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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 2
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    प्र॑ती॒पं प्राति॑ सु॒त्वन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ती॒पम् । प्राति॑ । सु॒त्वन॑म् ॥१२९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतीपं प्राति सुत्वनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतीपम् । प्राति । सुत्वनम् ॥१२९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (एताः) यह (अश्वाः) व्यापक प्रजाएँ (प्रतीपम्) प्रत्यक्ष व्यापक (सुत्वनम् प्राति) ऐश्वर्यवाले [परमेश्वर] के लिये (आ) आकर (प्लवन्ते) चलती हैं ॥१, २॥

    भावार्थ

    संसार के सब पदार्थ उत्पन्न होकर परमेश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान हैं ॥१, २॥

    टिप्पणी

    २−(प्रतीपम्) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २। ५८। प्रति+आप्लृ व्याप्तौ-क्विप्। ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५। ४। ७४। अप्रत्ययः। द्व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत्। पा०। ६। ३। ९३। इति ईत्। प्रत्यक्षव्यापकम् (प्राति) सांहितिको दीर्घः। प्रति। उद्दिश्य (सुत्वनम्) सुयजोर्ङ्वनिप्। पा०। ३। २। १०३। षु प्रसवैश्वर्ययोः-ङ्वनिप्, तुक् च। उत्पादकम्। ऐश्वर्यवन्तं परमेश्वरम् ॥

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    विषय

    प्रतीपम्

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार इन्द्रियों के शुद्ध होने पर (एता:) = ये (अश्वा:) = विविध विषयों में व्याप्त होनेवाली चित्तवृत्तियाँ (आ) = चारों ओर से (प्रतीपम्) = [inverted] अन्तर्मुखी हुई-हुई (प्लवन्ते) = गतिवाली होती हैं। अब ये चितवृत्तियों (प्रातिसुत्वनम्) = ब्रह्माण्ड के प्रत्येक पदार्थ को उत्पन्न करनेवाले प्रभु की ओर चलती हैं।

    भावार्थ

    इन्द्रियों के शुद्ध होने पर चित्तवृत्तियाँ अन्तर्मुखी होकर प्रभु की ओर चलती हैं।

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    भाषार्थ

    इन चित्तवृत्तियों में से प्रत्येक राजसिक तथा तामसिक वृत्ति, (सुत्वनम्) भक्तिरस के पीने वाले को भी (प्रतीपम्) विपरीत अर्थात् उल्टी भावनाओं से (प्राति) भर देता है [प्राति=प्रा पूरणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    They run after temptations, objects good and bad, counter to each other, to and even against man’s love of soma and yajna.

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    Translation

    They go against the soul, the master quite defferent from them.

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    Translation

    They go against the soul, the master quite different from them.

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    Translation

    I want the soul, the subduer of all passions, the protector against evil and misery, and lustrous with spiritual splendor and glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(प्रतीपम्) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २। ५८। प्रति+आप्लृ व्याप्तौ-क्विप्। ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५। ४। ७४। अप्रत्ययः। द्व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत्। पा०। ६। ३। ९३। इति ईत्। प्रत्यक्षव्यापकम् (प्राति) सांहितिको दीर्घः। प्रति। उद्दिश्य (सुत्वनम्) सुयजोर्ङ्वनिप्। पा०। ३। २। १०३। षु प्रसवैश्वर्ययोः-ङ्वनिप्, तुक् च। उत्पादकम्। ऐश्वर्यवन्तं परमेश्वरम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (এতাঃ) এই/উপস্থিত (অশ্বাঃ) ব্যাপক প্রজাগণ (প্রতীপম্) প্রত্যক্ষ ব্যাপক (সুত্বনম্ প্রাতি) ঐশ্বর্যবানের [পরমেশ্বরের] জন্য (আ) এসে (প্লবন্তে) গমন করে/গতিশীল হয়॥১, ২॥

    भावार्थ

    সংসারের সমস্ত পদার্থ উৎপন্ন হয়ে পরমেশ্বরের আজ্ঞায় বর্তমান॥১, ২॥

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    भाषार्थ

    এই চিত্তবৃত্তি-সমূহের মধ্য থেকে প্রত্যেক রাজসিক তথা তামসিক বৃত্তি, (সুত্বনম্) ভক্তিরস পানকারীকেও (প্রতীপম্) বিপরীত অর্থাৎ উল্টো ভাবনা দ্বারা (প্রাতি) পরিপূর্ণ করে [প্রাতি=প্রা পূরণে।]

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