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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
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    भू॒तं ब्रू॑मो भूत॒पतिं॑ भू॒ताना॑मु॒त यो व॒शी। भू॒तानि॒ सर्वा॑ सं॒गत्य॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भू॒तम् । ब्रू॒म॒: । भू॒त॒ऽपति॑म् । भू॒ताना॑म् । उ॒त । य: । व॒शी । भू॒तानि॑ । सर्वा॑ । स॒म्ऽगत्य॑ । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूतं ब्रूमो भूतपतिं भूतानामुत यो वशी। भूतानि सर्वा संगत्य ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूतम् । ब्रूम: । भूतऽपतिम् । भूतानाम् । उत । य: । वशी । भूतानि । सर्वा । सम्ऽगत्य । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (भूतम्) ऐश्वर्यवान्, विचारशील [योगीन्द्र] का, (भूतपतिम्) प्राणियों के पालनकर्ता का, (उत) और (भूतानाम्) तत्त्वों [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश द्रव्यों] को (यः) जो (वशी) वश करनेवाला पुरुष है [उसका] (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (सर्वा) सब (भूतानि) प्राणियों से (संगत्य) मिलकर (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥२१॥

    भावार्थ

    मनुष्य जितेन्द्रिय, सर्वहितैषी, तत्त्ववेत्ता जनों से गुण ग्रहण कर के क्लेश का नाश करें ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(भूतम्) भू सत्तायाम्, शुद्धिचिन्तनयोः, मिश्रणे, प्राप्तौ च-कर्मणि कर्तरि वा-क्त, भूत-अर्शआद्यच्। भूतं विभूतिरैश्वर्यं यस्य तम्। तत्त्वचिन्तनशीलम्। योगीन्द्रम्। शिवम् (भूतपतिम्) प्राणिनां पालकम् (भूतानाम्) पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्रव्याणाम् (उत) अपि च (यः) (वशी) वशयिता नियन्ता (भूतानि) प्राणिनः। जीवान् (सर्वा) सर्वाणि (संगत्य) मिलित्वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    भूत-भूतपति

    पदार्थ

    १. (भूतम्) = लब्धसत्ताक [उत्पन्न] वस्तुमात्र को लक्ष्य करके हम (ब्रूम:) = स्तुतिवचन-उनके गुणों के प्रतिपादक वचनों को कहते हैं। (भूतपतिम्) = सब भूतों के रक्षक, (उत) = और (यः भूतानां वशी) = जो सब भूतों को वश में करनेवाला देव है, उसके स्तुतिवचनों को कहते हैं। (ते) = वे (सर्वा भूतानि) = सब भूत (संगत्य) = परस्पर संगत होकर, (न) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें।

    भावार्थ

    हम भूतों [उत्पन्न पदार्थों] के गुणों को समझें। भूतपति प्रभु का स्मरण करें। इसप्रकार भूतपति के स्मरण के साथ भूतों का ठीक प्रयोग करते हुए कष्टों से बचें।

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    भाषार्थ

    (भूतम्) सद्य सत्ता वाले, (भूतपतिम्) सत्तावाले, पञ्चभूतों की स्वामी, (उत) तथा (यः) जो (भूतानाम्) सत्ता वाले पञ्चभूतों का (वशी) वशयिता है, उसे (ब्रूमः) हम प्रार्थना करते हैं कि आप की कृपा से (सर्वा भूतानि) सब पञ्चभूत (संगत्य) मिल कर, एकमत से हो कर, (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।

    टिप्पणी

    [भूतम् = भवतीति, त्रैकालिक सत्ता वाला, सदा सद्रूप से वर्तमान, सद्रूप परमेश्वर। कर्तरि क्तः। परमेश्वर सत्, चित्, आनन्दस्वरूप है। मन्त्र में परमेश्वर के सद्रूप का कथन किया है। मन्त्र में "ब्रूमः" का अभिप्राय है "प्रार्थना करते हैं"। पञ्चभूत= पृथिवी, अप, तेज, वायु, आकाश। ये प्रायः अपने उग्ररूप में हमारा हनन भी करते रहते हैं; पृथिवी भूचाल द्वारा, अप् जल-विप्लाव, अति वर्षा और अवर्षा द्वारा; तेज जलाने द्वारा; वायु प्रबल प्रवाह द्वारा; और प्रकाश कर्कश, कठोर ध्वनियों तथा शब्दों द्वारा। परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि आप इन के पति हैं, स्वामी हैं, ये आप के वश में हैं, अतः इन में प्रेरणाएं दीजिये कि ये इस ढंग से वर्ते, जिस से हमारा हनन न हो। वे परस्पर मिल कर हमें हनन से मुक्त करते रहें, इन में से एक भी अपने में उग्ररूप न हो]।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (भूतं) सत्तावान्, सामर्थ्यवान् पुरुष (भूतपतिम्) सामर्थ्यवान् पुरुषों के स्वामी (उत) और (यः) जो (भूतानां वशी) भूत समस्त प्राणियों का वश करनेहारा है उनकी (ब्रूमः) हम स्तुति करते हैं। (सर्वा भूतानि संगत्य) समस्त प्राणी मिल कर (ते) वें (नः अंहसः मुञ्चन्तु) हमें पाप कर्म से बचावें। सत्तावाले शक्तिशाली पुरुष और समस्त प्रजा के जन संगठन करके प्रजा की ऐसी व्यवस्था करें कि प्रजावासी पापाचरण न करें।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘यः पतिः’ (तृ०) ‘भूतानि सर्वा ब्रूमः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    We address the lord of existence, ruler, protector and sustainer of all living beings, and the controller of all elements of creation that is, and pray that they and all the forms of existence, together, may protect us from sin and suffering.

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    Translation

    Existence we address, the lord of existence, and who is controller of existences; all existences, assembling; let them free us from distress.

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    Translation

    We describe the qualities of creatures, the Lord of all the creatures; and controller of the creatures, that all they together make us free from disease,

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    Translation

    We speak to a contemplative yogi, to God, the Lord of mankind, to king, the ruler of men. Together let all men meet: may they deliver us from sin.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(भूतम्) भू सत्तायाम्, शुद्धिचिन्तनयोः, मिश्रणे, प्राप्तौ च-कर्मणि कर्तरि वा-क्त, भूत-अर्शआद्यच्। भूतं विभूतिरैश्वर्यं यस्य तम्। तत्त्वचिन्तनशीलम्। योगीन्द्रम्। शिवम् (भूतपतिम्) प्राणिनां पालकम् (भूतानाम्) पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्रव्याणाम् (उत) अपि च (यः) (वशी) वशयिता नियन्ता (भूतानि) प्राणिनः। जीवान् (सर्वा) सर्वाणि (संगत्य) मिलित्वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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