अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 8
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - चतुरवसानाष्टपदाष्टिः
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
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यत्र॒ नाव॑प्र॒भ्रंश॑नं॒ यत्र॑ हि॒मव॑तः॒ शिरः॑। तत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णं॒ ततः॒ कुष्ठो॑ अजायत। स कु॑ष्ठो वि॒श्वभे॑षजः सा॒कं सोमे॑न तिष्ठति। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑। न। अ॒व॒ऽप्र॒भ्रंश॑नम्। यत्र॑। हि॒मऽव॑तः। शिरः॑। तत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्। ततः॑। कुष्ठः॑। अ॒जा॒य॒त॒। सः। कुष्ठः॑। वि॒श्वऽभे॑षजः। सा॒कम्। सोमे॑न। ति॒ष्ठ॒ति॒। त॒क्मान॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡ ॥३९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्र नावप्रभ्रंशनं यत्र हिमवतः शिरः। तत्रामृतस्य चक्षणं ततः कुष्ठो अजायत। स कुष्ठो विश्वभेषजः साकं सोमेन तिष्ठति। तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश्च यातुधान्यः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र। न। अवऽप्रभ्रंशनम्। यत्र। हिमऽवतः। शिरः। तत्र। अमृतस्य। चक्षणम्। ततः। कुष्ठः। अजायत। सः। कुष्ठः। विश्वऽभेषजः। साकम्। सोमेन। तिष्ठति। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥३९.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(यत्र) जहाँ (अवप्रभ्रंशनम्) नीचे गिर जाना (न) नहीं है, और (यत्र) जहाँ (हिमवतः) हिमवाले स्थान का (शिरः) शिर है। (तत्र) उसमें (अमृतस्य) अमृत [अमरपन] का (चक्षणम्) दर्शन है, (ततः) उससे (कुष्ठः) कुष्ठ [मन्त्र १] (अजायत) प्रकट हुआ है। (सः) वह (विश्वभेषजः) सर्वौषध (कुष्ठः) कुष्ठ...... [मन्त्र ५] ॥८॥
भावार्थ
हिम पृथिवी से ऊँचे स्थान पर गिरता है जहाँ पर जो मार्ग में बिना फिसले ऊँचा चढ़ जाता है, वहाँ वह कुष्ठ महौषध को पाकर प्रसन्न होता है ॥८॥
टिप्पणी
८−(यत्र) यस्मिन् स्थाने (न) निषेधे (अवप्रभ्रंशनम्) भ्रंशु अधःपतने इतस्ततोऽधःपतनम् (यत्र) (हिमवतः) हिमयुक्तदेशस्य (शिरः) शिखरम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(हिमवतः) बर्फीले पर्वत के (यत्र) जिस भाग में (अवपभ्रंशनम् न) ढलवान् नहीं है। अपितु (यत्र) जहां बर्फीले पर्वत का (शिरः) उच्च भाग है, (तत्र) उस भाग में (अमृतस्य) जीवनप्रद जल का यदि (चक्षणम्) दर्शन होता है, तो (ततः) उस भाग से (कुष्ठः) उत्तम कूट या कुष्ठ (अजायत) पैदा होता है। (स कुष्ठो....यातुधान्य) पूर्ववत् (१९.३९.५)।
टिप्पणी
[अवभ्रंशनम्= ढलवान् खड्ड।। ढलवान् स्थलों में जल नहीं ठहरता। उत्तम कुष्ठ के लिये सतत जल चाहिये। हिमवतः इस पद द्वारा हिमालय पर्वत का ग्रहण नहीं है। अपितु केवल बर्फीले पर्वतों का ग्रहण है। इसीलिए वेद में अयन्त्र “हिमवन्तः” बहुवचन में पाठ है। यथा “यस्य विश्वे हिमवन्तो महित्वा” (अथर्व० ४.२.५); तथा “गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तः” (अथर्व० १२.१.११)।
विषय
पर्वत शिखरों पर
पदार्थ
१. (यत्र) = जहाँ (न अवप्रभंशनम्) = नहीं होता नीचे गिरना, अर्थात् जहाँ पर्वतों की बहुत ऊँचाई पर बर्फ पिघलती नहीं, जमी रहती है, (यत्र) = जहाँ (हिमवत:) = इस हिमाच्छादित पर्वत का शिखर है (तत्र) = वहाँ खूब ऊँचाई पर (अमृतस्य) = किरणों में अमृत को लिए हुए सूर्य का जब (चक्षणम्) = प्रकाश होता है, अर्थात् जब उस हिमाच्छादित प्रदेश पर सूर्यकिरणें पड़ती हैं, (तत:) = तब यह (कुष्ठः) = कुष्ठ नामक औषधि (अजायत) -= उत्पन्न होती है। (सः कुष्ठः) = वह कुष्ठ सब रोगों का औषध है|
भावार्थ
कुष्ठ नामक औषध हिमाच्छादित पर्वतों के अत्युच्च शिखरों पर सूर्य प्रकाश के चमकने पर उत्पन्न होती है। यह सर्वोषध है।
इंग्लिश (4)
Subject
Cure by Kushtha
Meaning
Where the top of snowy mountain is, whence there is no fall, there is the tangible source of nectar. Therefrom is the Kushtha bom, Kushtha, the panacea which grows with Soma. O Kushtha, destroy all kinds of cancerous consumptive diseases and eliminate all kinds of dangerous germs, bacteria and viruses.
Translation
Where there is no slipping downwards, and where there is the summit of the snowy mountain (Himalaya), there is the source of immortality, Therefrom the kustha is born. That kustha is an all-cure remedy. It contains the curing principle. May you banish all the fever and all the painful diseases.
Translation
In the heavenly region there moves the luminous body of stars like the ship and this is fuel of radiance and it has the brilliant rays like its bindings. There is the spring of vitality immortal. This Kustha is produced from there. Rest is like previous one.
Translation
Where the bright boat of light gets wrecked,; due to high peaks, where lies the top of the snowy mountain, there is the fountain-head of all juices, whence .... body.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(यत्र) यस्मिन् स्थाने (न) निषेधे (अवप्रभ्रंशनम्) भ्रंशु अधःपतने इतस्ततोऽधःपतनम् (यत्र) (हिमवतः) हिमयुक्तदेशस्य (शिरः) शिखरम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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