अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 11
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त
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ब॒हिर्बिलं॒ निर्द्र॑वतु॒ काहा॑बाहं॒ तवो॒दरा॑त्। यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥
स्वर सहित पद पाठब॒हि: । बिल॑म् । नि: । द्र॒व॒तु॒ । काहा॑बाहम् । तव॑ । उ॒दरा॑त् । यक्ष्मा॑णाम् । सर्वे॑षाम् । वि॒षम् । नि: । अ॒वो॒च॒म् । अ॒हम् । त्वत् ॥१३.११॥
स्वर रहित मन्त्र
बहिर्बिलं निर्द्रवतु काहाबाहं तवोदरात्। यक्ष्माणां सर्वेषां विषं निरवोचमहं त्वत् ॥
स्वर रहित पद पाठबहि: । बिलम् । नि: । द्रवतु । काहाबाहम् । तव । उदरात् । यक्ष्माणाम् । सर्वेषाम् । विषम् । नि: । अवोचम् । अहम् । त्वत् ॥१३.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
समस्त शरीर के रोग नाश का उपदेश। इस सूक्त का मिलान अ० का० २ सूक्त ३३ से करो।
पदार्थ
(काहाबाहम्) खाँसी लानेवाला (बिलम्) बिल [फूटन रोग] (तव उदरात्) तेरे पेट से (बहिः) बाहिर (निःद्रवतु) निकल जावे। (सर्वेषाम् यक्ष्माणाम्) सब क्षयरोगों के... म० १० ॥११॥
भावार्थ
जैसे उत्तम वैद्य निदान पूर्व बाहिरी और भीतरी रोगों का नाश करके मनुष्यों को हृष्ट-पुष्ट बनाता है, वैसे ही विद्वान् लोग विचारपूर्वक अविद्या को मिटा कर आनन्दित होते हैं ॥१॥ यही भावार्थ २ से २२ तक अगले मन्त्रों में जानो ॥
टिप्पणी
११−(बहिः) बहिर्भावे (बिलम्) बिल भेदने-क। भेदनरोगः (निः) (द्रवतु) गच्छतु (काहाबाहम्) कास+आङ्+वह प्रापणे-अण्, सस्य हः, वस्य बः। कासावाहम्। कासरोगोत्पादकम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
सर्वाङ्ग नीरोगता
पदार्थ
१. (बलास:) = शरीर के बल का नाशक कफ़-रोग (आस:) = बाहर फेंका हुआ (भवतु) = हो थूक के रूप में बाहर फेंक दिया जाए। (आमयत्) = रोगकारी पदार्थ (मूत्रं भवतु) = मूत्ररूप होकर बाहर आ जाए। (सर्वेषाम्) = सब (यक्ष्माणाम्) = रोगों के (विषम्) = विष को (अहम्) = मैं (त्वत्) = तेरे शरीर से (निर् अवोचम्) = बाहर निकालकर बताऊँ, अर्थात् तुझे नीरोग कर दूँ। २. (तव उदरात्) = तेरे उदर से (काहाबाहम्) = खाँसी आदि को लानेवाला (बिलम्) = फूटन रोग [कास आव] अङ्गों को कड़ कड़ानेवाला रोग (बहिः निर्द्रवतु) = बाहर निकल जाए। (ते उदरात्) = तेरे उदर से (क्लोन:) = कलेजे से, (नाभ्या:) = नाभि से और (हृदयात् अधि) = हदय से भी सब रोगों के विष को मैं तेरे शरीर से बाहर कर दूँ।
भावार्थ
कफ़-रोग थूक के रूप में, अन्य रोगकारी पदार्थ मूत्र के रूप में शरीर से पृथक् हो जाएँ। खाँसी करनेवाला फूटन रोग भी शरीर से पृथक् हो जाए। हमारा उदर, क्लोम, नाभि व हृदय सब स्वस्थ हों।
भाषार्थ
(कहावाहम्) प्रयत्न पूर्वक अल्पाल्पमात्रा में परित्यक्त होकर प्रवाहित हुआ मूत्र, (तव उदरात्) तेरे उदर से, पेट से (बिलं बहिः) वस्तिछिद्र द्वारा बाहर (निर्द्रवतु) द्रवरूप में निकल जाय। (सर्वेषां यक्ष्माणाम् विषम्) इस प्रकार (त्वत्) तुझ से, सब प्रकार के यक्ष्मों के विष को (निरवोचम्, अहम्) निकाल देने को विधि मैं ने कह दी है।
टिप्पणी
[काहावाहम्=का (कुत्सिते) + हा (ओहाक् त्यागे) + वाहम् वह, प्रवाह [वाला मूत्र] बिलम् = मूत्राशय अर्थात् वस्ति] Bladder] का छिद्र (देखो अथर्व० १।३।६-९)]
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Diseases
Meaning
Let the disturbing ailment of wind and indigestion go out of your stomach through the excretory organs. Thus have I spoken of the curative formula of the poison of all consumptive diseases.
Translation
May the rumbling sound in your bowels flow out of your abdomen through orifice; the poison of all wasting diseases, I have expelled from you by my advice.
Translation
Let the rumbling sounds run away from the hollow of your stomach as I have uprooted the poison-tant of all consumptions from you.
Translation
. Let cough-producing malady run out of thy belly. I have evoked the poison of all wasting diseases out of thee.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(बहिः) बहिर्भावे (बिलम्) बिल भेदने-क। भेदनरोगः (निः) (द्रवतु) गच्छतु (काहाबाहम्) कास+आङ्+वह प्रापणे-अण्, सस्य हः, वस्य बः। कासावाहम्। कासरोगोत्पादकम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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