अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 9
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
आम॑णको॒ मण॑त्सकः ॥
स्वर सहित पद पाठआम॑णक॒: । मण॑त्सक: । १३०.९॥
स्वर रहित मन्त्र
आमणको मणत्सकः ॥
स्वर रहित पद पाठआमणक: । मणत्सक: । १३०.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 9
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(आमणकः) उपदेश करनेवाला और (मणत्सकः) विद्वानों में शक्तिमान् होकर ॥९॥
भावार्थ - मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥
टिप्पणी -
९−(आमणकः) कुञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ।३। आ+मण शब्दे-वुन्। उपदेशकः (मणत्सकः) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्। उ० २।८४। मण शब्दे-अति+शक्लृ+सामर्थ्ये-अच्। मणत्सु विद्वत्सु शक्तः ॥