अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 5
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
ए॒तं पृ॑च्छ॒ कुहं॑ पृच्छ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । पृच्छ॒ । कुह॑म् । पृ॑च्छ ॥१३०.५॥
स्वर रहित मन्त्र
एतं पृच्छ कुहं पृच्छ ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । पृच्छ । कुहम् । पृच्छ ॥१३०.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 5
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(एतम्) इस [प्रश्न] को (कुहम्) अद्भुत स्वभाववाले मनुष्य से (पृच्छ) पूछ, (पृच्छ) पूछ ॥॥
भावार्थ - मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥
टिप्पणी -
−(एतम्) प्रश्नम् (पृच्छ) (कुहम्) कुह विस्मापने-क। अद्भुतस्वभावं पुरुषम् (पृच्छ) ॥