अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 14
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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पुमां॑ कु॒स्ते निमि॑च्छसि ॥
स्वर सहित पद पाठकु॒स्ते । निमि॑च्छसि॥१२९.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
पुमां कुस्ते निमिच्छसि ॥
स्वर रहित पद पाठकुस्ते । निमिच्छसि॥१२९.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (पुमान्) रक्षक पुरुष होकर (कुस्ते) मिलाप के व्यवहार में (निमिच्छसि) चलता रहता है ॥१४॥
भावार्थ
स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
टिप्पणी
१४−(पुमान्) पातेर्डुमसुन्। उ० ४।११८। पुमस्। रक्षकः सन् (कुस्ते) अञ्जिघृसिभ्यः क्तः। उ० ३।८९। कुस संश्लेषणे-क्त। संयोगव्यवहारे (निमिच्छिसि) मियक्षति, म्यक्षतीति गतिकर्मा-निघ० २।१४। इत्यस्य रूपम्। यद्वा मिच्छ उत्क्लेशे=पीडने, इत्ययमपि गतौ। नितरां गच्छसि ॥
विषय
पुमान् को प्रभु की प्राप्ति
पदार्थ
१. ज्ञान की वाणियों के अनुसार क्रियाओं को करता हुआ यह (पुमान्) = [पू] अपने जीवन को पवित्र करनेवाला व्यक्ति (कुस्ते) = प्रभु से अपना मेल कर पाता है [कुस् संश्लेषणे]। हे प्रभो! आप इस पुमान् को ही (निमिच्छसि) = [मिच्छ to hinder] सब वासनाओं को निश्चय से रोकने के द्वारा पवित्र बनाते हो। वह पुमान् स्वयं तो इन काम-क्रोध आदि वासनाओं को जीतने में समर्थ नहीं होता। आपके द्वारा ही तो वह इन्हें जीतने में समर्थ होता है।
भावार्थ
अपने को पवित्र करनेवाला जीव प्रभु से मेल करने का यत्न करता है। प्रभु इसकी वासनाओं को विनष्ट करते हैं।
भाषार्थ
(पुमान्) हे मनुष्य! तू तो वृद्धिशील है, फिर भी (कुस्ते) प्रकृति के आलिङ्गन में (निम्) निम्नगति अर्थात् अधोगति (इच्छसि) चाह रहा है।
टिप्पणी
[पुमान्=पुंस अभिवर्धने। (कुस्ते=कुस् संश्लेषणे)। अथवा कुस्ते=कुत्सिते कर्मणि, स् और त् में आद्यन्त-विपर्यय हुआ है, अर्थात् “स्” के स्थान में “त्”, और “त्” के स्थान में “स्” हुआ है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O man, in the prolific world of nature, why want something undesirable?
Translation
The man having perseverance walks in to unity.
Translation
The man having perseverance walks in to unity.
Translation
I like that I should be able to move freely from one body to another without reaping the fruit of actions, just as a snail gets sleep etc., without any effort on its part.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(पुमान्) पातेर्डुमसुन्। उ० ४।११८। पुमस्। रक्षकः सन् (कुस्ते) अञ्जिघृसिभ्यः क्तः। उ० ३।८९। कुस संश्लेषणे-क्त। संयोगव्यवहारे (निमिच्छिसि) मियक्षति, म्यक्षतीति गतिकर्मा-निघ० २।१४। इत्यस्य रूपम्। यद्वा मिच्छ उत्क्लेशे=पीडने, इत्ययमपि गतौ। नितरां गच्छसि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে মনুষ্য!] (পুমান্) রক্ষক পুরুষ হয়ে (কুস্তে) সংযোগের/মিলনের আচরণে (নিমিচ্ছসি) নিরন্তর গমন করো ॥১৪॥
भावार्थ
স্ত্রী-পুরুষ মিলে ধর্মাচরণ দ্বারা একে-অন্যের সহায়ক হয়ে সংসারের উপকার করুক ॥১১-১৪॥
भाषार्थ
(পুমান্) হে মনুষ্য! তুমি তো বৃদ্ধিশীল, তবুও (কুস্তে) প্রকৃতির আলিঙ্গনে (নিম্) নিম্নগতি অর্থাৎ অধোগতি (ইচ্ছসি) কামনা করছো।
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