अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 10
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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शृङ्गं॑ ध॒मन्त॑ आसते ॥
स्वर सहित पद पाठशृङ्ग॑म् । ध॒मन्त॑: । आसते ॥१२९.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
शृङ्गं धमन्त आसते ॥
स्वर रहित पद पाठशृङ्गम् । धमन्त: । आसते ॥१२९.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
[वहाँ] (त्रयः) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश रूप] (पृदाकवः) अजगर [बड़े साँप] (शृङ्गम्) (धमन्तः) सींग फूँकते हुए [बाजे के समान फुफकार मारते हुए] (परि) अलग (आसते) बैठते हैं ॥८-१०॥
भावार्थ
जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥
टिप्पणी
१०−(शृङ्गम्) वाद्यविशेषं यथा, तथा श्वासशब्दम् (घञन्तः) ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः-शतृ। दीर्घश्वासेन शब्दयन्तः (आसते) उपविशन्ति ॥
विषय
शिखर पर
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार जीवन में तीन शपथें लेने पर [उत्तम मार्ग से धन कमाऊँगा, शान्त रहूँगा, प्रभु की ओर चलूँगा] (त्रयः) = आधिभौतिक, आध्यात्मिक व आधिदैविक तीनों ही कष्ट (परि) = [परेर्वजने] हमारे जीवनों से दूर हो जाते हैं। २. धन को कुमार्ग से न कमाने का व्रत लेने पर मनुष्यों का परस्पर प्रेम न्यून नहीं होता और युद्ध आदि का प्रसंग उपस्थित नहीं होगा, इसप्रकार आधिभौतिक कष्ट उपस्थित नहीं होते। जीवन के शान्त होने पर आध्यात्मिक कष्टों का प्रसंग नहीं होता। प्रभु-प्रवणता आधिदैविक कष्टों को दूर रखती है। ३. इस स्थिति में एक घर के मुख्य पात्र 'पिता, माता व सन्तान' "पृ-दा-कव:' होते हैं। [पृणाति protect क्रियते to be busy] पिता व्यापार आदि में लगे रहकर धनार्जन करता हुआ घर का रक्षक होता है। माता सबके लिए आवश्यक वस्तुओं को 'दा'-देनेवाली होती है तथा सन्तान [कुशके] ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करते हुए कवि व ज्ञानी बनने के लिए यत्नशील होते हैं। ४. इसप्रकार घर के सब व्यक्ति अपने जीवनों में (श्रृंगम्) = शिखर को (धमन्तम्) = [ध्मा-to manufacture by blowing] तपस्या द्वारा निर्मित करते हुए (आसते) = स्थित होते हैं-तपस्या के द्वारा-प्राणायाम के द्वारा उन्नत होते हुए शिखर पर पहुँचते हैं।
भावार्थ
हमारे जीवनों के उत्तम होने पर सब कष्ट हमसे दूर रहते हैं। घरों में "पिता, माता व सन्तान' सब अपने कर्तव्यों को सुचारुरूपेण करते हैं और तपस्वी बनकर शिखर पर पहुँचने के लिए यत्नशील होते हैं।
भाषार्थ
और जो पृदाकु (शृङ्गं धमन्तः) फुत्कारें मारते हुए अर्थात् शृङ्गार-भावनाओं, काम-वासनाओं को उद्दीप्त करते हुए (आसते) आसन जमाए बैठे हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
They hiss, raise their fangs and persist, to strike. They hiss, raise their fangs and persist, to strike. 3pM-y£l 3Tct%: II ^ II
Translation
They sit sounding their fangs.
Translation
They sit sounding their fangs.
Translation
Just as the direction of the movement of the cows is traced from the cow dung littered on the path, and similarly the existence of the sense-organs can be established from the working of the sense-organs.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(शृङ्गम्) वाद्यविशेषं यथा, तथा श्वासशब्दम् (घञन्तः) ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः-शतृ। दीर्घश्वासेन शब्दयन्तः (आसते) उपविशन्ति ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ
[সেখানে] (ত্রয়ঃ) তিন [আধ্যাত্মিক, আধিভৌতিক এবং আধিদৈবিক ক্লেশ রূপ] (পৃদাকবঃ) অজগর [বড়ো সাপ] (শৃঙ্গম্) (ধমন্তঃ) দীর্ঘশ্বাসের [বাঁশির সমান হিসহিস ধ্বনি করে] (পরি) পৃথক (আসতে) বসে/থাকে॥৮-১০॥
भावार्थ
যে কুলে মাতা, পিতা এবং আচার্য সুশিক্ষক হয়, সেখানে সন্তান সদা সুখী থাকে, এবং অজগর সাপ যেমন নিজের শ্বাসের মাধ্যমে টেনে প্রাণীদের খেয়ে ফেলে, তেমনই বিদ্বান সন্তানদের তিনটি ক্লেশ উদ্বিগ্ন করে না॥৭-১০॥
भाषार्थ
এবং যে পৃদাকু (শৃঙ্গং ধমন্তঃ) দীর্ঘশ্বাসের শব্দ করে অর্থাৎ শৃঙ্গার-ভাবনা, কাম-বাসনাকে উদ্দীপ্ত করে (আসতে) আসন দৃঢ় করে বসে আছে।
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