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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - सेनापतिर्देवता छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    3

    वातो॑ वा॒ मनो॑ वा गन्ध॒र्वाः स॒प्तवि॑ꣳशतिः। तेऽअग्रेऽश्व॑मयुञ्जँ॒स्तेऽअ॑स्मिन् ज॒वमाद॑धुः॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वातः॑। वा॒। मनः॑। वा॒। ग॒न्ध॒र्वाः। स॒प्तवि॑ꣳशति॒रिति॑ स॒प्तऽवि॑ꣳशतिः। ते। अग्रे॑। अश्व॑म्। अ॒यु॒ञ्ज॒न्। ते। अ॒स्मि॒न्। ज॒वम्। आ। अ॒द॒धुः॒ ॥७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वातो वा मनो वा गन्धर्वाः सप्तविँशतिः । ते अग्रे श्वमयुञ्जँस्ते ऽअस्मिञ्जवमादधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वातः। वा। मनः। वा। गन्धर्वाः। सप्तविꣳशतिरिति सप्तऽविꣳशतिः। ते। अग्रे। अश्वम्। अयुञ्जन्। ते। अस्मिन्। जवम्। आ। अदधुः॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्या कथं किं कृत्वा वेगवन्तो भवेयुरित्याह॥

    अन्वयः

    ये विद्वांसो वातो वा मनो वा यथा सप्तविंशतिर्गन्धर्वा अस्मिन् जगत्यग्रेऽश्वमयुञ्जँस्ते खलु जवमादधुः॥७॥

    पदार्थः

    (वातः) वायुः (वा) इव (मनः) स्वान्तम् (वा) इव (गन्धर्वाः) ये वायव इन्द्रियाणि च धरन्ति ते (सप्तविंशतिः) एतत्संख्याकाः (ते) (अग्रे) (अश्वम्) व्यापकत्ववेगादिगुणसमूहम् (अयुञ्जन्) युञ्जन्ति (ते) (अस्मिन्) जगति (जवम्) वेगम् (आ) (अदधुः)। अयं मन्त्रः (शत॰५। १। ४। ८) व्याख्यातः॥७॥

    भावार्थः

    यान्येकः समष्टिर्वायुः; प्राणाऽपानव्यानोदानसमाननागकूर्मकृकलदेवदत्तधनञ्जया दश; द्वादशं मनस्तत्सहचरितानि श्रोत्रादीनि दशेन्द्रियाणि पञ्च सूक्ष्मभूतानि च मिलित्वा सप्तविंशति, पूर्वमीश्वरेणास्मिन् जगति वेगवन्ति निर्मितानि, य एतानि यथागुणकर्मस्वभावं विज्ञाय यथायोग्यं कार्य्येषु संप्रयुज्य स्वस्त्रीभिरेव साकं रमन्ते, तेऽखिलमैश्वर्य्यं जनयित्वा राज्यं कर्त्तुमर्हन्ति॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य लोग किस प्रकार क्या करके वेग वाले हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    जो विद्वान् लोग (वातः) वायु के (वा) समान (मनः) मन के (वा) समतुल्य और जैसे (सप्तविंशतिः) सत्ताईस (गन्धर्वाः) वायु, इन्द्रिय और भूतों के धारण करनेहारे (अस्मिन्) इस जगत् में (अग्रे) पहिले (अश्वम्) व्यापकता और वेगादि गुणों को (अयुञ्जन्) संयुक्त करते हैं, (ते) वे ही (जवम्) उत्तम वेग को (आदधुः) धारण करते हैं॥७॥

    भावार्थ

    जो एक समष्टि वायु; प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनञ्जय दश; बारहवां मन तथा इस के साथ श्रोत्र आदि दश इन्द्रिय और पांच सूक्ष्मभूत ये सब २७ सत्ताईस पदार्थ ईश्वर ने इस जगत् में पहिले रचे हैं, जो पुरुष इनके गुण, कर्म और स्वभाव को ठीक-ठीक जान और यथायोग्य कार्य्यों में संयुक्त करके अपनी-अपनी ही स्त्री के साथ क्रीड़ा करते हैं, वे सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य को संचित कर राज्य के योग्य होते हैं॥७॥

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    विषय

    २७ गन्धर्व

    पदार्थ

    १. राष्ट्र के सञ्चालन में सेनाओं को वायु-वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले-जानेवाला सेनापति ( वातः ) = है। वह सेनाओं को निरन्तर प्रेरणा दे रहा है। उत्तम मन्त्रणा करनेवाला मुख्यमन्त्री ‘मनः’ है और त्रीणि राजाना विदथे पुरुणि इस मन्त्र में वर्णित ‘राजार्य, धर्मार्य और विद्यार्य सभाओं’ के दशावर अर्थात् नौ-नौ सभ्य, कुल मिलकर २७ सभ्य वेदवाणी का धारण करनेवाले होने से ‘गन्धर्व’ हैं [ गां धरति ]। 

    २. ( ते ) = वे सेनापति, मुख्यमन्त्री तथा ( सप्तविंशतिः ) = सत्ताईस ( गन्धर्वाः ) = वेदों के धारण करनेवाले विद्वान् सभ्य—ये सब मिलकर ( अश्वम् ) = शक्तिशाली तथा निरन्तर कार्यों में व्याप्त होनेवाले राजा को ( अग्रे ) = सबसे अग्रस्थान पर ( अयुञ्जन् ) = नियुक्त करते हें। वे इसे अपना मुखिया बनाते हैं। ( ते ) = वे ही ( अस्मिन् ) = इस अग्रस्थान पर स्थित होनेवाले राष्ट्रपति में ( जवम् ) = स्फूर्ति व गति को ( आदधुः ) = स्थापित करते हैं। उन्हीं के परामर्श के अनुसार ही यह कार्य करता है। 

    भावार्थ

    भावार्थ — राष्ट्र के मुख्य अधिकारी सेनापति, मुख्यमन्त्री, सभासद तथा राष्ट्रपति हैं।

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    विषय

    वायु, मन,गन्धर्वो के समान वेगवान् अश्व का आयोजन ।

    भावार्थ

    ( वात: वा ) वायु जिस प्रकार वेग को धारण करता है, (मनः धा) और जिस प्रकार मन वेग को धारण करता है, और जिस प्रकार (सप्त- विंशतिः गन्धर्वाः ) सत्ताईस गन्धर्व-प्राण, इन्द्रिये और स्थूल सूक्ष्म भूत, सभी वेग धारण करते हैं उसी प्रकार ( ते ) वे विद्वान् पुरुष भी ( अग्ने ) अपने गाड़ियों और रथों के आगे (अश्वम् ) वेगवान् अश्व, गतिसाधन यन्त्र या अश्व के समान कार्य निर्वाहक अग्रणी पुरुष को ( अयुञ्जन् ) जोड़ते हैं । और वे विद्वान् पुरुष ( अस्मिभू ) उसमें ( जवम् ) वेग और बल का ( आदधुः ) आधान करते हैं ॥ शत० ५ । १ । ४ । ८ ॥ 

    टिप्पणी

     सेनापतिर्देवता । द० । 'वातो वो वा मनो वा इति काण्व० । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अश्वो देवता । भुरिगुष्णिक् । ऋषभः॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त व धनंजय हे दहा व समाष्टिवायू अकरा, बारावे मन त्याबरोबरच श्रोत्र इत्यादी दहा इंद्रिये व पाच सूक्ष्म व स्थूल भूत हे सर्व २७ पदार्थ ईश्वराने या जगात प्रथम उत्पन्न केलेले आहेत. जे पुरुष वरील पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणून त्यांना यथायोग्य कार्यात युक्त करतात व आपल्या स्त्रीशी एकनिष्ठ असतात त्यांच्याजवळ संपूर्ण ऐश्वर्य येते व ते राज्य करण्यायोग्य असतात.

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    विषय

    मनुष्यांनी कोणत्या उपायाने वेगगामी होणे शिकावे, पुढील मंत्रात याविषयी वर्णन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जे विद्यावान जन (वायु:) वायूच्या (वा) गतीप्रमाणे आणि (मन:) मनाच्या गतीप्रमाणे वेगवान (सप्तविंशति:) सत्तावीस (गन्धर्वा:) गंधर्व म्हणजे वायू, इंद्रियें आणि प्राणांचे धारण करणारे असे सत्तावीस (गंधर्व) आहेत त्यांच्याशक्ष (अस्मिन्) या संसारात (अग्रे) सर्वप्रथम (अश्वम्) व्यापत्व आदी गुणांशी (अयुंजन्) ज्यांनी संबंध ठेवला. (त्यावर नियंत्रण, संयम ठेऊन त्यांच्यापासून लाभ घेतला आहे) (ते) ती माणसेच (जवय्) अतितीव्र वेग (आद धु:) धारण करतात. (जे लोक त्वरित कार्यप्रवृत्त होतात, झटपट कामें पूर्ण करतात, तेच उन्नती व प्रगती करतात) ॥7॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ईश्वराने या सत्तावीस पदार्थांची रचना केली आहेत समष्टि वायु अर्थात प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कर्म, कृकल, देवदत्त आणि धनंजय. दहा वायू याशिवाय बारावे मन आणि त्याबरोबर दहा इंद्रिये आणि पाच सुक्ष्मभूत-अशा सत्तावीस पदार्थांची रचना परमेश्वराने या जागत प्रथम केली आहे. जे लोक या पदार्थांच्या गुण, कर्म, स्वभाव (क्रिया व परिणाम) यांचे योग्यप्रकारे ज्ञान मिळवून त्यांना यथोचित कार्यात उपयोगात आणतात, आणि केवळ स्व पत्नीशी रतिमान होतात, ते संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात आणि राज्यासाठी योग्य (नागरिक सिद्ध होतात ॥7॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The learned, who like the wind, mind and twenty seven articles, primarily harness swiftness in this world, may acquire alertness as well.

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    Meaning

    Twenty-seven gandharvas (universal wind, the mind and five main pranas, five sub pranas, five organs of sense, five organs of volition, and five subtle elements) these possess and operate with speed in nature. May these bless this man, commander of the forces, with speed.

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    Translation

    The wind, or the mind (thought) or the twenty-seven naksatras were the first to yoke the horse. They put speed in him. (1)

    Notes

    Gandharvah, sustainers of the earth, i. e. the naksatras, Lunar Mansions or stages through which the moon passes and signifying the flight of time.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যা কথং কিং কৃত্বা বেগবন্তো ভবেয়ুরিত্যাহ ॥
    মনুষ্যগণ কী প্রকার কী করিয়া বেগযুক্ত হয়, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যে বিদ্বান্গণ (বাতঃ) বায়ুর (বা) সমান (মনঃ) মনের (বা) সমতুল্য এবং যেমন (সপ্তবিংশতিঃ) সাতাইশ (গন্ধর্বাঃ) বায়ু ইন্দ্রিয় এবং ভূতদিগের ধারণকারী (অস্মিন্) এই জগতে (অগ্রে) প্রথমে (অশ্বম্) ব্যাপকতা এবং বেগাদি গুণসকলকে (অয়ুংজন্) সংযুক্ত করেন (তে) তাহারাই (জবম্) উত্তম বেগকে (আদধুঃ) ধারণ করেন ॥ ৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এক সমষ্টি বায়ু, প্রাণ, অপান, ব্যান, উদান, সমান, নাগ, কূর্ম, কৃকল, দেবদত্ত ও ধনঞ্জয়, (দশ) দ্বাদশ মন তথা ইহাদের সহ শ্রোত্রাদি দশ ইন্দ্রিয় এবং পঞ্চ সূক্ষ্মভূত এই সব ২৭ (সাতাইশ) পদার্থ ঈশ্বর এই জগতে প্রথম রচনা করিয়াছেন । যে পুরুষ ইহার গুণকর্ম ও স্বভাবকে ঠিক ঠিক জানিয়া এবং যথাযোগ্য কর্ম্মে সংযুক্ত করিয়া নিজ নিজ স্ত্রী সহ ক্রীড়া করেন তাঁহারা সম্পূর্ণ ঐশ্বর্য্যকে সঞ্চিত করিয়া রাজ্যের যোগ্য হইয়া থাকে ॥ ৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বাতো॑ বা॒ মনো॑ বা গন্ধ॒র্বাঃ স॒প্তবি॑ꣳশতিঃ ।
    তেऽঅগ্রেऽশ্ব॑ময়ুঞ্জঁ॒স্তেऽঅ॑স্মিন্ জ॒বমাऽऽऽদ॑ধুঃ ॥ ৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বাতো বেত্যস্য বৃহস্পতির্ঋষিঃ । সেনাপতির্দেবতা । ভুরিগুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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