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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 17
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुष्युष्णिक् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अजा॑गार॒ केवि॒का ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अजा॑गार॒ । केवि॒का ॥१२९.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अजागार केविका ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अजागार । केविका ॥१२९.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 17
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (केविका) सेवा करनेवाली [बुद्धि] (अजागार) जागती हुई है ॥१७॥

    भावार्थ

    सेवा करनेवाली अर्थात् उचित काम में लगी हुई बुद्धि तीव्र होती है, घुड़चढ़े को उत्तम घोड़ा घुड़साल में मिलता है, गोशाला में नहीं ॥१७, १८॥

    टिप्पणी

    १७−(अजागार) जागरिता सावधाना अभवत् (केविका) केवृ सेवने-ण्वुल्, टाप् अत इत्त्वम्। सेविका बुद्धिः ॥

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    विषय

    सेवावृत्ति व प्रभु का वरण

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार व्रतमय जीवनवाला व्यक्ति कहता है कि (केविका) = [केव to serve] मुझमें सब सेवा की वृत्ति (अजागार) = [जागरिता अभवत्] जागरित हो गई है। मैं अब स्वार्थ से ऊपर उठकर परार्थ में प्रवृत्त हुआ हूँ। २. अब मैं तो (गोशपद्यके) = [गोषु शेते पद्यते] ज्ञान की वाणियों में ही शयन [निवास] व गति के होने पर (अश्वस्य) = [अश् व्याप्ती] उस सर्वव्यापक प्रभु का ही (वार:) = वरण करनेवाला बना हूँ। मेरी इच्छा तो अब एकमात्र यही है कि मैं वेदरुचिवाला व वेदानुसार कार्य करनेवाला बनकर, परार्थ में प्रवृत्त हुआ-हुआ सर्वभूतहिते रत बना हुआ-प्रभु का धारण कर पाऊँ।

    भावार्थ

    मुझमें सेवा की वृत्ति का जागरण हो। मैं सदा ज्ञान की रुचिवाला व तदनुसार कर्म करता हुआ प्रभु का ही वरण करूँ।

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    भाषार्थ

    (अजागार) हे प्रकृति के बने घरवाले जीवात्मन्! (केविका) प्रकृति तो तुम्हारी सेविका है, परन्तु तुम्हारी स्वामिनी बनी हुई है।

    टिप्पणी

    [अजा=अजन्मा प्रकृति+आगार (गृह)। अजा=प्रकृति। यथा—“अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः” (श्वेताश्व০ उप০ ४.५) केविका=केवृ सेवने।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The home of clay, Prakrti, body, senses, passion and reason, all is at your disposal, they serve you for your experience of living.

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    Translation

    The intelligence serving all rests always at vigil.

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    Translation

    The intelligence serving all rests always at vigil.

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    Translation

    That state, which is free from all disease, sorrow, fear, pain or trouble and which is sweet and pleasant like the sweet things tasted by the tongue.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(अजागार) जागरिता सावधाना अभवत् (केविका) केवृ सेवने-ण्वुल्, टाप् अत इत्त्वम्। सेविका बुद्धिः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কেবিকা) সেবিকা [বুদ্ধি] (অজাগার) জাগ্রত হয়/থাকে ॥১৭॥

    भावार्थ

    সেবিকা অর্থাৎ উচিত/উপযুক্ত কর্মে নিয়োজিত বুদ্ধি তীব্র হয়, অশ্বারোহী উত্তম ঘোড়ার সন্ধান পায় আস্তাবলে/অশ্বশালায়, গোশালায় নয়॥১৭, ১৮॥

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    भाषार्थ

    (অজাগার) হে প্রকৃতির ঘর জীবাত্মন্! (কেবিকা) প্রকৃতি তো তোমার সেবিকা, কিন্তু তোমার স্বামিনী হয়ে আছে।

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