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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 4/ मन्त्र 24
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त

    तौदी॒ नामा॑सि क॒न्या घृ॒ताची॒ नाम॒ वा अ॑सि। अ॑धस्प॒देन॑ ते प॒दमा द॑दे विष॒दूष॑णम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तौदी॑ । नाम॑ । अ॒सि॒ । क॒न्या᳡ । घृ॒ताची॑ । नाम॑ । वै । अ॒सि॒ । अ॒ध॒:ऽप॒देन॑ । ते॒ । प॒दम् । आ । द॒दे॒ । वि॒ष॒ऽदूष॑णम् ॥४.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तौदी नामासि कन्या घृताची नाम वा असि। अधस्पदेन ते पदमा ददे विषदूषणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तौदी । नाम । असि । कन्या । घृताची । नाम । वै । असि । अध:ऽपदेन । ते । पदम् । आ । ददे । विषऽदूषणम् ॥४.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 24

    पदार्थ -

    १. 'कन्या' नामक ओषधिविशेष है। बड़ी इलायची 'Large cardamoms' के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। कहते हैं कि (तौदी नाम असि कन्या) = तू तौदी नामवाली कन्या है [तुद् व्यथने]। विषपीड़ा को व्यथित करने से, अर्थात् विषपीड़ा को दूर भगाने से इस कन्या का नाम 'तौदी' है। (वा) = अथवा तु (घृताजी नाम असि) = [घृत अञ्च, पृ भरणदीप्त्योः ] मलों को क्षरित करके दीप्ति प्राप्त कराने से 'घृताची' नामवाली है। २.(अधस्पदेन) = विषपीड़ा आदि शत्रुओं को पादाक्रान्त करने के हेतु से (ते) = तेरे (विषदूषणम्) = विष को दूषित करनेवाले (पदम्) = मूल को (आददे) = ग्रहण करता हूँ।

    भावार्थ -

    कन्या नामक ओषधि के मूल के द्वारा विष को नष्ट किया जा सकता है। इसी से इसके 'तौदी व घृताची' नाम हुए हैं।

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