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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 28
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भूरिक अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
    2

    अग्ने॒ऽअच्छा॑ वदे॒ह नः॒ प्रति॑ नः सु॒मना॑ भव। प्र नो॑ यच्छ सहस्रजि॒त् त्वꣳ हि ध॑न॒दाऽअसि॒ स्वाहा॑॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। अच्छ॑। व॒द॒। इ॒ह। नः॒। प्रति॑। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒। प्र। नः॒। य॒च्छ॒। स॒ह॒स्र॒जि॒दिति॑ सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। ध॒न॒दा॒ इति॑ धन॒ऽदाः। असि॒। स्वाहा॑ ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने ऽअच्छा वदेह नः प्रति नः सुमना भव । प्र नो यच्छ सहस्रजित्त्वँ हि धनदा ऽअसि स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। अच्छ। वद। इह। नः। प्रति। नः। सुमना इति सुऽमनाः। भव। प्र। नः। यच्छ। सहस्रजिदिति सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। धनदा इति धनऽदाः। असि। स्वाहा॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 28
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा किं किं कुर्य्यादित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! त्वमिह स्वाहा नोऽच्छ वद, नोऽस्मान् प्रति सुमना भव। त्वं हि सहस्रजिद् धनदा असि, तस्मान्नः सुखं प्रयच्छ॥२८॥

    पदार्थः

    (अग्ने) विद्वन् (अच्छ) सम्यक्, निपातस्य च। (अष्टा॰६।३।१३६) इति दीर्घः (वद) सत्यमुपदिश (इह) अस्मिन् समये (नः) अस्मान् (प्रति) (नः) अस्मान् (सुमनाः) सुहृद्भावः (भव) (प्र) (नः) अस्मभ्यम् (यच्छ) देहि (सहस्रजित्) असहायः सन् सहस्रं योद्धॄन् जेतुं शीलः (त्वम्) (हि) यतः (धनदाः) ऐश्वर्य्यदाता (असि) (स्वाहा) सत्यया वाण्या। अयं मन्त्रः (शत॰५। २। २। १०) व्याख्यातः॥२८॥

    भावार्थः

    ईश्वर आह राजा प्रजासेनाजनान् प्रति सदा सत्यं प्रियं च दद्याद् गृह्णीयाच्च, शरीरात्मबलं वर्धित्वा नित्यं शत्रून् जित्वा धर्मेण प्रजाः पालयेदिति॥२८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्! आप (इह) इस समय में (स्वाहा) सत्य वाणी से (नः) हम को (अच्छ) अच्छे प्रकार (वद) सत्य उपदेश कीजिये (नः) हमारे ऊपर (सुमनाः) मित्रभावयुक्त (भव) हूजिये (हि) जिससे आप (सहस्रजित्) विना सहाय हजार को जीतने (धनदाः) ऐश्वर्य्य देने वाले (असि) हंै, इससे (नः) हमारे लिये (प्रयच्छ) दीजिये॥२८॥

    भावार्थ

    ईश्वर उपदेश करता है कि राजा, प्रजा और सेनाजन मनुष्यों से सदा सत्य प्रिय वचन कहे, उनको धन दे, उनसे धन ले। शरीर आत्मा का बल बढ़ा और नित्य शत्रुओं को जीतकर धर्म से प्रजा को पाले॥२८॥

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    विषय

    प्रजा पर प्रीति

    पदार्थ

    प्रजा राजा से कहती है कि १. ( अग्ने ) = राष्ट्र को आगे ले-चलनेवाले राजन् ! आप ( इह ) = इस राष्ट्र में ( नः अच्छ ) = हमारी ओर अर्थात् हमें लक्ष्य करके ( आवद ) = सब विषयों का उत्तम ज्ञान दो। राजा को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति ज्ञानी बने, राष्ट्रोन्नति की बातों को समझे और राष्ट्र के लिए सदा वैयक्तिक स्वार्थों को छोड़ने के लिए उद्यत हो। 

    २. ( नः प्रति ) = हमारे—प्रजा के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति ( सुमनाः ) = उत्तम मनवाले ( भव ) = होओ। राजा प्रजा को अपने पुत्रतुल्य समझे, उनकी रक्षा के लिए सदा उद्यत हो। 

    ३. हे ( सहस्रजित् ) = शतशः धनों के विजेता राजन्! तू ( नः प्रयच्छ ) = हमें उत्तम धन देनेवाला हो। राजा व्यापार आदि की इस प्रकार सुव्यवस्था करे कि राष्ट्र में कोई भी व्यक्ति अपनी जीविका कमाने में असमर्थ न रहे। हे राजन् ! ( त्वम् ) = आप ( हि ) = निश्चय से ( धनदाः ) = धन देनेवाले ( असि ) = हो। वस्तुतः राज्य-व्यवस्था के ठीक न होने पर धनार्जन बड़ा कठिन हो जाता है। मात्स्यन्याय में जिस प्रकार छोटी मछली के लिए जीना सम्भव नहीं होता उसी प्रकार राष्ट्र-व्यवस्था के ठीक न होने पर छोटे व्यापारी के लिए जीना कठिन हो जाता है। बड़े-बड़े पनपते हैं तो छोटे उजड़ते हैं। राष्ट्र में ‘अति सम्पन्न और अति विपन्न’ इन दो श्रेणियों का निर्माण होकर राष्ट्र की अधोगति होती है। 

    ४. ( स्वाहा ) = उत्तम व्यवस्था करनेवाले राजा के लिए हम ( स्व ) = धन का ( हा ) = त्याग करें, उचित कर आदि के देनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ — जैसे एक पिता सब पुत्रों का ध्यान करता है, इसी प्रकार राजा सारी प्रजा पर प्रीतिवाला हो और सभी को जीविकोपार्जन में सक्षम बनाये।

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    विषय

    विजयी नेता का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्रणी ! शत्रुतापक ! ज्ञानवान् ! तेजस्विन् ! राजन् ! तू ( इह ) यहां, इस लोक में, राष्ट्र में ( नः ) हमें ( अच्छा वद ) उत्तम उपदेश कर । ( न प्रति सुमनाः भव ) हमारे प्रति उत्तम चित्त वाला होकर रह । तु ( सहस्रजित् ) हज़ारों युद्धों का विजय करने हारा है । तू ( नः प्रयच्छ ) हमें ऐश्वर्य प्रदान कर । ( त्वं हि ) तू निश्चय से ( स्वाहा ) उत्तम नीति, रीति और कीर्ति से ही (नः) हमें ( धनदा: असि ) धनैश्वर्य  का प्रदाता है । शत० ५ । २ । २ । १० ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    तापस ऋषिः । अग्निर्देवता । भुरिगनुष्टुप् । गांधारः ॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ईश्वर असा उपदेश करतो की राजाने प्रजा व सेना यांच्याबरोबर नेहमी सत्य व मधुर बोलावे व त्यांना धन देऊन मदत करावी (प्रजेकडून) धन घ्यावे. शरीर व आत्म्याचे बल वाढवावे व सदैव शत्रूंना जिंकून धर्माने प्रजेचे पालन करावे.

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    विषय

    पुनश्च, राजाच्या कर्तव्य कर्मांविषयी पुढील मंत्रात प्रतिपादन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान, आपण (इह) या वेळीं (स्वाहा) सत्यभाषण करीत (न:) आम्हाला (अच्छ) चांगल्याप्रकारे (वद) उपदेश करा. (न:) आमच्याशी (सुमना:) मैत्रीपूर्ण मनाचे (भव) असा (हि) निश्चयाने आपण (सहस्रजित्) कोणाच्या साहाय्याविना हजार वीरांना (वा विद्वानांना वादविवादात) जिंकणारे आणि (धनदा:) ऐश्वर्य देणारे (असि) आहात-(कृपाकरून) (न:) आम्हाला देखील (उपदेश, ज्ञान आणि ऐश्वर्य)(प्रयच्छ) द्या. ॥28॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात ईश्वराने उपदेश केला आहे की राजाने, प्रजेशी आणि सैनिकांशी नेहमी सत्य व प्रियवचनें बोलावींत, त्यांना धन द्यावे व त्यांच्याकडून घ्यावे, तसेच त्यांचे शारीरिक व आत्मिक बळ वाढवून आणि त्यांच्या साहाय्याने शत्रूंना जिंकून धर्माप्रमाणे प्रजेचे पालन करावे. ॥28॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, speak truthfully and kindly to us here, be graciously inclined to us. Winner of thousand warriors, grant us happiness, for thou art the giver of wealth.

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    Meaning

    Lord of the land/world, Agni, be kind and generous to us and, in truth of word and thought, give us the message of knowledge and wisdom for all. Vanquisher of a thousand adversaries, you alone are the generous giver of wealth. Be gracious, lord, and bless us with all we need for fulfilment.

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    Translation

    O adorable Lord, speak kindly to us; be gracious towards us here. O winner of thousands, give liberally to us. You are the granter of wealth. Svaha. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স রাজা কিং কিং কুর্য়্যাদিত্যাহ ॥
    পুনঃ সে রাজা কী করিবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) বিদ্বান্ আপনি (ইহ) এই সময়ে (স্বাহা) সত্যবাণী দ্বারা (নঃ) আমাদিগকে (অচ্ছ) ভাল প্রকার (বদ) সত্য উপদেশ করুন (নঃ) আমাদের উপর (সুমনাঃ) মিত্রভাবযুক্ত (ভব) হউন (হি) যাহাতে (সহস্রজিৎ) আপনি বিনা সাহায্যে সহস্র যোদ্ধা বিজয়ী (ধনদাঃ) ঐশ্বর্য্য দাতা এইজন্য (নঃ) আমাদের জন্য (প্রয়চ্ছ) প্রদান করুন ॥ ২৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- ঈশ্বর উপদেশ করিতেছেন যে, রাজা, প্রজা এবং সেনাগণ মনুষ্যদিগের সহিত সদা সত্য প্রিয় বচন বলিবে, তাহাদিগকে ধন দিবে, শরীর ও আত্মার বল বৃদ্ধি করিবে এবং নিত্য শত্রুদিগকে জিতিয়া ধর্ম সহ প্রজার পালন করিবে ॥ ২৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অগ্নে॒ऽঅচ্ছা॑ বদে॒হ নঃ॒ প্রতি॑ নঃ সু॒মনা॑ ভব ।
    প্র নো॑ য়চ্ছ সহস্রজি॒ৎ ত্বꣳ হি ধ॑ন॒দাऽঅসি॒ স্বাহা॑ ॥ ২৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অগ্ন ইত্যস্য তাপস ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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