अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 20
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
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सर्वा॑न्दे॒वानि॒दं ब्रू॑मः स॒त्यसं॑धानृता॒वृधः॑। सर्वा॑भिः॒ पत्नी॑भिः स॒ह ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑न् । दे॒वान् । इ॒दम् । ब्रू॒म॒: । स॒त्यऽसं॑धान् । ऋ॒त॒ऽवृध॑: । सर्वा॑भि: । पत्नी॑भि: । स॒ह । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वान्देवानिदं ब्रूमः सत्यसंधानृतावृधः। सर्वाभिः पत्नीभिः सह ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वान् । देवान् । इदम् । ब्रूम: । सत्यऽसंधान् । ऋतऽवृध: । सर्वाभि: । पत्नीभि: । सह । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(इदम्) अब (सर्वान्) सब (देवान्) व्यवहार जाननेवालों, (सत्यसंधान्) सत्य के खोजनेवालों, और (ऋतवृधः) सत्य ज्ञान से बढ़ानेवालों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। [अपनी] (सर्वाभिः) सब (पत्नीभिः सह) पत्नियों [वा पालन शक्तियों] के साथ, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) बचावें ॥२०॥
भावार्थ
मनुष्य सब व्यवहारकुशल, सत्यशील, धर्म्मात्मा स्त्री-पुरुषों से शिक्षा प्राप्त करके आनन्दित होवें ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(सर्वान्) समस्तान् (देवान्) व्यवहारिणः पुरुषान् (सत्यसंधान्) सत्या संधा, अनुसन्धानमन्वेषणं येषां तान् (ऋतवृधः) सत्यज्ञानेन बुद्धिशीलान्। धार्मिकान्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १९ ॥
विषय
'सत्यसन्ध-ऋतावृध'
पदार्थ
१. (विश्वान् देवान्) = [विशन्ति] प्रजाओं में प्रवेश करनेवाले [विचरनेवाले] (देवान्) = सब आसुरभावों को जीतने की कामनावाले, (सत्यसंधान्) = सत्य के साथ मेलवाले व (ऋतावृधः) = ऋत का [समय पर सब कार्यों को करने की वृत्ति का] वर्धन करनेवाले पुरुषों का लक्ष्य करके हम (इदं ब्रूमः) = यह स्तुतिवचन कहते हैं। (ते) = वे सब देव (विश्वाभिः पत्नीभिः सह) = अपने अन्दर प्रविष्ट सब पालनशक्तियों के साथ (न) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें। २. (सर्वान्) = [whole] पूर्ण स्वस्थ (देवान्) = देवों को (इदं ब्रूमः) = लक्ष्य करके यह स्तुतिवचन कहते हैं, ये देव (सत्यसंधान्) = सत्य प्रतिज्ञावाले व (अस्तावृधः) = ऋत का वर्धन करनेवाले हैं। (सर्वाभिः पत्नीभिः सह) = अपनी सब पालकशक्तियों के साथ (ते) = वे (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप से मुक्त करें।
भावार्थ
हम सत्य के साथ मेलवाले व ऋत का पालन करनेवाले देव बनकर पापों व कष्टों से दूर होने का यत्न करें।
भाषार्थ
मन्त्रार्थ पूर्ववत् (मन्त्र १९) है। भाव पर जोर देने के लिये, विश्व शब्द की व्याख्या, सर्व शब्द द्वारा की गई है।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(सर्वान् सत्यसंधान् ऋतावृधः देवान् इदं ब्रूमः) समस्त सत्यप्रतिज्ञ, सत्यव्यवहार आचरण को बढ़ाने वाले प्रजाके भीतर रहनेवाले विद्वानों से भी हम ये प्रार्थना करते हैं कि (ते सर्वाभिः पत्नीभिः नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे अपनी समस्त धर्मपत्नियों या पालक शक्तियों सहित हमें पाप कर्म से मुक्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
We address this to all divinities of nature and humanity without exception, all committed to Truth, all devotees and promoters of divine knowledge and laws of life, to come with all their saving and promotive powers in entirety, and protect us from sin, disease and distress.
Translation
The collective gods now we address, of true agreements, increasers of righteousness, together with their collective spouses; let them free us from, distress.
Translation
This we address to men of learning in general, who maintain the integrity of truth and grow to strength through natures law that they with all their protective forces come to us and save us from committing evil deeds.
Translation
We speak to all practical persons, seekers after truth, true in their dealings and conduct, with all their protecting forces: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(सर्वान्) समस्तान् (देवान्) व्यवहारिणः पुरुषान् (सत्यसंधान्) सत्या संधा, अनुसन्धानमन्वेषणं येषां तान् (ऋतवृधः) सत्यज्ञानेन बुद्धिशीलान्। धार्मिकान्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १९ ॥
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