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- मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिर्मा दुष्टुती वृषभ मा सहूती। उन्नो वीराँ अर्पय भेषजेभिर्भिषक्तमं त्वा भिषजां शृणोमि॥ - Rigveda/2/33/4
- मा त्वा वृक्षःसं बाधिष्ट मा देवी पृथिवी मही। लोकं पितृषु वित्त्वैधस्व यमराजसु॥ - Atharvaveda/18/2/0/25
- मा त्वा श्येन उद्वधीन्मा सुपर्णो मा त्वा विददिषुमान्वीरो अस्ता। पित्र्यामनु प्रदिशं कनिक्रदत्सुमङ्गलो भद्रवादी वदेह॥ - Rigveda/2/42/2
- मा त्वा सोमस्य गल्दया सदा याचन्नहं गिरा । भूर्णिं मृगं न सवनेषु चुक्रुधं क ईशानं न याचिषत् ॥ - Rigveda/8/1/20
- मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्धूमगन्धिर्माखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः । इष्टँवीतमभिगूर्तँवषट्कृतन्तन्देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम् ॥ - Yajurveda/25/37
- मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्धूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रि:। इष्टं वीतमभिगूर्तं वषट्कृतं तं देवास: प्रति गृभ्णन्त्यश्वम् ॥ - Rigveda/1/162/15
- मा त्वादभन्त्सलिले अप्स्वन्तर्ये पाशिन उपतिष्ठन्त्यत्र। हित्वाशस्तिंदिवमारुक्ष एतां स नो मृड सुमतौ ते स्याम तवेद्विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं नः पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपैः सुधायां मा धेहि परमे व्योमन् ॥ - Atharvaveda/17/1/0/8
- मा त्वाभि सखा नो विदन् ॥ - Atharvaveda/20/130/0/14
- मां देवा दधिरे हव्यवाहमपम्लुक्तं बहु कृच्छ्रा चरन्तम् । अग्निर्विद्वान्यज्ञं न: कल्पयाति पञ्चयामं त्रिवृतं सप्ततन्तुम् ॥ - Rigveda/10/52/4
- मां धुरिन्द्रं नाम देवता दिवश्च ग्मश्चापां च जन्तव: । अहं हरी वृषणा विव्रता रघू अहं वज्रं शवसे धृष्ण्वा ददे ॥ - Rigveda/10/49/2
- मा न आपो मेधां मा ब्रह्म प्र मथिष्टन। सुष्यदा यूयं स्यन्दध्वमुपहूतोऽहं सुमेधा वर्चस्वी ॥ - Atharvaveda/19/40/0/2
- मा न इन्द्र परा वृणग्भवा नः सधमाद्य: । त्वं न ऊती त्वमिन्न आप्यं मा न इन्द्र परा वृणक् ॥ - Rigveda/8/97/7
- मा न इन्द्र परा वृणग्भवा नः सधमाद्ये । त्वं न ऊती त्वमिन्न आप्यं मा न इन्द्र परा वृणक् ॥२६०॥ - Samveda/260
- मा न इन्द्र पीयत्नवे मा शर्धते परा दाः । शिक्षा शचीवः शचीभिः ॥१८०६॥ - Samveda/1806
- मा न इन्द्र पीयत्नवे मा शर्धते परा दाः । शिक्षा शचीव: शचीभिः ॥ - Rigveda/8/2/15
- मा न इन्द्राभ्या३दिशः सूरो अक्तुष्वा यमत् । त्वा युजा वनेम तत् ॥१२८॥ - Samveda/128
- मा न इन्द्राभ्या३दिश: सूरो अक्तुष्वा यमन् । त्वा युजा वनेम तत् ॥ - Rigveda/8/92/31
- मा न एकस्मिन्नागसि मा द्वयोरुत त्रिषु । वधीर्मा शूर भूरिषु ॥ - Rigveda/8/45/34
- मा नः पश्चान्मा पुरस्तान्नुदिष्ठा मोत्तरादधरादुत। स्वस्ति भूमे नो भव मा विदन्परिपन्थिनो वरीयो यावया वधम् ॥ - Atharvaveda/12/1/0/32
- मा नः पाशं प्रति मुचो गुरुर्भारो लघुर्भव। वधूमिव त्वा शाले यत्रकामं भरामसि ॥ - Atharvaveda/9/3/0/24
- मा नः शँसो अररुषो धूर्तिः प्र णङ्नर्त्यस्य । रक्षा णो ब्रह्मणस्पते ॥ - Yajurveda/3/30
- मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रणङ्मर्त्यस्य। रक्षा णो ब्रह्मणस्पते॥ - Rigveda/1/18/3
- मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त । आ न इन्दो वाजे भज ॥ - Rigveda/1/43/8
- मा नः स्तेनेभ्यो ये अभि द्रुहस्पदे निरामिणो रिपवोऽन्नेषु जागृधुः। आ देवानामोहते वि व्रयो हृदि बृहस्पते न परः साम्नो विदुः॥ - Rigveda/2/23/16
- मा न: समस्य दूढ्य१: परिद्वेषसो अंहतिः । ऊर्मिर्न नावमा वधीत् ॥ - Rigveda/8/75/9
- मा न: सेतु: सिषेदयं महे वृणक्तु नस्परि । इन्द्र इद्धि श्रुतो वशी ॥ - Rigveda/8/67/8
- मा न: सोम सं वीविजो मा वि बीभिषथा राजन् । मा नो हार्दि त्विषा वधीः ॥ - Rigveda/8/79/8
- मां नरः स्वश्वा वाजयन्तो मां वृताः समरणे हवन्ते। कृणोम्याजिं मघवाहमिन्द्र इयर्मि रेणुमभिभूत्योजाः ॥५॥ - Rigveda/4/42/5
- मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः। वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्त: सदमित्त्वा हवामहे ॥ - Rigveda/1/114/8
- मा नस्तोके तनये मा नऽआयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः । मा नो वीरान्रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥ - Yajurveda/16/16
- मा निन्दत य इमां मह्यं रातिं देवो ददौ मर्त्याय स्वधावान्। पाकाय गृत्सो अमृतो विचेता वैश्वानरो नृतमो यह्वो अग्निः ॥२॥ - Rigveda/4/5/2
- मा नो अग्ने दुर्भृतये सचैषु देवेद्धेष्वग्निषु प्र वोचः। मा ते अस्मान्दुर्मतयो भृमाच्चिद्देवस्य सूनो सहसो नशन्त ॥२२॥ - Rigveda/7/1/22
- मा नो अग्ने महाधने परा वर्ग्भारभृद्यथा । संवर्गꣳ सꣳ रयिं जय ॥१६५०॥ - Samveda/1650
- मा नो अग्ने सख्या पित्र्याणि प्र मर्षिष्ठा अभि विदुष्कविः सन्। नभो न रूपं जरिमा मिनाति पुरा तस्या अभिशस्तेरधीहि ॥ - Rigveda/1/71/10
- मा नो अग्नेऽमतये मावीरतायै रीरधः। मागोतायै सहसस्पुत्र मा निदेऽप द्वेषांस्या कृधि॥ - Rigveda/3/16/5
- मा नो अग्नेऽव सृजो अघायाविष्यवे रिपवे दुच्छुनायै। मा दत्वते दशते मादते नो मा रीषते सहसावन्परा दाः ॥ - Rigveda/1/189/5
- मा नो अग्नेऽवीरते परा दा दुर्वाससेऽमतये मा नो अस्यै। मा नः क्षुधे मा रक्षस ऋतावो मा नो दमे मा वन आ जुहूर्थाः ॥१९॥ - Rigveda/7/1/19
- मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो३ माशिवासो अव क्रमुः। त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥२७॥ - Rigveda/7/32/27
- मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो३माशिवासोऽव क्रमुः । त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥१४५७॥ - Samveda/1457
- मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो माशिवासो अव क्रमुः। त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥ - Atharvaveda/20/79/0/2
- मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च। पर्षि तस्या उत द्विषः॥ - Rigveda/2/7/2
- मा नो अस्मिन्मघवन्पृत्स्वंहसि नहि ते अन्तः शवसः परीणशे। अक्रन्दयो नद्यो३ रोरुवद्वना कथा न क्षोणीर्भियसा समारत ॥ - Rigveda/1/54/1
- मा नो अस्मिन्महाधने परा वर्ग्भारभृद्यथा । संवर्गं सं रयिं जय ॥ - Rigveda/8/75/12
- मा नो गव्येभिरश्व्यै: सहस्रेभिरति ख्यतम् । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥ - Rigveda/8/73/15
- मा नो गुह्या रिप आयोरहन्दभन्मा न आभ्यो रीरधो दुच्छुनाभ्यः। मा नो वि यौः सख्या विद्धि तस्य नः सुम्नायता मनसा तत्त्वेमहे॥ - Rigveda/2/32/2
- मा नो गोषु पुरुषेषु मा गृधो नो अजाविषु। अन्यत्रोग्र वि वर्तय पियारूणां प्रजां जहि ॥ - Atharvaveda/11/2/0/21
- मा नो देवा अहिर्वधीत्सतोकान्त्सहपूरुषान्। संयतं न वि ष्परद्व्यात्तं न सं यमन्नमो देवजनेभ्यः। - Atharvaveda/6/56/0/1
- मा नो देवानां विश: प्रस्नातीरिवोस्राः । कृशं न हासुरघ्न्या: ॥ - Rigveda/8/75/8
- मा नो निदे च वक्तवेऽर्यो रन्धीरराव्णे। त्वे अपि क्रतुर्मम ॥ - Atharvaveda/20/18/0/5
- मा नो निदे च वक्तवेऽर्यो रन्धीरराव्णे। त्वे अपि क्रतुर्मम ॥५॥ - Rigveda/7/31/5