अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 12
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
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ये दे॒वा दि॑वि॒षदो॑ अन्तरिक्ष॒सद॑श्च॒ ये। पृ॑थि॒व्यां श॒क्रा ये श्रि॒तास्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठये । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽसद॑:। अ॒न्त॒रि॒क्ष॒ऽसद॑: । च॒ । ये । पृ॒थि॒व्याम् । श॒क्रा: । ये । श्रि॒ता: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ये देवा दिविषदो अन्तरिक्षसदश्च ये। पृथिव्यां शक्रा ये श्रितास्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठये । देवा: । दिविऽसद:। अन्तरिक्षऽसद: । च । ये । पृथिव्याम् । शक्रा: । ये । श्रिता: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (देवाः) दिव्य गुण (दिविषदः) सूर्य में वर्तमान (च) और (ये) जो (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्ष में व्याप्त हैं और (ये) जो (शक्राः) शक्तिवाले गुण (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (श्रिताः) स्थित हैं, (ते) (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्य सूर्य आदि के गुणों को साक्षात् करके सुख प्राप्त करें ॥१२॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध-अथर्व० १०।९।१२। में आ चुका है ॥
टिप्पणी
१२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (पृथिव्याम्) भूमौ (शक्राः) अ० २।५।४। शक्तिमन्तः (ये) (श्रिताः) स्थिताः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
विषय
त्रिलोकी के देव
पदार्थ
१. (ये) = जो (दिविषदा: देवा:) = द्युलोक में स्थित होनेवाले देव हैं, (ये च) = और जो अन्तरिक्षम् अन्तरिक्ष में आसीन होनेवाले देव है, (ये) = जो (शक्रा:) = शक्तिशाली देव (पृथिव्यां श्रिता:) = पृथिवी पर आश्रित हैं, (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पापों व कष्टों से बचाएँ।
भावार्थ
सब देवों की अनुकूलता हमें निष्पाप व सुखी जीवनवाला बनाए।
भाषार्थ
(ये) जो (देवाः) देव (दिविषदः) द्युलोक में स्थित हैं, (च ये अन्तरिक्षसदः) और जो अन्तरिक्ष में स्थित हैं (ये) जो (शक्राः) शक्तिशाली देव (पृथिव्याम्) पृथिवी में (श्रिताः) आश्रय पाए हुए हैं, (ते) वे सब [हे परमेश्वर!] (नः) हमें (अंहसः) मरण या कष्टों से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी
[द्युलोक और अन्तरिक्षलोक के देव अर्थात् दिव्य पदार्थ, निरुक्त में प्रदर्शित है। पृथिवी के देव हैं शासक तथा प्रबन्धक राज्याधिकारी तथा विद्वान् आदि]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(ये देवाः) जो देव, विद्वान्गण (दिविपदाः) द्यौलोक में सूर्य आदि रूप से स्थित हैं (ये अन्तरिक्षसदश्च) और जो वायु, मेघ आदि अन्तरिक्ष, मध्य आकाश में विराजमान हैं और (ये) जो (शकाः) शक्तिमान दिव्य पदार्थ और शक्तिमान, राजर्षि, ब्रह्मर्षि लोग और शक्तिशाली, महापुरुष (पृथिव्याम्) इस पृथिवी पर (श्रिताः) विराजमान हैं (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें पाप के भावों से मुक्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
Those heavenly powers which abide in the regions of light, those that abide in the middle region, and those powers and forces which abide on earth for law and order may, we pray, protect us from sin and suffering.
Translation
The gods that are seated in the sky, and that are seated in the atmosphere, the mighty ones (cakra) that are set (Sri) on the earth; let them free us from distress.
Translation
Let those wondrous potentian forces of nature working in heavenly region, those staying in the atmospheric region; those working on the surface of the earth make us free from disease and distress.
Translation
All the divine forces in the shape of Sun in Heaven, and air, cloud in the atmosphere, and great men, and mighty kings living on the earth: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (पृथिव्याम्) भूमौ (शक्राः) अ० २।५।४। शक्तिमन्तः (ये) (श्रिताः) स्थिताः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
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