अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 22
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम्
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त
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सं ते॑ शी॒र्ष्णः क॒पाला॑नि॒ हृद॑यस्य च॒ यो वि॒धुः। उ॒द्यन्ना॑दित्य र॒श्मिभिः॑ शी॒र्ष्णो रोग॑मनीनशोऽङ्गभे॒दम॑शीशमः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ते॒ । शी॒र्ष्ण: । क॒पाला॑नि । हृद॑यस्य । च॒ । य: । वि॒धु॒: । उ॒त्ऽयन् । आ॒दि॒त्य॒ । र॒श्मिऽभि॑: । शी॒र्ष्ण: । रोग॑म् । अ॒नी॒न॒श॒म॒: । अङ्गऽभेदम् । अशीशम: ॥१३.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
सं ते शीर्ष्णः कपालानि हृदयस्य च यो विधुः। उद्यन्नादित्य रश्मिभिः शीर्ष्णो रोगमनीनशोऽङ्गभेदमशीशमः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ते । शीर्ष्ण: । कपालानि । हृदयस्य । च । य: । विधु: । उत्ऽयन् । आदित्य । रश्मिऽभि: । शीर्ष्ण: । रोगम् । अनीनशम: । अङ्गऽभेदम् । अशीशम: ॥१३.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
समस्त शरीर के रोग नाश का उपदेश। इस सूक्त का मिलान अ० का० २ सूक्त ३३ से करो।
पदार्थ
[हे रोगी !] (ते) तेरे (शीर्ष्णः) शिर के (कपालानि) कपाल की हड्डियाँ (सम्) स्वस्थ [होवें], (च) और (हृदयस्य) हृदय की (यः) जो (विधुः) धड़क [है, वह भी ठीक होवे]। (आदित्य) हे सूर्य [समान तेजस्वी वैद्य !] (उद्यन्) उदय होते हुए तूने (रश्मिभिः) [जैसे सूर्य ने अपनी] किरणों से (शीर्ष्णः) शिर के (रोगम्) रोग को (अनीनशः) नाश कर दिया है, और (अङ्गभेदम्) अङ्गों की फूटन को (अशीशमः) तूने शान्त कर दिया है ॥२२॥
भावार्थ
जैसे सूर्य के उदय होने से अन्धकार का नाश होता है, वैसे ही उत्तम वैद्यों की चिकित्सा से रोगों का निवारण होता है और इसी प्रकार विद्वान् पुरुष आत्मदोष की निवृत्ति करके आत्मोन्नति करता है ॥२२॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
२२−(सम्) सम्यक्। स्वस्थानि (शीर्ष्णः) मस्तकस्य (कपालानि) तमिविशिविडि०। उ० १।११८। कपि चलने-कालन्, नलोपः। शिरोऽस्थीनि (हृदयस्य) (च) (यः) (विधुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। व्यध ताडने-कु। ग्रहिज्यावयिव्यधि०। पा० ६।१।१६। इति सम्प्रसारणम्। ताडनम् (उद्यन्) उद्गच्छन् (आदित्य) हे सूर्यवत्तेजस्विन् वैद्य (रश्मिभिः) किरणैर्यथा (शीर्ष्णः) मस्तकस्य (रोगम्) (अनीनशः) नाशितवानसि (अङ्गभेदम्) अङ्गानां विदारणम् (अशीशमः) शान्तीकृतवानसि ॥
विषय
'सिर व हृदय की पीड़ा' की चिकित्सा सूर्यरश्मियाँ
पदार्थ
१.हे रोगिन् ! (ते) = तेरे (शीर्ण: कपालानि) = सिर के कपाल-भाग (च) = और (हृदयस्य यः विभुः) = जो हृदय की विशेष प्रकार की पीड़ा थी, उस सबको (सम्) = [अनीनशम्] मैंने नष्ट कर दिया है। हे (आदित्य) = [आदानात, दाप लवणे] सब रोगों को उखाड़ फेंकनेवाले सूर्य (उद्यन्) = उदय होता हुआ तू (रश्मिभि:) = अपनी किरणों से (शीर्ण: रोगम) = सिर के रोग को (अनीनश:) = नष्ट कर देता है तथा (अङ्गभेदम्) = अङ्गों की वेदना को तूने (अशीशम:) = शान्त कर दिया है।
भावार्थ
उदय होते हुए सूर्य की किरणें शिरोरोग व हत्-पीड़ाओं को शान्त कर देती हैं। इसी से सूर्याभिमुख होकर ध्यान करने का महत्त्व है।
विशेष
विशेष-नीरोग बनकर प्रभु-स्तवन करनेवाला यह व्यक्ति 'ब्रह्मा' बनता है और उस सुन्दर ही-सुन्दर 'वाम' प्रभु का स्मरण करता है। अगले दो सूक्तों का ऋषि यही है।
भाषार्थ
(ते) तेरे (शीर्ष्णः) सिर के (कपालानि सम्) कपालों के साथ (शीर्ष्णः रोगम्) सिर के रोग को, (च) तथा (हृदयस्य) हृदय का (यः) जो (विषः) कम्पन या बींधना है उसे (उद्यन आदित्य) हे उदित हुए आदित्य ! तूने (रश्मिभिः) रश्मियों द्वारा (अनीनशः) नष्ट कर दिया है, और (अङ्गभेदम्) अङ्गों के टूटने को (अशीशमः) शान्त कर दिया है।
टिप्पणी
[विधुः= वि + धूञ् कम्पने, हृदय की धड़क, Palpitation, अथवा विधुः = व्यस् ताडने (दिवादिः)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Diseases
Meaning
O patient, may the skull bones of your head and the beat of your heart be healthy and harmonious, while, O Rising Sun, with your radiant rays you have eliminated the disease and relieved the racking pain from his body system. (Aditya here is a metaphor of the physician.)
Translation
That ailment of the head, which racked the crown of your head and also the heart, the rising sun (udayan Aditya rasmibhih) has caused to vanish and put an end to the soreness of your limbs.
Translation
O man! healthy are the skull-bones of your head and regular are your hearts peat as the rising has dispelled away with its beams the disease of your head and has relieved you from the pain racking your limbs.
Translation
O patient, sound are the skull-bones of thy head and thy heart’s beat is regular. Thou, Sun, arising with thy beams hath chased away the head’s disease, hath stilled the pain that racked the limbs.
Footnote
The beams of the Sun cure headache and many other diseases.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(सम्) सम्यक्। स्वस्थानि (शीर्ष्णः) मस्तकस्य (कपालानि) तमिविशिविडि०। उ० १।११८। कपि चलने-कालन्, नलोपः। शिरोऽस्थीनि (हृदयस्य) (च) (यः) (विधुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। व्यध ताडने-कु। ग्रहिज्यावयिव्यधि०। पा० ६।१।१६। इति सम्प्रसारणम्। ताडनम् (उद्यन्) उद्गच्छन् (आदित्य) हे सूर्यवत्तेजस्विन् वैद्य (रश्मिभिः) किरणैर्यथा (शीर्ष्णः) मस्तकस्य (रोगम्) (अनीनशः) नाशितवानसि (अङ्गभेदम्) अङ्गानां विदारणम् (अशीशमः) शान्तीकृतवानसि ॥
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