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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - कुष्ठः छन्दः - षट्पदा जगती सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
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    उ॑त्त॒मो अ॒स्योष॑धीनामन॒ड्वाञ्जग॑तामिव व्या॒घ्रः श्वप॑दामिव। नद्या॒यं पुरु॑षो रिषत्। यस्मै॑ परि॒ब्रवी॑मि त्वा सा॒यंप्रा॑त॒रथो॑ दिवा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्ऽत॒मः। अ॒सि॒। ओष॑धीनाम्। अ॒न॒ड्वान्। जग॑ताम्ऽइव। व्या॒घ्रः। श्वप॑दाम्ऽइव। नद्य॑। अ॒यम्। पुरु॑षः। रि॒ष॒त्। यस्मै॑। प॒रि॒ऽब्रवी॑मि। त्वा॒। सा॒यम्ऽप्रा॑तः। अथो॒ इति॑। दिवा॑ ॥३९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तमो अस्योषधीनामनड्वाञ्जगतामिव व्याघ्रः श्वपदामिव। नद्यायं पुरुषो रिषत्। यस्मै परिब्रवीमि त्वा सायंप्रातरथो दिवा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्ऽतमः। असि। ओषधीनाम्। अनड्वान्। जगताम्ऽइव। व्याघ्रः। श्वपदाम्ऽइव। नद्य। अयम्। पुरुषः। रिषत्। यस्मै। परिऽब्रवीमि। त्वा। सायम्ऽप्रातः। अथो इति। दिवा ॥३९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोगनाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे कुष्ठ !] तू (ओषधीनाम्) ओषधियों में (उत्तमः) उत्तम (असि) है, (इव) जैसे (जगताम्) गतिशीलों [गौ आदि पशुओं] में (अनड्वान्) रथ ले चलनेवाला बैल और (इव) जैसे (श्वपदाम्) कुत्ते के समान पैरवाले हिंसक जन्तुओं में (व्याघ्रः) बाघ [है]। (नद्य) हे नद्य [नदी में उत्पन्न कुष्ठ] (अयम्) वह...... [म०२] ॥४॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥४॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का प्रथम भाग आ चुका है-अ०८।५।११॥४−(उत्तमः) श्रेष्ठः (असि) भवसि (ओषधीनाम्) ओषधीनां मध्ये (अनड्वान्) रथवाहको वृषभः (जगताम्) गतिशीलानां गवादिपशूनां मध्ये (इव) (व्याघ्रः) हिंस्रजन्तुविशेषः (श्वपदाम्) शुन इव पदानि येषां तेषां हिंस्रपशूनां मध्ये (इव)–। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    भाषार्थ

    हे कुष्ठौषध! (ओषधीनाम्) ओषधियों में (उत्तमः) सर्वोत्तम ओषधि (असि) तू है, (इव) जैसे कि (अनड्वान्) शकटवाही बैल (जगताम्) अहिंस्र प्राणियों में सर्वोत्तम है; और (इव) जैसे कि (व्याघ्रः) व्याघ्र (श्वपदाम्) कुत्ते के पैरों के सदृश पैरोंवाले हिंस्रप्राणियों में सर्वोत्तम है। (नद्य) हे नदीप्रदेशोत्पन्न रोग! (अयं पुरुषः) कुष्ठसेवी यह पुरुष (रिषत्) तेरा विनाश करे, (यस्मै....) पूर्ववत्।

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    विषय

    अनड्वान्-व्याघ्रः

    पदार्थ

    १. हे कुष्ठ! तू (ओषधीनाम् उत्तमः असि) = ओषधियों में उसी प्रकार उत्तम है, (इव) = जैसेकि (जगताम् अनड्वान्) = गतिशील गवादि पशुओं में बैल। अन्न आदि का उत्पादन करता हुआ बैल जैसे उपकारक है उसी प्रकार यह कुष्ठ भी हमारा उपकारक है। (इव) = जैसे (श्वपदाम्) = हिंसक पशुओं में (व्याघ्रः) = व्यान उत्तम है, इसी प्रकार ओषधियों में कुष्ठ है। रोगों के प्रति वह भी व्यान के समान क्रूर है। २. हे (नद्य) = उदकदोषोद्भव रोगों को नष्ट करनेवाले कुष्ठ! (यस्मै) = जिस पुरुष के लिए (त्वा) = तुझे सायंप्रात: अथ उ दिवा-सायं-प्रात: और निश्चय से दिन में तीन बार प्रयोग के लिए (परिब्रवीमि) = कहता हूँ, (अयं पुरुषः) = यह पुरुष (रिषत्) = तेरे प्रयोग से रोगों को हिंसित करता है।

    भावार्थ

    कुष्ठ औषध उसी प्रकार उपकारक है जैसे गवादि पशओं में बैल। यह रोगों के प्रति उसी प्रकार क्रूर है, जैसेकि व्याघ्र। इसका प्रयोक्ता रोगों को हिसित करनेवाला होता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure by Kushtha

    Meaning

    You are the best and highest of medicinal herbs as the bull among domestic animals and the tiger among wild beasts. Therefore, O Kushtha, the person for whom I prescribe you thrice, morning, evening and in the day, would destroy all water borne diseases.

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    Translation

    You are most excellent among herbs just as the bullock among cattle and the tiger among carnivora. Let not this man, for whom I prescribe you every, morning and also by day, come to no harm.

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    Translation

    Jivala (that which maintains vital breath) is the mother of the Kustha and Jivanta (that which maintain vitality, is its father. This......... diseases.

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    Translation

    O kushtha, thou art the best among the herbs, most powerful like the high-humped bull, among the cattle, most furious like the tiger among clawed-beasts. Let not this man, whom I .... by ailment.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का प्रथम भाग आ चुका है-अ०८।५।११॥४−(उत्तमः) श्रेष्ठः (असि) भवसि (ओषधीनाम्) ओषधीनां मध्ये (अनड्वान्) रथवाहको वृषभः (जगताम्) गतिशीलानां गवादिपशूनां मध्ये (इव) (व्याघ्रः) हिंस्रजन्तुविशेषः (श्वपदाम्) शुन इव पदानि येषां तेषां हिंस्रपशूनां मध्ये (इव)–। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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