा) सब और (भुवनानि) घरों को (शिश्रिये) अच्छे प्रकार आश्रय करता हूं, वैसे तुम भी इस को अच्छे प्रकार शोभित करो और जो (स्वाहा) धर्म्मयुक्त सत्यवाणी से (प्रजानन्) जानता हुआ (अदित्सन्तम्) राज्यकर देने की इच्छा न करने वाले से (दापयति) दिलाता है, (सः) सो (नः) हमारे (सर्ववीरम्) सब वीरों को प्राप्त करानेहारे (रयिम्) धन को (नियच्छतु) ग्रहण करे॥२४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्य लोगो! मूल राज्य के बीच सनातन राजनीति को जान कर, जो राज्य की रक्षा करने को समर्थ हो, उसी को चक्रवर्त्ती राजा करो और जो कर देने वालों से कर दिलावे, वह मन्त्री होने को योग्य होवे। जो शत्रुओं को बांधने में समर्थ हो, उसे सेनापति नियुक्त करो और जो विद्वान् धार्मिक हो, उसे न्यायाधीश वा कोषाध्यक्ष करो॥२४॥

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    विषय

    समृद्धि = Prosperity

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र के अनुसार राजा व पुरोहितों के सात्त्विक होने पर ( इमाम् ) = इस भूमि- माता [ राष्ट्र ] को ( वाजस्य ) = शक्ति व ज्ञान का ( प्रसवः ) = ऐश्वर्य ( शिश्रिये ) = आश्रय करता है। सारा राष्ट्र शक्ति-सम्पन्न होता है, इसमें सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश होता है तथा २. ( सम्राट् ) = राजा ( दिवम् ) = प्रकाश का ( शिश्रिये ) = आश्रय करता है ( च ) = और ( इमा ) = इन ( विश्वा ) = सब ( भुवनानि ) = लोकों की ( शिश्रिये ) = [ श्रिञ् सेवायाम् ] सेवा करता है। राजा अपना मुख्य कर्त्तव्य लोकसेवा समझता है। वह सम्राट् है, राष्ट्र का सबसे बड़ा सेवक। 

    ३. ( प्रजानन् ) = उत्कृष्ट ज्ञानवाला होता हुआ यह ( अदित्सन्तम् ) = राज-कर आदि देने की इच्छा न करते हुए से कर ( दापयति ) = दिलाता है। यह राष्ट्र में ऐसी व्यवस्था करता है कि सब कोई अपना कर-भाग अवश्य देता रहे। देय कर से कोई बच न सके। 

    ४. ( सः ) = ऐसा वह राजा ( नः ) = हमें ( सर्ववीरम् ) = सब वीरों को प्राप्त करानेवाला ( रयिम् ) = धन ( नियच्छतु ) = दे, अर्थात् राजा हमें ऐसा धन प्राप्त कराए, जिस धन से हमारे सन्तान वीर हों तथा उस धन को प्राप्त करके हम विलासग्रसित व क्षीणशक्ति न हो जाएँ। हमारा अङ्ग-प्रत्यङ्ग वीरता से पूर्ण बना रहे। 

    ५. ( स्वाहा ) = वीरता से पूर्ण बनाने के लिए सब राष्ट्रवासी स्वार्थ को त्याग करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ — राष्ट्र-व्यवस्था ऐसी सुन्दर हो कि सारा राष्ट्र शक्ति व ज्ञान से सुशोभित हो। समझदार राजा ऐसी व्यवस्था करे कि कोई भी कर आदि देने में गड़बड़ न करे। राष्ट्र के सभी व्यक्ति वीर व धन-सम्पन्न हों। मन्त्र में ‘सर्ववीर’ शब्द को क्रियाविशेषण रक्खें तो अर्थ होगा, धन का इस प्रकार नियमन करें कि धन कहीं केन्द्रित न हो जाए और सभी वीर = समर्थ बने रहें।

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    विषय

    प्रजापालक का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

     ( वाजस्य ) अन्न, वीर्य और सांग्रामिक बल का ( प्रसवः ) उत्पादक यह ( सम्राट् ) सम्राट्, महाराज ( इमाम् ) इस और (दिवम् ) आदित्य के समान प्रकाशमयी और आकाश के समान विस्तृत ज्ञानपूर्ण राजसभा को और विश्वा भुवनानि ) समस्त भुवनों देशों, लोकों को, समस्त लोकों को परमेश्वर के समान विशाल शक्ति से (शिश्रिये ) धारण करता है । वह ( प्रजानन् ) सब कुछ जाननेहारा ( अदित्सन्तम् ) कर या किसी की देन को न देना चाहनेवाले से भी ( दापयति ) दिलवाता है । ( सः ) वह ( नः ) हमें ( सर्व वीरम् रयिम् )सब वीर पुरुषों  से युक्त ऐश्वर्य को ( स्वाहा ) उत्तम धर्मानुकूल व्यवस्था से ( नियच्छतु ) प्रदान करे। 

    टिप्पणी

     २४ - च्छतु ।' इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्देवता । स्वराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जो राज्यामध्ये उत्तम राजधर्म किंवा राजनीती जाणणारा व राज्याचे रक्षण करणारा असेल त्याला चक्रवर्ती राजा करा. कर देण्यास जे टाळाटाळ करतात त्यांच्याकडून कर वसूल करण्याची क्षमता ज्याच्यात असेल त्याला मंत्री करा. जो शत्रूंना बंधनात ठेवू शकेल त्याला सेनापती करा. जो विद्वान व धार्मिक असेल त्याला न्यायाधीश किंवा कोषाध्यक्ष करा.

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    विषय

    राजाने कोणाच्या साहाय्याने कोणकोणती कामें करावी, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (प्रजाजनांप्रति राजाचे वचन) हे प्रजाजनहो, (वाजस्य) या राज्यामधे (प्रसव:) उत्पन्न वा विद्यमान प्रचलित (सम्राट) शोभित राजधर्म (राजाचे कर्तव्य) करीत मी (राजा) (इमाम्) या भूमीला (दिवम्) प्रकाशित करतो (उन्नत वा कीर्तिमान करतो) आणि (इमा) या (विश्वा) सर्व (भुवनानि) घरांना (शिश्रिये) चांगल्या प्रकारचे निवासस्थान करतो, त्याप्रमाणे तुम्ही (नागरिकजनांनी) देखील करावे या राज्यास कीर्तिमंत व घरांना सुंदर करावे) तसेच जो (राजपुरुष, मंत्री वा सेनापती) (स्वाहा) धर्मयुक्त वाणीद्वारे (योग्य त्या पद्धतीने व योग्य त्या प्रमाणात (प्रजानन्) योग्य त्या कर-राशीचे आकलन करून (आदित्सन्तम्) राज्याचे कर न देणार्‍या वा कर चुकविणार्‍या मनुष्याकडून कर (दापयति) वसूल करतो वा देण्यास विवश करतो, (स्:) त्या राजपुरुषाने (न:) आमच्या (सर्ववीरम्) सर्ववीरांकरिता (रयिम्) धन वा कर अवश्य (वियच्छतु) घ्यावा. (आम्ही रक्षण-पालनादी कार्यासाठी राज्य-कर आनंदाने देऊ) ॥24॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, प्रजाजनहो, राज्यात प्रचलित सनातन राजनीतीचे ज्याने ज्ञान प्राप्त केले आहे आणि जो तुमच्या रक्षणासाठी समर्थ आहे, अशा पुरुषासच चक्रवर्ती राजा करा. तसेच जो करपात्र लोकांकडून कर वसूल करण्यास समर्थ आहे, तो मंत्रीपदास पात्र मानावा. तसेच जो शत्रूंना पराजित वा बद्ध करू शकतो, त्यास सेनापती करा आणि जो विद्वान व धार्मिक जन असेल, त्याला न्यायाधीश वा कोषाध्यक्ष करा. ॥24॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    I, the king, born in my state, afford shelter to all habitations, and enforce my policy. May he, who truly knowing all his duties, realises taxes from those, unwilling to pay, receive from us riches, that bring us heroes.

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    Meaning

    The illustrious generator of the food of yajna fills the heavens and all the regions of the world with light and therein abides. That glorious lord/ruler, knowing well the evaders of oblations/taxes, makes them give/ pay their share of the yajna/social yajna of the land.

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    Translation

    The sovereign of all, who is the creator of all food, has pervaded this earth, the sky and all of the worlds. Knowing well, He makes even a miser donate liberally. May He bestow riches on us along with a host of heroes. Svaha. (1)

    Notes

    Aditsantam, one who does not want to give. Dapayati, makes him donate.

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    बंगाली (1)

    विषय

    রাজা কিমাশ্রিত্য কেন কিং কুর্য়্যাদিত্যুপদিশ্যতে ॥
    রাজা কাহার আশ্রয় লইয়া কাহার সঙ্গে কী করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (বাজস্য) রাজ্যের মধ্যে (প্রসবঃ) উৎপন্ন (সম্রাট্) সম্যক্ প্রকার রাজধর্মের পরিচালনায় আমি (ইমাম্) এই ভূমিকে (দিবম্) প্রকাশিত এবং (ইমা) এই (বিশ্বা) সব এবং (ভুবনানি) গৃহগুলিকে (শিশ্রিয়ে) উত্তম প্রকারে আশ্রয় করি সেইরূপ তোমরাও ইহাকে ভাল প্রকার শোভিত কর এবং যে (স্বাহা) ধর্মযুক্ত সত্যবাণী দ্বারা (প্রজানন্) জানিয়া (অদিৎসন্তম্) রাজ্য-কর দিবার অনাকাঙ্ক্ষাকারী হইতে (দাপয়তি) কর প্রদান করায় (সঃ) সেই (নঃ) আমাদের (সর্ববীরম্) সব বীরদিগকে প্রাপ্ত করিবার (রয়িম) ধনকে (নিয়চ্চতু) গ্রহণ করুক ॥ ২৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! মূল রাজ্যের মধ্যে সনাতন রাজনীতিকে জানিয়া যিনি রাজ্যের রক্ষায় সমর্থ তাহাকে চক্রবর্ত্তী রাজা কর এবং যিনি কর-প্রদাতার নিকট হইতে কর প্রদান করান তিনি মন্ত্রী হইবার যোগ্য হউন, যিনি শত্রুদিগকে বাঁধিতে সমর্থ হয় তাহাকে সেনাপতি কর এবং যে বিদ্বান্ ধার্মিক হয়, তাহাকে ন্যায়াধীশ বা কোষাধ্যক্ষ কর ॥ ২৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বাজ॑স্যে॒মাং প্র॑স॒বঃ শি॑শ্রিয়ে॒ দিব॑মি॒মা চ॒ বিশ্বা॒ ভুব॑নানি স॒ম্রাট্ । অদি॑ৎসন্তং দাপয়তি প্রজা॒নন্ৎস নো॑ র॒য়িꣳ সর্ব॑বীরং॒ নিয়॑চ্ছতু॒ স্বাহা॑ ॥ ২৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বাজস্যেমামিত্যস্য বসিষ্ঠ ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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