Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त

    इ॒दं पै॒द्वो अ॑जायते॒दम॑स्य प॒राय॑णम्। इ॒मान्यर्व॑तः प॒दाहि॒घ्न्यो वा॒जिनी॑वतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । पै॒द्व: । अ॒जा॒य॒त॒ । इ॒दम् । अ॒स्‍य॒ । प॒रा॒ऽअय॑नम् । इ॒मानि॑ । अर्व॑त: । प॒दा । अ॒हि॒ऽघ्न्य: । वा॒जिनी॑ऽवत: ॥४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं पैद्वो अजायतेदमस्य परायणम्। इमान्यर्वतः पदाहिघ्न्यो वाजिनीवतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । पैद्व: । अजायत । इदम् । अस्‍य । पराऽअयनम् । इमानि । अर्वत: । पदा । अहिऽघ्न्य: । वाजिनीऽवत: ॥४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 4; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. (इदम्) = [इदानीम्] अब (पैद्वः) यह गतिशील पुरुष (अजायत) = प्रादुर्भूत शक्तियोंवाला होता है [जनी प्रादुर्भाव]।(इदम् अस्य परायणम्) = इसका यह उत्कृष्ट मार्ग है [पर+अयनम्]।(इमानि पदा) = इसके ये पग उस व्यक्ति के पग हैं जोकि (अर्वत:) = वासनाओं का संहारक है [अर्व 10 kill] (अहिघ्न्यः) = [षष्ठया: सुः] विनाशक तत्त्वों को नष्ट करनेवाला है और (वाजिनीवतः) = शक्तियुक्त है|

    भावार्थ -

    हम गतिशील बनकर अपनी शक्तियों का विकास करें, उत्कृष्ट मार्ग पर चलें, वासनाओं का संहार करें, हिंसक तत्त्वों को नष्ट करें तथा शक्तियुक्त बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top