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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 13
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - साम्नी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    सघा॑घते॒ गोमी॒द्या गोग॑ती॒रिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सघा॑घते॒ । गोमीद्या । गोगी॑ती॒: । इति॑ ॥१२९.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सघाघते गोमीद्या गोगतीरिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सघाघते । गोमीद्या । गोगीती: । इति ॥१२९.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (गोमीद्या) वेदवाणी जाननेवाली [स्त्री] (गोगतीः) पृथिवी पर गतिवाली [प्रजाओं] को (सघाघते) सहाय करती हैं, (इति) ऐसा [निश्चय] हैं ॥१३॥

    भावार्थ

    स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥

    टिप्पणी

    १३−(सघाघते) म० १। साहयते (गोमीद्या) गौर्वाङ्नाम-निघ० १।११। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। मिदृ मेधाहिंसनयोः-यक्, टाप्, दीर्घश्च। गां वेदवाणीं मेदते प्रजानाति या सा (गोगतीः) गवि पृथिव्यां गतियुक्ताः प्रजाः (इति) एवमस्ति ॥

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    विषय

    प्रभु-प्राप्ति किसे?

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जब तुम शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करते हो तो वे (महा) = महान् (अर्वाह:) = [ऋगतौ] सब गतियों को प्राप्त करानेवाले प्रभु (ते अयत्) = तुझे प्रास होते हैं। उन्नतिशील पुरुष ही प्रभु-प्राप्ति के योग्य होता है। २. (स:) = वे प्रभु (इच्छकम्) = प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनावाले पुरुष को ही (सघाघते) = [receive, accept] स्वीकार करते हैं। यही ब्रह्मलोक में पहुँचने का अधिकारी होता है। ३. यह प्रभु का प्रिय साधक (गोमीद्या:) = [मिद् स्नेहने] ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को (सघाघते) = [सब् to support. bear] अपने में धारण करता है तथा गोगती: ज्ञान की वाणियों के अनुसार क्रियाओं को अपने में धारण करता है। यह बात शास्त्रनिर्दिष्ट है इति-इस कारण ही वह उसका धारण करता है।

    भावार्थ

    शिखर पर पहुँचने के लिए यत्नशील पुरुष को प्रभु की प्राप्ति होती है। प्रभु उसी को प्राप्त होते हैं जो प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनाबाला होता है। यह पुरुष ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को धारण करता है और ज्ञान की बाणियों के अनुसार ही क्रियाओं को करता है।

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    भाषार्थ

    परमेश्वर (गोमीत्) इन्द्रियों की चञ्चलताओं का विनाशक है, अर्थात् (याः) जो (गोगतीः इति) इन्द्रियों की अनियन्त्रित गतियाँ हैं उनका (सघाघते) विनाश करता है।

    टिप्पणी

    [गोमीत्=गो=इन्द्रियां (उणादि कोष २.६७) वैदिक यन्त्रालय, अजमेर+मीत् (मीञ् हिंसायाम्)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The lord of light and knowledge controls and eliminates the fluctuations of mind and senses.

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    Translation

    The lady knowing vedic speeches helps the subjects treading on the earth.

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    Translation

    The lady knowing vedic speeches helps the subjects treading on the earth.

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    Translation

    O soul, thou enjoyest ‘paddy’ or prosperity and well-being as well as barley, i.e., uniting with and separation from thy body (at the time of births and deaths, (as the fruit of thy actions).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(सघाघते) म० १। साहयते (गोमीद्या) गौर्वाङ्नाम-निघ० १।११। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। मिदृ मेधाहिंसनयोः-यक्, टाप्, दीर्घश्च। गां वेदवाणीं मेदते प्रजानाति या सा (गोगतीः) गवि पृथिव्यां गतियुक्ताः प्रजाः (इति) एवमस्ति ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গোমীদ্যা) বেদবাণী জ্ঞাত [স্ত্রী] (গোগতীঃ) পৃথিবীতে গতিযুক্ত [প্রজাকে] (সঘাঘতে) সহায়তা করে, (ইতি) তা [নিশ্চিত]॥১৩॥

    भावार्थ

    স্ত্রী-পুরুষ মিলে ধর্মাচরণ দ্বারা একে-অন্যের সহায়ক হয়ে সংসারের উপকার করুক ॥১১-১৪॥

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    भाषार्थ

    পরমেশ্বর (গোমীৎ) ইন্দ্রিয়-সমূহের চঞ্চলতার বিনাশক, অর্থাৎ (যাঃ) যা (গোগতীঃ ইতি) ইন্দ্রিয়-সমূহের অনিয়ন্ত্রিত গতি রয়েছে সেগুলোর (সঘাঘতে) বিনাশ করেন।

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