अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 11
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
एन॑श्चिपङ्क्ति॒का ह॒विः ॥
स्वर सहित पद पाठएन॑श्चिपङ्क्ति॒का । ह॒वि: ॥१३०.११॥
स्वर रहित मन्त्र
एनश्चिपङ्क्तिका हविः ॥
स्वर रहित पद पाठएनश्चिपङ्क्तिका । हवि: ॥१३०.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 11
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(एनश्चिपङ्क्तिका) पाप के नाश का फैलानेवाला (हविः) देन-लेन [होवे] ॥११॥
भावार्थ - मनुष्य सत्य से व्यवहार करके धन प्राप्त करे ॥११, १२॥
टिप्पणी -
११−(एनश्चिपङ्क्तिका) वातेर्डिच्च। उ० ४।१३४। एनः+चन श्रद्धोपहननयोः-इण् डित्। वृतेस्तिकन्। उ० ३।१४६। पचि व्यक्तीकरणे विस्तारवचने-तिकन्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः