अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 19
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अथो॒ श्वा अस्थि॑रो भवन् ॥
स्वर सहित पद पाठअथो॑ । श्वा । अस्थि॑र: । भवन् ॥१३०.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अथो श्वा अस्थिरो भवन् ॥
स्वर रहित पद पाठअथो । श्वा । अस्थिर: । भवन् ॥१३०.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 19
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(अथो) अथवा (श्वा) कुत्ते [के समान] (अस्थिरः) चञ्चल स्वभाववाला (भवन्) होता हुआ ॥१९॥
भावार्थ - विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥
टिप्पणी -
१९−(अथो) पक्षान्तरे। अथवा (श्वा) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१९। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। कुक्कुरो यथा (अस्थिरः) चञ्चलप्रकृतिः (भवन्) सन् ॥