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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
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    ब्रू॒मो दे॒वं स॑वि॒तारं॑ धा॒तार॑मु॒त पू॒षण॑म्। त्वष्टा॑रमग्रि॒यं ब्रू॑म॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रू॒म: । दे॒वम् । स॒वि॒तार॑म् । धा॒तार॑म् । उ॒त । पू॒षण॑म् । त्वष्टा॑रम् । अ॒ग्रि॒यम् । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रूमो देवं सवितारं धातारमुत पूषणम्। त्वष्टारमग्रियं ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रूम: । देवम् । सवितारम् । धातारम् । उत । पूषणम् । त्वष्टारम् । अग्रियम् । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (देवम्) विजयी, (सवितारम्) प्रेरक, (धातारम्) धारण करनेवाले (उत) और (पूषणम्) पोषण करनेवाले पुरुष को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं। (अग्रियम्) अग्रगामी (त्वष्टारम्) सूक्ष्मदर्शी पुरुष को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥३॥

    भावार्थ

    जहाँ पर शूरवीर विद्वान् पुरुष होते हैं, वे परस्पर रक्षा करते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(देवम्) विजयिनम् (सवितारम्) प्रेरकम् (धातारम्) धारकम् (उत) अपि च (पूषणम्) पोषकम् (त्वष्टारम्) त्वक्षू तनूकरणे-तृन्। सूक्ष्मीकर्तारम्। प्रवीणं पुरुषम् (अग्रियम्) अ० ५।२।८। अग्रेभवम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥

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    विषय

    'देव त्वष्टा' प्रभु द्वारा पापमोचन

    पदार्थ

    १. (देवम्) = दान आदि गुणों से युक्त, (सवितारम्) = सबके प्रेरक, (धातारम्) = सबका धारण करनेवाले (उत) = और (पूषणम्) = सबके पोषक प्रभु का (ब्रूम:) = गुणगान करते हैं। (त्वष्टारम्) = निर्माता व (अग्रियम्) = सबसे प्रथम होनेवाले प्रभु का (ब्रूम:) = स्तवन करते हैं। (ते) = वे सब देव (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पापों व कष्टों से बचाएँ।

    भावार्थ

    हम 'देव, सविता, धाता, पूषा, त्वष्टा व अग्निय' प्रभु का स्मरण करें। यह स्मरण हमें वैसा बनने की प्रेरणा देता हुआ पापों व कष्टों से बचाए।

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    भाषार्थ

    (देवम्) स्तुत्य या द्योतमान (सवितारम्) प्रेरक, (धातारम्) धारण पोषण करने वाले, (उत) तथा (पूषणम्) रश्मियों द्वारा परिपुष्ट का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (अग्रियम्) अगुए अर्थात् श्रेष्ठ (त्वष्टारम्) त्वष्टा का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं- (ते) वे [हे परमेश्वर!] (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।

    टिप्पणी

    [देवम्=दिव् स्तुतौः देवो दानाद्व दीपनाद्व द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा (निरु० ७।४।१५)। सविता= सूर्य, जब कि उदित होने वाले सूर्य की रश्मियां द्युलोक की ओर प्रक्षिप्त होती हैं, और नीचे भूमि पर अभी अन्धकार होता है। यथा “तस्य कालो यदा द्यौरपहततमस्काकीर्णरश्मिर्भवति, अधस्तात् तद्वेलायां तमो भवति" (निरुक्त १२/२/१२)। यह काल उषा के प्रमाण करने के पश्चात् का है। यथा "सवितो वरेण्योऽनु प्रयाणभुषसो विभाति" (ऋ० ५।८१।२)। धाता= मध्यस्थानी देवता। सम्भवतः धारक वायु। पूषा=रश्मियों द्वारा परिपुष्ट सूर्य। त्वष्टा= पार्थिव पदार्थों में रूप भरने वाला सूर्य। यथा “य इमे द्यावापृथिवी जनित्री रूपैरपिंशद् भुवनानि विश्वा। तमद्य होतरिषतो यजीयान् देवं त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान् ।। (ऋ० १०।११०।९)] ।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (देवं सवितारम्) सर्वदाता, सर्वप्रेरक (धातारं पूषणम्) सर्वधारक, सर्वपोषक (त्वष्टारम्) सर्वजगदुत्पादक (अग्रियं) सब के आदि मूलकारण प्रभु परमेश्वर का (ब्रूमः) वर्णन करें कि (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे परमात्मा के समस्त गुण हमें पाप से बचावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    We address Savita, the rising sun, Dhata, the all-sustaining Vayu and gravitational force, Pusha, life promoting energy of nature, Tvashta, formative intelligence immanent in nature of the first order and we pray they may keep us free from sin, suffering and disease.

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    Translation

    We address god Savity, Dhitar and Pushan; we address Tvastr at the head (agnya); let them free us from distress.

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    Translation

    I describe and take use of the brilliant sun in rising state, the power of the sun subsisting the worlds, the sun as protector of all creatures and vegetative plants, and first shining sun and let them make us free from disease.

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    Translation

    We call on God, the Bestower, the sustainer, the nourisher, the Creator, the Primordial, Efficient Cause: may these attributes of God deliver us from. sin.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(देवम्) विजयिनम् (सवितारम्) प्रेरकम् (धातारम्) धारकम् (उत) अपि च (पूषणम्) पोषकम् (त्वष्टारम्) त्वक्षू तनूकरणे-तृन्। सूक्ष्मीकर्तारम्। प्रवीणं पुरुषम् (अग्रियम्) अ० ५।२।८। अग्रेभवम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥

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