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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 8
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - दैवी बृहती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    परि॑ त्रयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । त्रय: ॥१२९.८।


    स्वर रहित मन्त्र

    परि त्रयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । त्रय: ॥१२९.८।

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 8
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    [वहाँ] (त्रयः) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश रूप] (पृदाकवः) अजगर [बड़े साँप] (शृङ्गम्) (धमन्तः) सींग फूँकते हुए [बाजे के समान फुफकार मारते हुए] (परि) अलग (आसते) बैठते हैं ॥८-१०॥

    भावार्थ

    जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ८−(परि) पृथग्भावे (त्रयः) आध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकक्लेशाः ॥

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    विषय

    शिखर पर

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जीवन में तीन शपथें लेने पर [उत्तम मार्ग से धन कमाऊँगा, शान्त रहूँगा, प्रभु की ओर चलूँगा] (त्रयः) = आधिभौतिक, आध्यात्मिक व आधिदैविक तीनों ही कष्ट (परि) = [परेर्वजने] हमारे जीवनों से दूर हो जाते हैं। २. धन को कुमार्ग से न कमाने का व्रत लेने पर मनुष्यों का परस्पर प्रेम न्यून नहीं होता और युद्ध आदि का प्रसंग उपस्थित नहीं होगा, इसप्रकार आधिभौतिक कष्ट उपस्थित नहीं होते। जीवन के शान्त होने पर आध्यात्मिक कष्टों का प्रसंग नहीं होता। प्रभु-प्रवणता आधिदैविक कष्टों को दूर रखती है। ३. इस स्थिति में एक घर के मुख्य पात्र 'पिता, माता व सन्तान' "पृ-दा-कव:' होते हैं। [पृणाति protect क्रियते to be busy] पिता व्यापार आदि में लगे रहकर धनार्जन करता हुआ घर का रक्षक होता है। माता सबके लिए आवश्यक वस्तुओं को 'दा'-देनेवाली होती है तथा सन्तान [कुशके] ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करते हुए कवि व ज्ञानी बनने के लिए यत्नशील होते हैं। ४. इसप्रकार घर के सब व्यक्ति अपने जीवनों में (श्रृंगम्) = शिखर को (धमन्तम्) = [ध्मा-to manufacture by blowing] तपस्या द्वारा निर्मित करते हुए (आसते) = स्थित होते हैं-तपस्या के द्वारा-प्राणायाम के द्वारा उन्नत होते हुए शिखर पर पहुँचते हैं।

    भावार्थ

    हमारे जीवनों के उत्तम होने पर सब कष्ट हमसे दूर रहते हैं। घरों में "पिता, माता व सन्तान' सब अपने कर्तव्यों को सुचारुरूपेण करते हैं और तपस्वी बनकर शिखर पर पहुँचने के लिए यत्नशील होते हैं।

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    भाषार्थ

    जो कि (परि) जीवात्मा को घेरे हुए हैं, और (त्रयः) संख्या में तीन हैं॥ ८॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    All those three, evil, disturbing and mixed, i.e., tamasika, rajasika and mixed, black, white and opaque.

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    Translation

    There are three pains-Adhyatmik, Adhibhautic and Adhaidivik.

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    Translation

    There are three pains-Adhyatmik, Adhibhautic and Adhaidivik.

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    Translation

    Here is this soul united with the body, like a horse yolked to a chariot.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(परि) पृथग्भावे (त्रयः) आध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकक्लेशाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [সেখানে] (ত্রয়ঃ) তিন [আধ্যাত্মিক, আধিভৌতিক এবং আধিদৈবিক ক্লেশ রূপ] (পৃদাকবঃ) অজগর [বড়ো সাপ] (শৃঙ্গম্) (ধমন্তঃ) দীর্ঘশ্বাসের [বাঁশির সমান হিসহিস ধ্বনি করে] (পরি) পৃথক (আসতে) বসে/থাকে॥৮-১০॥

    भावार्थ

    যে কুলে মাতা, পিতা এবং আচার্য সুশিক্ষক হয়, সেখানে সন্তান সদা সুখী থাকে, এবং অজগর সাপ যেমন নিজের শ্বাসের মাধ্যমে টেনে প্রাণীদের খেয়ে ফেলে, তেমনই বিদ্বান সন্তানদের তিনটি ক্লেশ উদ্বিগ্ন করে না॥৭-১০॥

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    भाषार्थ

    যা (পরি) জীবাত্মাকে ঘিরে রয়েছে, এবং (ত্রয়ঃ) সংখ্যায় তিন॥ ৮॥

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