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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 11
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अ॒यन्म॒हा ते॑ अर्वा॒हः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यत् । म॒हा । ते॒ । अर्वा॒ह: ॥१२९.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयन्महा ते अर्वाहः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयत् । महा । ते । अर्वाह: ॥१२९.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 11
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे स्त्री !] (अर्वाहः) ज्ञान पहुँचानेवाला [मनुष्य] (महा) महत्त्व के साथ (ते) तेरे लिये (अयत्) प्राप्त होता है ॥११॥

    भावार्थ

    स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥

    टिप्पणी

    ११−(अयत्) अयते। प्राप्यते (महा) मह पूजायाम् क्विप्। महत्त्वेन (ते) तुभ्यम् (अर्वाहः) ऋ गतौ-विच्+वह प्रापणे-अण्। ज्ञानप्रापको विद्वान् ॥

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    विषय

    प्रभु-प्राप्ति किसे?

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जब तुम शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करते हो तो वे (महा) = महान् (अर्वाह:) = [ऋगतौ] सब गतियों को प्राप्त करानेवाले प्रभु (ते अयत्) = तुझे प्रास होते हैं। उन्नतिशील पुरुष ही प्रभु-प्राप्ति के योग्य होता है। २. (स:) = वे प्रभु (इच्छकम्) = प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनावाले पुरुष को ही (सघाघते) = [receive, accept] स्वीकार करते हैं। यही ब्रह्मलोक में पहुँचने का अधिकारी होता है। ३. यह प्रभु का प्रिय साधक (गोमीद्या:) = [मिद् स्नेहने] ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को (सघाघते) = [सब् to support. bear] अपने में धारण करता है तथा गोगती: ज्ञान की वाणियों के अनुसार क्रियाओं को अपने में धारण करता है। यह बात शास्त्रनिर्दिष्ट है इति-इस कारण ही वह उसका धारण करता है।

    भावार्थ

    शिखर पर पहुँचने के लिए यत्नशील पुरुष को प्रभु की प्राप्ति होती है। प्रभु उसी को प्राप्त होते हैं जो प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनाबाला होता है। यह पुरुष ज्ञान की वाणियों के प्रति स्नेह को धारण करता है और ज्ञान की बाणियों के अनुसार ही क्रियाओं को करता है।

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    भाषार्थ

    (ते) वे तीन पृदाकु हैं, जो कि (अयन्महा) महिमा को प्राप्त हुए-हुए हैं, और (अर्वाहः) पर्याप्तरूप में शरीर-रथों का वहन कर रहे हैं, उन्हें विषयों की ओर ले जा रहे हैं।

    टिप्पणी

    [अर्=अलम्। अयन्महाः=अय् (गतौ)+शतृ। मह=अकरान्त नपुंसकलिङ्ग। यथा—महम् (सू০ १२८, मन्त्र १४), तथा हानि (सू০ ११, मन्त्र ६)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Here is come your great saviour.

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    Translation

    O woman, here has come your great educating man.

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    Translation

    O woman, here has come your great educating man.

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    Translation

    O soul, what do you want amongst the groups of vital breaths?

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(अयत्) अयते। प्राप्यते (महा) मह पूजायाम् क्विप्। महत्त्वेन (ते) तुभ्यम् (अर्वाहः) ऋ गतौ-विच्+वह प्रापणे-अण्। ज्ञानप्रापको विद्वान् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে স্ত্রী!] (অর্বাহঃ) জ্ঞান প্রেরক [মনুষ্য] (মহা) মহত্ত্বের সাথে (তে) তোমার জন্য (অয়ৎ) প্রাপ্ত হয় ॥১১॥

    भावार्थ

    স্ত্রী-পুরুষ মিলে ধর্মাচরণ দ্বারা একে-অন্যের সহায়ক হয়ে সংসারের উপকার করুক ॥১১-১৪॥

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    भाषार्थ

    (তে) সেই তিন পৃদাকু, যা (অয়ন্মহা) মহিমা প্রাপ্ত , এবং (অর্বাহঃ) পর্যাপ্তরূপে শরীর-রথের বহন করছে, বিষয়-সমূহের দিকে নিয়ে যাচ্ছে।

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