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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 14
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    मा त्वा॑भि॒ सखा॑ नो विदन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । त्वा । अ॑भि॒ । सखा॑ । न: । विदन् ॥१३०.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा त्वाभि सखा नो विदन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । त्वा । अभि । सखा । न: । विदन् ॥१३०.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 14
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्वा) तुझसे (नः) हमारा (सखा) सखा [साथी] (मा अभि विदन्) कभी न मिले ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने मित्रों को दुष्टों से कभी न मिलने देवे ॥१३, १४॥

    टिप्पणी

    १४−(मा) निषेधे (त्वा) त्वाम् (अभिः) सर्वतः (सखा) (नः) अस्माकम् (विदन्) प्राप्नोतु ॥

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    विषय

    धनाभिमान व प्रभु से दूरी

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार ऐश्वर्यों को कमाने पर यदि एक व्यक्ति दान नहीं देता तो धीमे धीमे उसमें धन का अभिमान आ जाता है। धन को वह प्रभु का दिया हुआ न समझकर 'इद मद्य मया लब्ध, इमं प्राप्स्ये मनोरथम् अपना समझने लगता है और उसे अभिमान हो जाता है। उसके मानों सींग-से निकल आते हैं २. मन्त्र में कहते हैं कि हे उत्पन्न (शृंग) = पैदा हुए हुए सींग! (न: सखा) = हम सबका मित्र वह प्रभु त्वा अभि-तेरी ओर मा विदन् [विदत्]-मत प्राप्त हो। जहाँ धनाभिमान है, वहाँ प्रभु का वास कहाँ? अभिमानी को प्रभु की प्राप्ति नहीं होती। वह तो अपने को ही ईश्वर मानने लगता है 'ईश्वरोऽहम् ।

    भावार्थ

    धन का त्याग न होने पर धन का अभिमान उत्पन्न हो जाता है और इस अभिमानी को कभी प्रभु की प्राप्ति नहीं होती।

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    भाषार्थ

    (नः) हम उपासकों के (सखा) मित्रगण भी, (त्वा अभि) तेरे संमुख, (मा विदन्) न हों, अर्थात् तेरा मुखड़ा तक न देखें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Let our friends never face and suffer from you.

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    Translation

    Never do my friend have contact with you (enemy).

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    Translation

    Never do my friend have contact with you (enemy).

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    Translation

    Then he realizes, “It is He, It is He” Truly does he come face to face with Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(मा) निषेधे (त्वा) त्वाम् (अभिः) सर्वतः (सखा) (नः) अस्माकम् (विदन्) प्राप्नोतु ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ত্বা) তোমার সাথে (নঃ) আমাদের (সখা) সখা [সাথী] (মা অভি বিদন্) কখনো না প্রাপ্ত হোক/সাক্ষাৎকার করুক॥১৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য নিজের মিত্রদের কখনো দুষ্টদের সাথে দেখা করতে দেবে না॥১৩, ১৪॥

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    भाषार्थ

    (নঃ) আমাদের [উপাসকদের] (সখা) মিত্রগণও, (ত্বা অভি) তোমার সম্মুখে, (মা বিদন্) যেন না হয়, অর্থাৎ তোমার মুখ দর্শন যেন না করে।

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