अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 7
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - चतुरवसानाष्टपदाष्टिः
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
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हि॑र॒ण्ययी॒ नौर॑चर॒द्धिर॑ण्यबन्धना दि॒वि। तत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णं॒ ततः॒ कुष्ठो॑ अजायत। स कुष्ठो॑ वि॒श्वभे॑षजः सा॒कं सोमे॑न तिष्ठति। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒र॒ण्ययी॑। नौः। अ॒च॒र॒त्। हिर॑ण्यऽबन्धना। दि॒वि। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्। ततः॑। कुष्ठः॑। अ॒जा॒य॒त॒। सः। कुष्ठः॑। वि॒श्वऽभे॑षजः। सा॒कम्। सोमे॑न। ति॒ष्ठ॒ति॒। त॒क्मान॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡ ॥३९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
हिरण्ययी नौरचरद्धिरण्यबन्धना दिवि। तत्रामृतस्य चक्षणं ततः कुष्ठो अजायत। स कुष्ठो विश्वभेषजः साकं सोमेन तिष्ठति। तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश्च यातुधान्यः ॥
स्वर रहित पद पाठहिरण्ययी। नौः। अचरत्। हिरण्यऽबन्धना। दिवि। तत्र। अमृतस्य। चक्षणम्। ततः। कुष्ठः। अजायत। सः। कुष्ठः। विश्वऽभेषजः। साकम्। सोमेन। तिष्ठति। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥३९.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(हिरण्ययी) तेजवाली [अग्नि वा बिजुली वा सूर्य से चलनेवाली], (हिरण्यबन्धना) तेजोमय बन्धनोंवाली (नौः) नाव (दिवि) व्यवहार में (अचरत्) चलती थी। (तत्र) उसमें (अमृतस्य) अमृत [अमरपन] का (चक्षणम्) दर्शन है, (ततः) उससे (कुष्ठः) कुष्ठ [मन्त्र १] (अजायत) प्रकट हुआ है। (सः) वह (विश्वभेषजः) सर्वौषध (कुष्ठः) कुष्ठ...... [म०५] ॥७॥
भावार्थ
जहाँ पर विद्वान् लोग विज्ञान प्राप्त करके नाव आदि यानों को अग्नि आदि से चलाते हैं, वहाँ कुष्ठ महौषधि बड़ा उपकारी होता है ॥७॥
टिप्पणी
इस मन्त्र के पहिले दो भाग कुछ भेद से आ चुके हैं-अ०५।४।४। तथा ६।९५।२॥७−(हिरण्ययी) हिरण्यमयी। तेजोमयी। अग्निना विद्युता सूर्येण वा प्रयुक्ता (नौः) तरणिः (अचरत्) अगमत् (हिरण्यबन्धना) तेजोमयबन्धनयुक्ता। अन्यत् पूर्ववत्-म०६॥
भाषार्थ
(हिरण्ययी) ज्योतिर्मयी (हिरण्यबन्धना) ज्योतिर्मय बन्धनों द्वारा बन्धी हुई (नौः) नौका (दिवि) द्युलोक में (अचरत्) विचरती है। (तत्र) उसमें जब सूर्य स्थित होता है, तब (अमृतस्य) जीवनप्रद उदक (चक्षणम्) दृष्टिगोचर होता है। (ततः) उस उदक से (कुष्ठः) उत्तम कूट या कुठ (अजायत) पैदा होता है। (स कुष्ठो...यातुधान्यः) पूर्ववत् (मन्त्र १९.३९.५)।
टिप्पणी
[हिरण्ययी= ज्योतिर्मयी। यथा “हिरण्यगर्भः१ समवर्तताग्रे” (यजुः० १३.४); हिरण्मयेन२ पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् (यजुः० ४०.१७)। वर्ष में एक बार तो “अश्वत्थ काल” में वर्षा, और दूसरी बार “नौका काल” में वर्षा का कथन हुआ है। नौः=Name of a constellation (आप्टे) अर्थात् नौः नक्षत्रमण्डल का नाम है।] [१. सूर्यादि तेजोमय पदार्थों का आधार (महर्षिदयानन्द)।] [२. ज्योतिस्वरूप महर्षि दयानन्द।]
विषय
हिरण्यबन्धना नौः
पदार्थ
१. (दिवि) = द्युलोक में यह सूर्य (हिरण्ययी) = ज्योतिर्मयी (नौ) = नाव ही (अचरत्) = गति कर रही है। द्युलोक समुद्र है तो सूर्य उसमें एक चमकीली नाव है। यह नाव (हिरण्यबन्धना) = हितरमणीय वीर्य [हिरण्यं वै वीर्यम] के बन्धनवाली है। सभी प्राणशक्ति इस सूर्य में ही है। (तत्र) = वहाँ उस सूर्य में (अमृतस्य चक्षणम्) = अमृत का दर्शन होता है-सारी जीवनीशक्ति यहाँ सूर्य में ही स्थापित है। (तत:) = उस सूर्य से ही (कुष्ठ:) = यह कुष्ठ नामक औषध (अजायत) = उत्पन्न हुई है। (सः) = वह कुष्ठ भी विश्वभेषज है |
भावार्थ
द्युलोकस्वरूपी समुद्र में स्थित ज्योतिर्मय नाव के समान इस सूर्य में ही सारी प्राणशक्ति रक्खी है। कुष्ठ में यहीं से यह शक्ति आयी है, अत: कुष्ठ सर्वभेषज है।
इंग्लिश (4)
Subject
Cure by Kushtha
Meaning
There is in heaven the golden boat with golden tackle, the celestial constellation Nau. Therein is the tangible birth of nectar which showers from the sun when the sun is there. From that nectar is born the Kushtha, the panacea which grows with Soma. O Kushtha, destroy all kinds of cancerous consumptive diseases and eliminate all kinds of dangerous germs, bacteria and viruses.
Translation
There moves a golden boat with golden tackle in heaven. There is the source of immortality. Therefrom the kustha is born. That Kustha is an all-cure remedy. It contains the curing principle. May you banish all the fever and all the painful diseases. (Av. V.4.4. Vari.)
Translation
Ashvatha, the sun which is store of fire and which is the home of rays is present in the heavenly region, the third from here (the earth). In that sun there is fountain of vitality immortal. This Kustha is produced from there. Rest as in the previous verse.
Translation
There is the bright boat of the light sailing in the heavens with the bright tices in the form of spectra of light. There is the fountain-head of all juices, whence is born .... body.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र के पहिले दो भाग कुछ भेद से आ चुके हैं-अ०५।४।४। तथा ६।९५।२॥७−(हिरण्ययी) हिरण्यमयी। तेजोमयी। अग्निना विद्युता सूर्येण वा प्रयुक्ता (नौः) तरणिः (अचरत्) अगमत् (हिरण्यबन्धना) तेजोमयबन्धनयुक्ता। अन्यत् पूर्ववत्-म०६॥
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