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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 27
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - अर्य्यमादिमन्त्रोक्ता देवताः छन्दः - स्वराट अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    2

    अ॒र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय। वाचं॒ विष्णु॒ꣳ सर॑स्वती सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॒ꣳ स्वाहा॑॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्य्य॒मण॑म्। बृह॒स्पति॑म्। इन्द्र॑म्। दाना॑य। चो॒द॒य॒। वाच॑म्। विष्णु॑म्। सर॑स्वतीम्। स॒वि॒तार॑म्। च॒। वा॒जिन॑म्। स्वाहा॑ ॥२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्यमणम्बृहस्पतिमिन्द्रन्दानाय चोदय । वाचँ विष्णुँ सरस्वतीँ सवितारंञ्च वाजिनँ स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अर्य्यमणम्। बृहस्पतिम्। इन्द्रम्। दानाय। चोदय। वाचम्। विष्णुम्। सरस्वतीम्। सवितारम्। च। वाजिनम्। स्वाहा॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 27
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजा कान् कस्मिन् प्रेरयेदित्याह॥

    अन्वयः

    हे राजँस्त्वं स्वाहा दानायार्य्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं वाचं विष्णुं सवितारं वाजिनं सरस्वतीं च सत्कर्मसु सदा चोदय॥२७॥

    पदार्थः

    (अर्यमणम्) पक्षपातराहित्येन न्यायकर्त्तारम् (बृहस्पतिम्) सकलविद्याध्यापकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्ययुक्तम् (दानाय) (चोदय) प्रेरय (वाचम्) वेदवाणीम् (विष्णुम्) सर्वाधिष्ठातारम् (सरस्वतीम्) बहुविधं सरो वेदादिशास्त्रविज्ञानं विद्यते यस्यास्तां विज्ञानयुक्तामध्यापिकां स्त्रियम् (सवितारम्) वेदविद्यैश्वर्य्योत्पादकम् (च) (वाजिनम्) प्रशस्तबलवेगादियुक्तं शूरवीरम् (स्वाहा) सत्यया नीत्या। अयं मन्त्रः (शत॰५।२।२।९) व्याख्यातः॥२७॥

    भावार्थः

    ईश्वरोऽभिवदति राजा स्वयं धार्मिको विद्वान् भूत्वा सर्वान्न्यायाधीशान् मनुष्यान् विद्याधर्मवर्धनाय सततं प्रेरयेद् यतो विद्याधर्मवृद्ध्याऽविद्याऽधर्मौ निवृत्तौ स्याताम्॥२७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा किनको किसमें प्रेरणा करे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे राजन्! आप (स्वाहा) सत्यनीति से (दानाय) विद्यादि दान के लिये (अर्यमणम्) पक्षपातरहित न्याय करने (बृहस्पतिम्) सब विद्याओं को पढ़ाने (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्य्ययुक्त (वाचम्) वेदवाणी (विष्णुम्) सब के अधिष्ठाता (सवितारम्) वेदविद्या तथा सब ऐश्वर्य उत्पन्न करने (वाजिनम्) अच्छे बल वेग से युक्त शूरवीर और (सरस्वतीम्) बहुत प्रकार वेदादि शास्त्र विज्ञानयुक्त पढ़ाने वाली विदुषी स्त्री को अच्छे कर्मों में (चोदय) सदा प्रेरणा किया कीजिये॥२७॥

    भावार्थ

    ईश्वर सब से कहता है कि राजा आप धर्मात्मा विद्वान् होकर सब न्याय के करने वाले मनुष्यों को विद्या धर्म्म बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रेरणा करे, जिससे विद्या धर्म की बढ़ती से अविद्या और अधर्म दूर हों॥२७॥

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    विषय

    मन्त्रिवर्ग-प्रेरण

    पदार्थ

    गत मन्त्र के राजा को चाहिए कि वह १. ( अर्यमणम् ) = [ अरीन् यच्छति ] चोर आदि राष्ट्र के शत्रुओं का नियमन करनेवाले न्यायसचिव को २. ( बृहस्पतिम् ) = [ बृहतां पतिम् ] बड़े-बड़े मन्त्रियों के भी पति मुख्यमन्त्री को ३. ( इन्द्रम् ) = [ इदि परमैश्वर्ये ] अर्थसचिव को ४. ( वाचम् ) = वेदवाणी में निपुण धर्मसचिव [ पुरोहित ] को ५. ( विष्णुम् ) [ विष्लृ व्याप्तौ ] विदेश-सचिव को ६. ( सरस्वतीम् ) = शिक्षासचिव को, ज्ञान का विस्तार करनेवाले को ७. ( सवितारम् ) = [ सु = उत्पन्न करना ] उद्योग व व्यापार-सचिव को ( च ) = और ८. ( वाजिनम् ) = संग्रामों के विजेता सेना-सचिव को ( दानाय ) = [ दाप् लवणे ] राष्ट्र में उत्पन्न बुराईरूप घास-फूस को काटने के लिए और इस प्रकार [ दैप् शोधने ] राष्ट्र की शुद्धि के लिए ( चोदय ) = प्रेरित करे। राजा सदा अपने मन्त्रिमण्डल को यही प्रेरणा देता रहे कि वे राष्ट्र में कहीं भी बुराइयों को उत्पन्न न होने दें और जीवन को सदा शुद्ध बनाने का प्रयत्न करें। राष्ट्र में कहीं भी भ्रष्टाचार [ corruption ] आदि शब्द तो सुनाई ही न पड़े। ९. ( स्वाहा ) = ऐसे राजा के लिए हम सदा प्रशंसात्मक शब्द कहें और कर आदि के रूप में अपने धन का त्याग करें।

    भावार्थ

    भावार्थ — राजा के मन्त्रिमण्डल में, सचिवान् सप्त चाष्टौ वा इस मनु के शब्दों के अनुसार आठ मन्त्री हैं। राजा उन्हें सदा राष्ट्र-शोधन की प्रेरणा देता रहे।

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    विषय

    मुख्य विद्वान् ब्राह्मण की सर्वोपरि स्थापना ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! तू ( अर्यमणम् ) पक्षपातरहित, न्यायकारी, ( बृहस्पतिम् ) वेदांदि समस्त विद्याओं के विद्वान्, ( इन्द्रम् ) परम ऐश्वर्य- वान् इन पुरुषों को ( दानाय ) दान करने के लिये ( चोदय ) प्रेरणा कर । न्यायकारी पुरुष उत्तम न्याय दे । बृहस्पति, विद्वान् ज्ञान प्रदान करे और इन्द, ऐश्वर्यवान् पुरुष धन दान दे और ( वाचम् ) वेदवाणी को, ( विष्णुम् ) व्यापक शक्ति वाले या सकल विद्यापारंगत पुरुष को और ( सरस्वतीम् ) बहुत सी विद्याज्ञानों को धारण करने वाली स्त्रियों को, ( सवितारम् ) सबके प्रेरक, आचार्य, सर्वोपदेष्टा पुरुष को और ( वाजिनम् ) ज्ञानी, बलशाली, ऐश्वर्यवान् पुरुष को (च ) भी ( स्वाहा ) उत्तम सदाचार नीति से ( चोदय ) चला ॥ शत० ५ । २ । २ । ९ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    तापस ऋषिः ।अर्यमबृहस्पतीन्द्र-वायु-विष्णु-सरस्वत्यो देवताः । अनुष्टुप् । गांधारः ॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ईश्वर सर्वांना असा उपदेश करतो की राजाने स्वतः धार्मिक विद्वान बनले पाहिजे. न्यायी लोकांना विद्या व धर्माची वृद्धी करण्याची सतत प्रेरणा दिली पाहिजे. त्यामुळे विद्येची वृद्धी होईल व अविद्या आणि अधर्म नाहीसे होतील.

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    विषय

    राजाने कोणाकोणाला कोणकोणते कार्य करण्यासाठी प्रेरणा द्यावी, पुढील मंत्रात या विषयी उपदेश केला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (ईश्वराची आज्ञा राजप्रति) हे राजा, तू (स्वाहा) सत्यनीतीने वागत (दानाय) विद्या आदींचे दान देण्याकरिता (अर्यमणम्) निष्पक्षपाती न्यायी (बृहस्पत्रिम्) सर्व विद्या शिकविणार्‍या (इन्द्रम्) ऐश्वर्यशाली (वाघम्) वेदवाणीच्या विद्वानाला सत्कर्मासाठी प्रेरणाकर तसेच (विष्णुम्) सर्वांचा अधिष्ठाता असलेल्या (सवितारम्) वेद विद्यापारंगत आणि ऐश्वर्योत्पादक (वाजिनम्) बल-वेगादीनी युक्त अशा शूरवीराला सत्कर्म करण्यासाठी प्रेरणा कर. तसेच (सरस्वतीम्) वेदादीशास्त्र शिकविणार्‍या विदुषी स्त्रीला चांगले कर्म करण्यासाठी (चोदय) सदा प्रेरणा देत रहा. (राजाने वेदज्ञ विद्वान, शूरवीर सेनापती आणि वेद विदुषी स्त्रीला उत्तम कर्म करण्यासाठी प्रेरित करीत रहावे) ॥27॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्राद्वारे ईश्वर सर्वांना सांगत आहे की राजाने स्वत: धर्माला आणि विद्वान व्हावे सर्व न्यायकारी मनुष्यांनी विद्या आणि धर्माची वृद्धी करण्यासाठी सतत प्रेरित करीत रहावे, कारण यामुळेच राज्यात विद्या-धर्माची वृद्धी होईल आणि अधर्माची हानी होईल. ॥27॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, with a sound policy, for the spread of knowledge, urge, the lover of impartial justice, " the teacher of all sciences, the master of riches and the Vedas, the leader of men, the learned mistress, the lover of Vedic lore and the brave warrior for noble deeds.

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    Meaning

    O ruler, for the sake of growth with creative contribution to life and happiness (dana), in truth of word and deed, and as a matter of principle and policy: protect, promote and exhort Aryama, the man of justice, Brihaspati, the man of knowledge, and Indra, the man of honour and prowess. Protect and promote the study of sacred literature and language of knowledge. Advance the man of universal honour and recognition (Vishnu). Protect and promote women of knowledge and vision (Saraswati). Honour the brilliant man of light and creativity (Savita), and recognize and encourage the man of instant response and swooping action (vajin).

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    Translation

    О Lord,urge the impartial adjudicator, the great learned teacher, the army chief, the speech, the sacrifice, the learning divine and the powerful sun to bestow gifts on us. Svaha. (1)

    Notes

    Aryamanam, impartial adjudicator. Vacam,वागधिष्ठात्रीं दीवीम्, the speech or the deity presiding over speech. Sarasvafim, the learning divine. Vajinam, powerful.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনা রাজা কান্ কস্মিন্ প্রেরয়েদিত্যাহ ॥
    পুনঃ রাজা কাহাকে কিসে প্রেরণা করিবেন, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে রাজন্ ! আপনি (স্বাহা) সত্য নীতি দ্বারা (দানায়) বিদ্যাদি দান হেতু (অর্য়্যমণম্) পক্ষপাতরহিত ন্যায় করিবার (বৃহস্পতিম্) সব বিদ্যাকে পড়াইবার (ইন্দ্রম্) বড় ঐশ্বর্য্যযুক্ত (বাচম্) বেদবাণী (বিষ্ণুম্) সকলের অধিষ্ঠাতা (সবিতারম্) বেদবিদ্যা তথা সমস্ত ঐশ্বর্য্য উৎপন্ন করিবার (বাজিনম্))সম্যক্ বল-বেগযুক্ত শূরবীর এবং (সরস্বতীম্) বহু প্রকার বেদাদি শাস্ত্র বিজ্ঞানযুক্ত অধ্যয়ন করাইবার বিদুষী নারীকে ভাল কর্মে (চোদয়) সর্বদা প্রেরণা করিতে থাকিবেন ॥ ২৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- ঈশ্বর সকলকে বলেন যে, রাজা আপনি ধর্মাত্মা বিদ্বান্ হইয়া সমস্ত ন্যায়কারী মনুষ্যগণকে বিদ্যা ধর্ম বৃদ্ধি হেতু নিরন্তর প্রেরণা করিবেন যাহাতে বিদ্যা ধর্মের বৃদ্ধি হইয়া অবিদ্যা ও অধর্ম দূর হয় ॥ ২৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒র্য়॒মণং॒ বৃহ॒স্পতি॒মিন্দ্রং॒ দানা॑য় চোদয় ।
    বাচং॒ বিষ্ণু॒ꣳ সর॑স্বতীᳬं সবি॒তারং॑ চ বা॒জিন॒ꣳ স্বাহা॑ ॥ ২৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অর্য়্যমণমিত্যস্য তাপস ঋষিঃ । অর্য়্যমাদিমন্ত্রোক্তা দেবতাঃ । স্বরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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