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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 9
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
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    भ॑वाश॒र्वावि॒दं ब्रू॑मो रु॒द्रं प॑शु॒पति॑श्च॒ यः। इषू॒र्या ए॑षां संवि॒द्म ता नः॑ सन्तु॒ सदा॑ शि॒वाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒वा॒श॒र्वौ । इ॒दम् । ब्रू॒म॒: । रु॒द्रम् । प॒शु॒ऽपति॑: । च॒ । य: । इषू॑: । या: । ए॒षा॒म् । स॒म्ऽवि॒द्म । ता: । न॒: । स॒न्तु॒ । सदा॑ । शि॒वा: ॥८.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भवाशर्वाविदं ब्रूमो रुद्रं पशुपतिश्च यः। इषूर्या एषां संविद्म ता नः सन्तु सदा शिवाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भवाशर्वौ । इदम् । ब्रूम: । रुद्रम् । पशुऽपति: । च । य: । इषू: । या: । एषाम् । सम्ऽविद्म । ता: । न: । सन्तु । सदा । शिवा: ॥८.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (इदम्) अब (भवाशर्वौ) भव [सुखोत्पादक] और शर्व [दुःखनाशक दोनों पुरुषों] को (च) और (रुद्रम्) रुद्र [ज्ञानदाता पुरुष] को, (यः) जो (पशुपतिः) प्राणियों का रक्षक है, (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, [इसलिये कि] (एषाम्) इन सबके (याः इषूः) जिन तीरों को (संविद्म) हम पहिचानते हैं, (ताः) वे (नः) हमारे लिये (सदा) सदा (शिवाः) कल्याणकारी (सन्तु) होवें ॥९॥

    भावार्थ

    जिन पुरुषों के अस्त्र-शस्त्रधारी योद्धा पुरुष सहायक होते हैं, वे शत्रुओं का नाश करके सुख पाते हैं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। सुखोत्पादकशत्रुनाशकौ पुरुषौ (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (रुद्रम्) अ० २।२७।६। रु गतौ-क्विप्, तुक्+रा दाने-क। ज्ञानदातारम् (पशुपतिः) प्राणिरक्षकः (च) (यः) (इषूः) शरान् (याः) (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (सं विद्म) सम्यग् जानीमः (ताः) इषवः (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (सदा) (शिवाः) सुखहेतवः ॥

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    विषय

    'भवशर्व, रुद्र, पशुपति'

    पदार्थ

    १. (भवाशर्वौ) = भव और शर्व को-सुखों के उत्पादक व दुःखों के विनाशक [१] प्रभु को-लक्ष्य करके हम (इदम्) = इस स्तुतिवचन को (ब्रूमः) = कहते हैं। (रुद्रम्) = दुष्टों को रुलानेवाले, (च) = और (यः पशुपति:) = जो सब प्राणियों के रक्षक प्रभु हैं, उन्हें लक्ष्य करके हम इस स्तुतिवचन को कहते हैं। २. (एषाम्) = इन 'भव, शर्व, रुद्र व पशुपति' की (याः इषः संविद्य) = जिन प्रेरणाओं को हम जानते हैं, (ता:) = वे सब प्रेरणाएँ (न:) = हमारे लिए (सदा) = सदा (शिवाः सन्तु) = कल्याणकारिणी हों।

    भावार्थ

    'भव' का स्मरण करते हुए हम भी सुखों का उत्पादन करनेवाले हों, 'शर्व' का स्मरण हमें दु:खदलन में प्रवृत्त करे । 'रुद्र' का स्मरण करते हुए हम दुष्टता का दलन करें और प्राणियों का रक्षण करते हुए हम 'पशुपति' के समान बनें। यही शिवमार्ग है।

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    भाषार्थ

    (भवाशर्वौ) भव अर्थात् राष्ट्रिय उत्पत्तियों का उत्पादक और शर्व अर्थात् शत्रुओं को शीर्ण करने वाला, उन का विनाश करने वाला अर्थात् (यः) जो (पशुपतिः) राष्ट्रिय पशुओं का स्वामी भव, तथा (रुद्रम्) रौद्ररूप शर्व सेनापति है – इन दोनों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (एषां या इषूः) इन के जो वाण हैं उन्हें (संविद्म) सम्यक्तया हम जानते हैं, (ताः) वे इषू अर्थात् बाण, [हे परमेश्वर!] (नः) हमारे लिये (सदा शिवाः) कल्याणकारी (सन्तु) हों।

    टिप्पणी

    [भवः=भावयति, उत्पादयति अन्नादीन इति भवः ण्यर्थः अन्तर्भूतः। शर्वः= शृणाति। रुद्रम्= रौद्ररूपम्, शर्वम्। पशुपतिः= राष्ट्रिय प्राणि वर्ग का पालक, रक्षक अधिकारी भव। पशुः = "तवेमे पञ्च पशवो विभक्ता गाव अश्वाः पुरुषा अजावयः" (अथर्व० ११।२।९), पशुओं के ५ विभाग हैं गावः आदि]।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (भवाशर्वौ) भव और शर्व (रुद्रं) रुद्र और (यः पशुपतिः च) जो पशुपति हैं उन ईश्वर के विशेष गुणों से युक्त स्वरूपों की (ब्रूमः) हम स्तुति करें। और (याः एषां इषूः संविद्मः) और जो इनके इषु, प्रेरक शक्तियां या बाण हैं जिन से जीव प्रेरित होते हैं या जिनकी कामना करके प्रयत्न करते हैं हम उनको भी जानें। (ताः नः सदा शिवाः सन्तु) वे हमारे लिये सदा सुखकारी हों।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘उग्रः पशु’ इति पैप्प० सं०। (तृ०) ‘संविद्मः इति सायणाभिमतः पाठः’।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    We address Bhava and Sharva, catalytic forces of nature’s evolution through making, breaking and remaking process, Rudra, spirit of natural justice, and Pashupati, lord of all living beings, and pray that all the arrows they shoot as we well know may always be kind and constructive for us.

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    Translation

    Bhava and Sarva now we address, Rudra and him that is lord of cattle; the arrows of them which we well know (sam-vid) let those be ever propitious to us.

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    Translation

    We describe the properties of Bhava, the constructive fire, Sarva, the destructive fire; the dreadful heat which protects animals and creatures. We also know these mortifying forces of fire and may, by God's grace they be always auspicious to us.

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    Translation

    May we praise the different aspects of God, as Bhava, Sharva, Rudra, and sustainer of souls. May we know the forces of these aspects. May they be ever kind to us.

    Footnote

    Bhava, Shava, Rudra, Pashupati are the names of God. See Atharva, Kanda 11, verse 2.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। सुखोत्पादकशत्रुनाशकौ पुरुषौ (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (रुद्रम्) अ० २।२७।६। रु गतौ-क्विप्, तुक्+रा दाने-क। ज्ञानदातारम् (पशुपतिः) प्राणिरक्षकः (च) (यः) (इषूः) शरान् (याः) (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (सं विद्म) सम्यग् जानीमः (ताः) इषवः (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (सदा) (शिवाः) सुखहेतवः ॥

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