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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 26
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - सोमाग्न्यादित्यविष्णुसूर्य्यबृहस्पतयो देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    सोम॒ꣳ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निम॒न्वार॑भामहे। आ॒दि॒त्यान् विष्णु॒ꣳ सूर्य्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॒ꣳ स्वाहा॑॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑म्। राजा॑नम्। अव॑से। अ॒ग्निम्। अ॒न्वार॑भामह॒ इत्य॑नु॒ऽआर॑भामहे। आ॒दि॒त्यान्। विष्णु॑म्। सूर्य॑म्। ब्र॒ह्मा॑णम्। च॒। बृह॒स्पति॑म्। स्वाहा॑ ॥२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमँ राजानमवसेग्निमन्वारभामहे । आदित्यान्विष्णुँ सूर्यम्ब्रह्माणञ्च बृहस्पतिँ स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमम्। राजानम्। अवसे। अग्निम्। अन्वारभामह इत्यनुऽआरभामहे। आदित्यान्। विष्णुम्। सूर्यम्। ब्रह्माणम्। च। बृहस्पतिम्। स्वाहा॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः कीदृशं राजानं स्वीकुर्य्युरित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथा वयं स्वाहाऽवसे सह वर्त्तमानं विष्णुं सूर्य्यं ब्रह्माणं बृहस्पतिमग्निं सोमं राजानमादित्याँश्चान्वारभामहे तथा यूयमप्यारभध्वम्॥२६॥

    पदार्थः

    (सोमम्) सोमगुणसम्पन्नम् (राजानम्) धर्माचरणेन प्रकाशमानम् (अवसे) रक्षणाद्याय (अग्निम्) अग्निमिव शत्रुदाहकम् (अन्वारभामहे) (आदित्यान्) विद्याऽर्जनाय कृताऽष्टचत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्य्यान् विदुषः (विष्णुम्) व्यापकं परमेश्वरम् (सूर्य्यम्) सूरिषु विद्वत्सु भवम् (ब्रह्माणम्) अधीतसाङ्गोपाङ्गचतुर्वेदम् (च) (बृहस्पतिम्) बृहतामाप्तानां पालकम् (स्वाहा) सत्यया वाण्या॥२६॥

    भावार्थः

    ईश्वराज्ञाऽस्ति सर्वे मनुष्या रक्षणाद्याय ब्रह्मचर्य्यादिना विद्यापारगान् विदुषस्तन्मध्य उत्तमं सूर्य्यादिगुणसम्पन्नं राजानं च स्वीकृत्य सत्यां नीतिं वर्धयन्त्विति॥२६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर कैसे राजा को स्वीकार करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! जैसे हम लोग (स्वाहा) सत्यवाणी से (अवसे) रक्षा आदि के अर्थ (विष्णुम्) व्यापक परमेश्वर (सूर्य्यम्) विद्वानों में सूर्य्यवद् विद्वान् (ब्रह्माणम्) साङ्गोपाङ्ग चार वेदों को पढ़ने वाले (बृहस्पतिम्) बड़ों के रक्षक (अग्निम्) अग्नि के समान शत्रुओं को जलाने वाले (सोमम्) शान्त गुणसम्पन्न (राजानम्) धर्माचरण से प्रकाशमान राजा और (आदित्यान्) विद्या के लिये जिसने अड़तालीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य्य रहकर पूर्ण विद्या पढ़, सूर्यवत् प्रकाशमान विद्वानों के सङ्ग से विद्या पढ़ के गृहाश्रम का (अन्वारभामहे) आरम्भ करें, वैसे तुम भी किया करो॥२६॥

    भावार्थ

    ईश्वर की आज्ञा है कि सब मनुष्य रक्षा आदि के लिये ब्रह्मचर्य्य व्रतादि से विद्या के पारगन्ता विद्वानों के बीच, जिसने अड़तालीस वर्ष ब्रह्मचर्य्य व्रत किया हो, ऐसे राजा को स्वीकार करके सच्ची नीति को बढ़ावें॥२६॥

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    विषय

    राज-विश्वास

    पदार्थ

    ‘कैसे व्यक्ति को राजा बनाएँ’, इस विषय का वर्णन करते हुए प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि ( अवसे ) = रक्षणादि क्रियाओं के लिए ( अनु आरभामहे ) = पीछे चलते हुए हम उस राजा पर विश्वास करते हैं [ आरभ = to rely on ]। हमें राजा पर पूर्ण विश्वास है we have full faith [complete confidence] in him = हम उसके विरोध में ‘no confidence motion’ अविश्वास प्रस्ताव ही पेश नहीं करते रहते। हम उसके बनाये हुए नियमों का ठीक से पालन करते हैं। 

    १. हम उस राजा पर विश्वास करते हैं जो ( सोमम् ) = गुण-सम्पन्न है, घमण्ड से रहित है तथा क्रूर मनोवृत्तिवाला नहीं है। 

    २. ( राजानम् ) = जो ज्ञान की दीप्तिवाला है अथवा स्वास्थ्य के कारण चमकता है तथा प्रजा के जीवन को बड़ा व्यवस्थित = regulated करनेवाला है। 

    ३. ( अग्निम् ) = जो प्रगतिशील है, उत्तम नेतृत्व देनेवाला है। 

    ४. ( आदित्यान् ) = जो सदा उत्तमता का आदान करनेवाला है अथवा अग्निवत् शत्रुओं का दाहक है [ आदानात् आदित्यः ]। 

    ५. ( विष्णुम् ) = जो व्यापक व उदार मनोवृत्तिवाला है। 

    ६. ( सूर्यम् ) = [ सूरिषु विद्वत्सु भवम् ] सदा विद्वानों के सम्पर्क में रहनेवाला है। 

    ७. ( ब्रह्माणम् ) = जो चतुर्वेदवेत्ता है अथवा उत्पादक [ creator ] है—सदा उत्पादन के कार्यों में रुचिवाला है। ( च ) = और ८. ( बृहस्पतिम् ) =  सर्वोच्च दिशा का अधिपति है, अर्थात् अत्यन्त उच्च जीवनवाला है। ( स्वाहा ) = ऐसे राजा के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और ऐसे राजा के लिए ही हम ( स्व+हा ) = अपने धन का नियत अंश कररूप में देते हैं। इन गुणों से युक्त राजा सच्चा ‘तापस’ = तपस्वी है। यही मन्त्र का ऋषि है।

    भावार्थ

    भावार्थ — राजा के लिए सोमादि गुण-सम्पन्न होना आवश्यक है। ऐसे राजा में ही प्रजा पूर्ण रूप से विश्वास करती है और उसे उचित कर प्रदान करती है। 

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    विषय

    मुख्य विद्वान् ब्राह्मण की सर्वोपरि स्थापना ।

    भावार्थ

    हम लोग ( अवसे ) रक्षा के लिये सोमम् ) सौम्य स्वभाव, सबके प्रेरक और ( अग्निम् ) अग्नि के समान शत्रुतापक या प्रकाशवान्, तेजस्वी विद्वान पुरुष को ( राजानम्) राजा ( अनु आरभामहे ) बड़े सोच विचार के पश्चात् बनावें । और ( स्वाहा ) उत्तम विद्या और आचार के अनुसार ही ( आदित्यान् ) ४८ वर्ष के ब्रह्मचारी, आदित्य के समान तेजस्वी विद्वानों को ( विष्णुम् ) व्यापक, सर्व विद्याओं और राज- व्यवस्थाओं में व्यापक, विज्ञ या पारंगत ( सूर्यम् ) सूर्य के समान सबको समानरूप से प्रकाश देनेवाले और ( ब्रह्माणम् ) वेदों के विद्वान् और ( बृहस्पतिम् ) बृहती वेदवाणी, बृहत् महान् राष्ट्र और बृहत् बड़े बड़े प्राप्त पुरुषों के पालक पुरुष को भी हम ( अनु -आ- रमामहे ) अपनी रक्षा के लिये नियुक्त करें, उनको शासक अधिकारी बनावें ॥ शत० ५ । २ । २ । ८॥ 

    टिप्पणी

     २६ 'आदित्यं वि०' इति काण्व० । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    तापस ऋषिः । सोमाग्न्यादित्य विष्णु सूर्य ब्रह्मबृहस्पतयो विश्वेदेवाश्च देवताः ।  अनुष्टुप्। गांधारः ॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ईश्वराची अशी आज्ञा आहे की सर्वांच्या रक्षणासाठी ब्रह्मचर्य व्रत पालन करून विद्येत निष्णात असलेल्या विद्वानांमध्ये राहून ज्याने अठ्ठेचाळीस वर्षे ब्रह्मचर्य व्रत पालन केलेले आहे अशा व्यक्तीला राजा म्हणून निवडावे व उत्तम नीतिमूल्ये वृद्धिंगत करावीत.

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    विषय

    पुनश्च, प्रजेने कशाप्रकारच्या राजास स्वीकार करावे (राजा कोणत्या गुण, पात्रता आदींनी संपन्न असावा) याविषयी पुढील मंत्रात उपदेश केला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (विद्वज्जन म्हणत आहेत) हे मनुष्यांने (सामान्य नागरिकजनहो) ज्याप्रमाणे आम्ही (विद्वज्जन) (स्वाहा) सत्य वाणीचा अवलंब करीत (अवसे) आपल्या रक्षणासाठी (विष्णुम्) त्या सर्वव्यापी ईश्वराचा (स्वीकार करीत आहोत) आणि (सूर्य्यम्) विद्वानांमधे सूर्याप्रमाणे जो तेजस्वी विद्वान आहे, जो (ब्रह्माणम्) चार वेदांचे सांगोपांग अध्ययन करणारा, (बृहस्पतिम्) श्रेष्ठजनांना रक्षक (अग्निम्) अग्नीप्रमाणे शत्रूंना भस्म करणारा आणि (सोहम्) चंद्राप्रमाणे शांतगुणसंपन्न आहे, अशा (राजानम्) धर्मानुचारी प्रशंसनीय राजाला स्वीकार करीत आहोत, तसेच (आदित्यान्) विद्यार्जनासाठी अठ्ठेचाळीस वर्षापर्यंत ब्रह्मचर्य धारण करून, पूर्ण विद्या अवगत करून आम्ही ज्याप्रमाणे सूर्याप्रमाणे प्रकाशमान आणि विद्वानांच्या संगतीमुळे विद्यावान होऊन गृहाश्रमाचा (आरभामहे) स्वीकार करीत आहोत वा केलेला आहे, त्याप्रमाणे तुम्ही देखील करा. (आमचा आदर्श डोळ्यासमोर ठेऊन त्याप्रमाणे आचरण करा) ॥26॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ईश्वराची अशी आज्ञा आहे की सर्व मनुष्यांनी आपल्या सुरक्षेकरिता अशा मनुष्यास राजा म्हणून स्वीकारावे की ज्याने ब्रह्मचर्यव्रत धारण करणार्‍या विद्यापारंगत विद्वानांमध्ये राहून अठ्ठेचाळीस वर्ष ब्रह्मचर्यव्रत धारण केले असेल. अशा राजाच्या अधीन राहून सर्व जणांनी सत्यनीतीचा अवलंब व वृद्धी करावी. ॥26॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Let us elect him, for our protection, after due deliberations, as king, who is amiable, and destroyer of foes like fire, who has received education from the learned, who has observed the vow of celibacy for forty eight years, who holds sway over administrative problems, is supreme among the learned, is master of all the four Vedas, and protector of the sages.

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    Meaning

    Let us, in truth of word and deed, follow the ruler, man of auspicious virtue, sun-like brilliant scholar of the Vedas, guardian of the noble seniors of wisdom, and aditya-brahmacharis of 48 years, and, by the grace of Vishnu, omnipresent lord of the world, let us begin the action.

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    Translation

    For our protection, we invoke the blissful Lord, the sovereign and the adorable Lord, the months, the omnipresent Lord, the sun, the Lord of knowledge and the Lord Supreme. Svaha. (1)

    Notes

    Anvarabhamahe, we invoke; call Brehms, the Lord of knowledge.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ কীদৃশং রাজানং স্বীকুর্য়্যুরিত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনঃ কীভাবে রাজাকে স্বীকার করিবে এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে দেওয়া হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমরা (স্বাহা) সত্যবাণী দ্বারা (অবসে) রক্ষাদির অর্থ (বিষ্ণুম্) ব্যাপক পরমেশ্বর (সূর্য়্যম্) বিদ্বান্দিগের মধ্যে সূর্য্যবৎ বিদ্বান্ (ব্রহ্মাণম্) সাঙ্গোপাঙ্গ চারি বেদ অধ্যয়নকারী (বৃহস্পতিম্) গুরুজনদের রক্ষক (অগ্নিম্) অগ্নি সম শত্রুদিগকে দাহনকারী (সোমম্) শান্ত গুণসম্পন্ন (রাজানম্) ধর্মাচরণ দ্বারা প্রকাশমান রাজা এবং (আদিত্যান্) বিদ্যার জন্য যে আটচল্লিশ বর্ষ পর্যন্ত ব্রহ্মচর্য্য পালন করিয়া পূর্ণ বিদ্যা পাঠ করিয়া সূর্য্যবৎ প্রকাশমান বিদ্বান্দিগের সঙ্গ দ্বারা বিদ্যা অর্জন করিয়া গৃহাশ্রমের (আরভামহে) আরম্ভ করি সেইরূপ তুমিও করিতে থাক ॥ ২৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- ঈশ্বরের আজ্ঞা যে, সকল মনুষ্য রক্ষাদির জন্য ব্রহ্মচর্য্য ব্রতাদি দ্বারা বিদ্যার পারঙ্গম বিদ্বান্দিগের মধ্যে যে আটচল্লিশ বর্ষ ব্রহ্মচর্য্য ব্রত করিয়াছে এমন রাজাকে স্বীকার করিয়া সত্যনীতি বৃদ্ধি করুক ॥ ২৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সোম॒ꣳ রাজা॑ন॒মব॑সে॒ऽগ্নিম॒ন্বার॑ভামহে ।
    আ॒দি॒ত্যান্ বিষ্ণু॒ꣳ সূর্য়্যং॑ ব্র॒হ্মাণং॑ চ॒ বৃহ॒স্পতি॒ꣳ স্বাহা॑ ॥ ২৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সোমমিত্যস্য তাপস ঋষিঃ । সোমাগ্ন্যাদিত্যবিষ্ণুসূর্য়্যবৃহস্পতয়ো দেবতাঃ ।
    অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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